प्रतापगढ़ का गुहिल वंश
- – प्रतापगढ़ में गुहिल वंश का प्रारम्भ महाराणा मोकल के द्वितीय पुत्र क्षेम सिंह से प्रारम्भ हुआ।
- – प्रतापगढ़ के शासक महारावत कहलाए। ये सूर्यवंशी राजा थे।
- – क्षेम सिंह ने 1437 ई. में सादड़ी पर अधिकार किया था।
- – क्षेम सिंह मालवा की सेना के साथ मेवाड़ के विरुद्ध लड़ा था ।
- – बाघ सिंह ने चित्तौड़ पर मालवा के सुल्तान बहादुरशाह के आक्रमण के समय चितौड़गढ़ दुर्ग की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी थी।
- – विक्रम सिंह ने देवलिया को अपनी राजधानी बनाया।
- – महारावत हरि सिंह ने 1633 ई. में शाहजहाँ के समय मुगलों की अधीनता स्वीकार कर ली।
- – महारावत रघुनाथ सिंह को ब्रिटिश सरकार ने ‘नाइट कमांडर ऑफ दी इण्डियन अंपायर’ की उपाधि प्रदान की थी।
- – महारावत प्रताप सिंह के दरबार में सोमजी भट्ट, मन्ना भट्ट, विश्वनाथ, हरिदेव मेहता, जयदेव मेहता तथा विजयसूरी आदि विद्वान निवास करते थे।
- – हरिभूषण महाकाव्य की रचना कवि गंगाराम द्वारा की गई।
- – प्रताप सिंह ने बीकानेर व जोधपुर राज्यों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित किए।
- – प्रताप सिंह ने लगभग 1699 ई. में डोडेरिया खेड़ा के स्थान पर प्रतापगढ़ की स्थापना की।
- – प्रताप सिंह के समय कवि कल्याण ने प्रताप प्रशस्ति की रचना की थी।
- – पृथ्वी सिंह ने अपनी पुत्री अनूप कूँवरी का विवाह जोधपुर के शासक अजीत सिंह से किया था।
- – सालिम सिंह ने सालिमशाही सिक्के प्रचलित किए थे।
- – सामन्त सिंह ने 5 अक्टूबर 1818 ई. में अंग्रेजों के साथ सन्धि की थी।
- – 1857 की क्रान्ति के समय प्रतापगढ़ का शासक दलपत सिंह था। इसने अंग्रेजों का साथ दिया था।
- – दलपत सिंह ने देवलिया में सोनेलाव तालाब व दलपत निवास महल का निर्माण करवाया था।
- – महारावल उदय सिंह ने अपनी राजधानी प्रतापगढ़ को बनाया था। इन्होंने उदय विलास महल का निर्माण करवाया।
- – उदय सिंह के समय 1881 ई. में प्रतापगढ़ में पहली जनगणना हुई।
- – उदय सिंह ने प्रतापगढ़ राज्य में सती प्रथा व कन्या वध पर प्रतिबन्ध लगाया।
- – रघुनाथ सिंह के समय मेवाड़ और प्रतापगढ़ के मध्य सीतामाता क्षेत्र को लेकर विवाद हुआ था। अंग्रेजों ने इसे प्रतापगढ़ के अन्तर्गत माना। इसने 1904 ई. में कलदार सिक्कों को प्रचलित किया।
- – प्रतापगढ़ के गुहिल वंश का अन्तिम शासक रामसिंह था। इसके शासन काल में प्रतापगढ़ का आधुनिकीकरण हुआ।
- – 25 मार्च, 1948 को प्रतापगढ़ रियासत का विलय राजस्थान संघ में हो गया।