भारतीय संस्कृति का विदेशों में प्रचार
वृहत्तर भारत
– भारतीय संस्कृति का विदेशी क्षेत्रों में जहाँ-जहाँ प्रसार हुआ उसे वृहत्तर भारत कहा जाता है|
– सर्वाधिक प्रसार – बौद्ध धर्म का
– वृहत्तर भारत का विभाजन हम दो भागों में कर सकते हैं। प्रथम भाग में मध्य एशिया, तिब्बत तथा चीन को रखा जा सकता है, जबकि द्वितीय भाग के अंतर्गत हिन्द-चीन तथा पूर्व द्वीप समूहों की गणना की जा सकती है।
– अनेक विदेशी यात्री – फाह्यान चौथी शताब्दी में भारत आया था। इस समय भारत में चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन था। इसने अपने यात्रा विवरण में गुप्तकालीन समाज एवं संस्कृति का सुंदर शब्द चित्र प्रस्तुत किया था।
– ह्वेनसांग हर्षवर्धन के समय में भारत आया तथा उसने हर्षकालीन भारत की राजनीतिक एवं सांस्कृतिक दशा का वर्णन किया था।
– इत्सिंग सातवीं शताब्दी (671 ई.) में भारत आया तथा अपनी यात्रा विवरण में उसने नालन्दा विश्वविद्यालय का वर्णन किया था।
– बौद्ध धर्म की विशद जानकारी हेतु भारत आए थे।
मध्य एशिया:-
– चीन, भारत तथा ईरान के बीच स्थित प्रदेश को मध्य एशिया अथवा चीनी तुर्किस्तान कहा जाता है।
– मौर्य शासक अशोक के धर्म प्रचार ने भारतीय संस्कृति को मध्य एशिया में फैला दिया था। उत्तर-पश्चिमी सीमा से हिन्दूकुश पार कर अनेक भारतीय बौद्ध प्रचारक मध्य एशिया में जा पहुँचे थे। गुप्तकाल के प्रारम्भ तक बौद्ध धर्म मध्य एशिया के सभी भागों में पूरी तरह प्रतिष्ठित हो गया था।
– बौद्ध धर्म के माध्यम से भारतीय लिपि तथा भाषा का मध्य एशिया में प्रवेश हुआ था।
1. कूची भारतीय संस्कृति का उत्तरी केन्द्र (गांधार अफगान)
– खोतान के कुछ परिवार कूची में आकर बसे और यहाँ हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की।
– कुमारजीव – बौद्ध धर्म का प्रसार किया था।
– कूची के शासक ने एक बौद्ध विद्वान कुमार नारायण को अपना शिक्षक नियुक्त किया।
– कुमारनारायण ने कूची में बौद्ध धर्म का प्रसार किया। यहाँ की स्थानीय कन्या जीवा से विवाह किया।
– विवाह के पश्चात् इनके एक संतान हुई, जिसका नाम कुमार जीव था। जिसने न केवल कूची मे अपितु चीन में भी बौद्ध धर्म (महायान शाखा का) का प्रचार किया।
2. खोतान – अफगानिस्तान
– मध्य एशिया में भारतीय संस्कृति का दक्षिणी केन्द्र था।
– तिब्बती साहित्य कंग्यूर व तंग्यूर में तारानाथ ने मौर्यकालीन शासक कुणाल का उल्लेख किया है।
– बौद्ध परम्परा के अनुसार अशोक के पुत्र कुणाल ने यहाँ जाकर हिन्दू राज्य की स्थापना की थी। कुणाल को ‘कुस्तन’ भी कहा गया है। कुणाल का पुत्र ‘येउल’ तथा पौत्र ‘विजित संभव’ हुआ था।
– विजितसंभव के समय ” विरोचन” नामक बौद्ध भिक्षु ने बौद्ध धर्म का प्रसार किया। – (महायान शाखा)
– 433 ईस्वी में धर्मक्षेम नामक बौद्ध विद्वान चीन से महापरिनिर्वाण सूत्र की पाण्डुलिपि की खोज में खोतान आया था।
– “धर्मक्षेम” नामक बौद्ध भिक्षुक ने भी प्रचार में सहयोग किया।
– फाह्यान – “फो – क्यों – की” में खोतान का उल्लेख करता है, भारत आते समय खोतान द्वीप होकर आया।
– “खोतान में चहुँओर बौद्ध धर्म प्रचलित था।”
– “घर घर के सामने बौद्ध पैगोड़ा (मंदिर) बने हुए।
– “उस समय खोतान में 14 बौद्ध विहार थे।”
– इनमें से सबसे बड़ा विहार – गोमती विहार (विश्व का सबसे बड़ा बौद्ध स्मारक माना जाता है।)
– इन विहारों में लगभग 3००० बौद्ध भिक्षुक अध्ययन कर रहे थे।
– बौद्ध धर्म की रथ यात्राओं का भी उल्लेख करता है।
3. चीन
– ई.पू. की तीसरी शताब्दी से ही भारत के साथ व्यापारिक संबंध थे – उल्लेख – कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है।
– महाभारत तथा मनुस्मृति में चीन का उल्लेख मिलता है।
– चीन से आने वाली रेशम का उल्लेख – चीनीपट में मिलता है।
– चीन देश का नामकरण वहाँ चिन वंश की स्थापना के बाद हुआ था।
– चीनी साहित्य के अनुसार 217 ई. पूर्व में भारत से बौद्ध धर्म ने चीन में प्रवेश किया।
– चीनी सिल्क का उल्लेख – कालिदास ने भी किया।
– 65 ई. में चीन का शासक – मेंगती था।
– स्वप्न आया तो मेंगती को एक दिन रात को
– मेंगती ने अगले दिन दरबार में मंत्रियों को बुलाया और रात्रि स्वप्न की बात कही, तब मंत्रियों ने बताया कि आपके स्वप्न में भारत के गौतम बुद्ध आए थे।
– मैंगती ने भारत में गौतम बुद्ध की जानकारी प्राप्त करने हेतु एक दूत भेजा।
– दूत अपने साथ भारत के नालंदा से दो बड़े विद्वान 1. धर्मरत्न 2. मातंक कश्यप को चीन लेकर गया था।
– दूत श्वेत अश्व पर बैठा कर दोनों को चीन ले गया।
– मैंगती ने दोनों के लिए बौद्ध विहार की स्थापना की थी।
– धर्मरत्न व मातंक कश्यप ने चीन में बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
– चीन में प्रारंभ में बौद्ध धर्म को कनफ्यूशियनिज़्म मतानुयायियों के विरोध का सामना करना पड़ा था।
– प्रसिद्ध दार्शनिक मोत्सू ने तो बौद्ध धर्म को कनफ्यूशियस के धर्म से श्रेष्ठतर घोषित किया था।
– चौथी शताब्दी में दक्षिण चीन के शासक – लियांग बूती ने बौद्ध धर्म को चीन का राष्ट्रीय धर्म घोषित किया।
– कुमारजीव ने चीन में सर्वाधिक बौद्ध का प्रचार किया था।
– चीनी शासक – नीगही (लियांगबूती ) ने बौद्ध धर्म को प्रत्येक घर तक पहुँचा दिया।
– तांग वंश का शासनकाल चीन में बौद्ध धर्म का स्वर्णिम युग था।
4. तिब्बत
– महाभारत व रामायण में तिब्बत को “त्रिविष्टुप प्रदेश” भी कहा गया है। – प्राचीन नाम “छोलखा प्रदेश” भी कहा जाता है।
– 7वीं शताब्दी तक तिब्बत का इतिहास अंधकारमय था।
– तिब्बत में स्रांग सनगम्पो नामक एक अत्यन्त शक्तिशाली राजा हुआ जिसने मध्य एशिया पर आक्रमण कर वहाँ अपना अधिकार स्थापित कर लिया था।
– सोनगम्पो ने दो विवाह किए थे, जिनमें एक चीन व दूसरी पाल की राजकुमारी थी।
– दोनों राजकुमारियाँ अपने साथ बुद्ध की प्रतिमा लेकर के आई थीं।
– सनगम्पो को गौतम बुद्ध के बारे में जानने की जिज्ञासा हुई – सनगम्पो ने अपने मंत्री – थ्रोनमी संभोटी नामक विद्वान को अभिलेख, भाषा विज्ञान तथा व्याकरण के अध्ययन के लिए भारत भेजा था।
– संभोटी ने भारत में बौद्ध धर्म का विशद ज्ञान प्राप्त किया।
– संभोटी नालंदा से शांतरक्षित विक्रमशिला से पद्मसंभव को तिब्बत ले गया।
– थ्रोनमी संभोटी ने तिब्बती व्याकरण – की रचना की थी।
– अत: तिब्बती वर्णमाला का जनक कहा जाता है।
– उस समय तिब्बत में बोन धर्म (जादू, टोना, टोटका) का प्रभाव था।
– बोनधर्म अनुयायियों को शांतरक्षित व पद्मसंभव ने पराजित कर दिया।
– पद्मसंभव को दूसरा बुद्ध कहा जाता है (रिन – पो – चे)
– बोन धर्मानुयायी आज भी पद्मसंभव को अपना गुरु मानते हैं।
– ग्यारहवीं सदी में विक्रमशिला के महान आचार्य अतीश दीपंकर यहाँ पहुँचे तथा सत्रह वर्षों तक बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार का महान कार्य किया था।
– तिब्बती लिपि का आविष्कार नालन्दा विश्वविद्यालय में हुआ था।
– सोनगम्पो ने प्रभावित होकर दोनों के लिए एक विहार की स्थापना करवाई – (समय विहार)
– ‘समय-विहार’ के वास्तु पर नालन्दा एवं ओदन्तपुरी की वास्तुकला की छाप है।
– 11वीं शताब्दी में – विक्रमशिला के बौद्ध विद्वान
– शासक-चुनबुन के निमंत्रण पर
– दीपंकर श्रीज्ञान ने तिब्बत में बौद्ध धर्म का प्रचार – प्रसार किया।
– चुनबुन ने दीपंकर श्रीज्ञान के लिए शाक्य विहार की स्थापना करवाई थी।
Note – बख्तियार खिलजी ने क्रमश: नालंदा (1193) व विक्रमशिला (1203) में आक्रमण किया व आग लगा दी।
– अतः अनेक बौद्ध भिक्षुक बौद्ध ग्रंथों को लेकर तिब्बत चले गए।
– हिन्द चीन में भारतीय संस्कृति
आधुनिक नाम – पुराने नाम
बर्मा/म्यांमार – बर्मा
थाइलैण्ड – स्याम
कम्बोडिया – कुम्बज/कम्बुज
वियतनाम – चम्पा
पूर्वी – द्वीप
सुमात्रा – श्रीविजय/स्वर्णद्वीप
जावा – यवद्वीप
5. कम्बोडिया
– हिन्द-चीन के राज्यों में सर्वप्राचीन राज्य कम्बुज (कम्बोडिया) में स्थित था।
– प्राचीन नाम – कम्बुज था।
– इण्डो-चाइना का सबसे प्राचीन राज्य
– चीन के फुनान प्रांत का एक भाग था।
– भारत के साथ प्राचीनकाल से ही व्यापारिक संबंध थे।
– शासन:- “कौण्डिन्य” नामक ब्राह्मण ने पहली शताब्दी मे यहाँ हिन्दू शासन की स्थापना की।
– 11वीं शताब्दी में – यहाँ खमेर वंश का शासन स्थापित किया।
– सबसे प्रतापी शासक था।
– सूर्यवर्मन II ने यहाँ अंकोरवाट विष्णु मंदिर का निर्माण करवाया।
– एक नगर – “अकोरथोम” का भी निर्माण करवाया।
अंकोरवाट मंदिर-
– भगवान विष्णु को समर्पित।
– विष्णु का एशिया का सबसे विशाल मंदिर।
– शैली द्रविड़ + पंचायतन शैली में निर्मित है।
– द्रविड़ – शैली में निर्मित सबसे भव्य मंदिर है।
– पंचायतन शैली का भी प्रयोग किया गया है।
– मेकांग नदी के तट पर पत्थर से निर्मित है।
– मंदिर के चारों ओर 650 फीट चौड़ी खाई है।
– महाभारत व रामायण के प्रसंगों का चित्रण किया गया।
– यूनेस्को के द्वारा विश्व धरोहर सूची में शामिल है।
– कम्बुज का अंतिम प्रसिद्ध शासक जयवर्मन सप्तम था।
– जयवर्मन के समय अंकोरथोम कम्बुज की राजधानी बनी थी।
6. वियतनाम
– प्राचीन नाम – चम्पा था।
– शताब्दी में भद्रवर्मन द्वारा – यहाँ पर हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की गई थी।
– माईसोन व पोनगर में शिव मंदिर की स्थापना की गई थी।
7. म्यांमार
– प्राचीन नाम – बर्मा
– छठी शताब्दी में अधिराज (शाक्य वंश के राजा) नामक शासक ने भारतीय शासन की स्थापना की।
– सातवीं शताब्दी में द्वारावती द्वारा हिन्दू साम्राज्य की स्थापना की गई।
– नौवीं शताब्दी में अनिरुद्व नामक शासक हुआ। इसने कई भारतीय राजकुमारियों (मायादेवी, महादेवी, रंगदेवी) से विवाह किया।
– अनिरुद्ध ने बर्मा व थाईलैण्ड में अनेक बौद्ध मठों की स्थापना की थी।
– 11वीं शताब्दी में – क्वानजिरा ने अरिमर्दनपुर में
– आनंद मंदिर नामक बौद्ध मंदिर का निर्माण करवाया था। इसमें भगवान बुद्ध की 31 फीट ऊँची प्रतिमा स्थापित करवाई थी।
– बर्मा को ‘पेशीडो का देश’ कहा जाता है।
8. सुमात्रा
– इसे सुवर्णद्वीप कहा जाता है।
– इण्डोनेशिया का सबसे बड़ा द्वीप है।
– चौथी शताब्दी में – श्रीविजय वंश का शासन था।
– इत्सिंग ने बताया कि यहाँ जयनाग नामक शासक ने बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
– इसका प्रसिद्ध नाम – श्रीविजय था।
9. जावा
– “यवद्वीप” कहा जाता है।
– इत्सिंग- यहाँ छठी शताब्दी में पूर्णवर्मा नामक हिन्दू का शासक था, जिसके मगध के साथ व्यापारिक संबंध थे।
– 750-850 ई. के बीच यहाँ शैलेन्द्र वंश का शासक था।
– उन्होंने बोरबुदूर स्तूप का निर्माण करवाया था।
बोरोबदूर स्तूप :-
– निर्माण – 8वीं शताब्दी मे किया गया था।
– आर.सी./एन.जी. मजूमदार ने इसे विश्व का आठवाँ अजूबा कहा।
– विश्व का सबसे बड़ा स्तूप/ निर्माणकर्ता – भूमिसंभार समरतुंग (राजा)
– कुल = नौ चबूतरे – 72 बुद्ध प्रतिमाएँ हैं।
– 6 आयताकार चौकोर
– 3 वृत्ताकार गोलाकार
– वर्ष 1991 में इसे विश्व विरासत सूची में शामिल किया गया था।
– अलंकरण – राजा-रानी जनता को उपदेश देते हुए।
– बुद्ध की प्रतिमा – ध्यान – धर्मचक्र के मध्य
– जहाज लहरों पर तैरता हुआ।
– द्वारपाल के रूप में – सिंह की मूर्ति है।
– बुद्ध की खण्डित मूर्ति, धड़ अलग है।
– मन्दिर की खोज – 1885 ई. में सर टॉमस रैफलनेन ने की।
– प्रम्बनम मंदिर समूह यहीं स्थित है।
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