गोगाजी चौहान

  • पंच पीरों में सर्वाधिक प्रमुख स्थान।
  • जन्म – संवत् 1003 में, जन्म स्थान – ददरेवा (चूरू)।
  • पिता – जेवरजी चौहान, माता – बाछल दे, पत्नी – कोलुमण्ड (फलौदी, जोधपुर) की राजकुमारी केलमदे (मेनलदे)।
  • केलमदे की मृत्यु साँप के कांटने से हुई जिससे क्रोधित होकर गोगाजी ने अग्नि अनुष्ठान किया। जिसमें कई साँप जलकर भस्म हो गये फिर साँपों के मुखिया ने आकर उनके अनुष्ठान को रोककर केलमदे को जीवित करते हैं। तभी से गोगाजी नागों के देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
  • गोगाजी का अपने मौसेरे भाईयों अर्जन व सुर्जन के साथ जमीन जायदाद को लेकर झगड़ा था। अर्जन – सुर्जन ने मुस्लिम आक्रान्ताओं (महमूद गजनवी) की मदद से गोगाजी पर आक्रमण कर दिया। गोगाजी वीरतापूर्वक लड़कर शहीद हुए।
  • युद्ध करते समय गोगाजी का सिर ददरेवा (चूरू) में गिरा इसलिए इसे शीर्षमेडी (शीषमेडी) तथा धड़ नोहर (हनुमानगढ़) में गिरा इसलिए इसे धड़मेड़ी/ धुरमेड़ी/गोगामेड़ी भी कहते हैं।
  • बिना सिर के ही गोगाजी को युद्ध करते हुए देखकर महमूद गजनवी ने गोगाजी को जाहिर पीर (प्रत्यक्ष पीर) कहा।
  • उत्तर प्रदेश में गोगाजी को जहर उतारने के कारण जहर पीर/जाहर पीर भी कहते हैं।
  • गोगामेड़ी का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया। गोगामेड़ी के मुख्य द्वार पर बिस्मिल्लाह लिखा है तथा इसकी आकृति मकबरेनुमा है। गोगामेड़ी का वर्तमान स्वरूप बीकानेर के महाराजा गंगासिंह की देन है। प्रतिवर्ष गोगानवमी (भाद्रपद कृष्णा नवमी) को गोगाजी की याद में गोगामेड़ी, हनुमानगढ़ में भव्य मेला भरता है।
  • गोगाजी की आराधना में श्रद्धालु सांकल नृत्य करते हैं।
  • गोगामेड़ी में एक हिन्दू व एक मुस्लिम पुजारी है।
  • प्रतीक चिहृ – सर्प।
  • खेजड़ी के वृक्ष के नीचे गोगाजी का निवास स्थान माना जाता है।
  • गोगाजी की ध्वजा सबसे बड़ी ध्वजा मानी जाती है।
  •  ‘गोगाजी की ओल्डी‘ नाम से प्रसिद्ध गोगाजी का अन्य पूजा स्थल – साँचौर (जालौर)।
  • गोगाजी से सम्बन्धित वाद्य यंत्र – डेरू।
  • किसान वर्षा के बाद खेत जोतने से पहले हल व बैल को गोगाजी के नाम की राखी गोगा राखड़ी बांधते हैं।
  • सवारी – नीली घोड़ी।
  • गोगा बाप्पा नाम से भी प्रसिद्ध है।
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