आमेर का कच्छवाह वंश

  • ‘कच्छवाह‘ अपने आपको भगवान श्री राम के पुत्र ‘कुश‘ की संतान मानते हैं।
  • संस्थापक – दुलहराय (तेजकरण), मूलतः ग्वालियर निवासी था।
  • 1137 ई. में उसने बड़गुजरों को हराकर नवीन ढूँढाड़ राज्य की स्थापना की।
  • दुलहराय के वंशज कोकिलदेव ने 1207 ई. में मीणाओं से आमेर जीतकर अपनी राजधानी बनाया, जो 1727 ई. तक कच्छवाह वंश की राजधानी रहा।
  • इसी वंश के शेखा ने शेखावटी मे अपना अलग राज्य बनाया।

भारमल (1547-1574 .) या बिहारीमल 

  • 1547 ई. में भारमल आमेर का शासक बना।
  • भारमल प्रथम राजस्थानी शासक था, जिसने अकबर की अधीनता स्वीकार की व 1562 ई. में अपनी पुत्री हरखाबाई उर्फ मानमति या शाही बाई (मरियम उज्जमानी) का विवाह अकबर से किया।
  • मुगल बादशाह जहाँगीर हरखाबाई का ही पुत्र था।

भगवन्त दास (1574-1589 .) 

  • भगवन्त दास या भगवान दास भारमल का पुत्र था।
  • उसने अपनी पुत्री मानबाई (मनभावनी) का विवाह शहजादे सलीम (जहाँगीर) से किया। मानबाई को ‘सुल्तान निस्सा‘ की उपाधि प्राप्त थी।
  • खुसरो इसी का पुत्र था।

मानसिंह (1589-1614 .)

  • मानसिंह भगवन्त दास का पुत्र था।
  • मानसिंह आमेर के कच्छवाह शासकों में सर्वाधिक प्रतापी एवं महान् राजा था।
  • मानसिंह ने 52 वर्ष तक मुगलों की सेवा की।
  • मानसिंह 1573 में अकबर के दूत के रूप में राणा प्रताप से मिला था।
  • 1576 ई. में हल्दीघाटी युद्ध में उसने शाही सेना का नेतृत्व किया था।
  • अकबर ने उसे फर्जन्द (पुत्र) एवं राजा की उपाधि प्रदान की। वह अकबर के नवरत्नों में शामिल था।
  • मानसिंह ने बंगाल में ‘अकबर नगर‘ तथा बिहार में ‘मानपुर नगर‘ को बसाया।
  • मानसिंह स्वयं कवि, विद्वान, साहित्य प्रेमी व विद्वानों का आश्रयदाता था।
  • शिलादेवी (आमेर), जगत शिरोमणी (आमेर) गोविन्द देवजी (वृंदावन) मंदिर उसी ने बनवाये थे।

जयसिंह प्रथम या मिर्जा राजा जयसिंह (1621-1667 .)

  • इसने तीन मुगल बादशाहों जहाँगीर, शाहजहां व औरंगजेब को अपनी सेवाएँ दी।
  • उसने औरंगजेब की तरफ से शिवाजी को सन्धि के लिए बाध्य किया। यह सन्धि इतिहास में पुरन्दर की सन्धि (जून 1665 ई.) के नाम से प्रसिद्ध है।
  • उसकी योग्यता एवं सेवाओं से प्रसन्न होकर शाहजहाँ ने उसे ‘मिर्जा राजा‘ की उपाधि प्रदान की।
  • बिहारी सतसई के रचयिता कवि बिहारी उसके दरबारी कवि थे।
  • बिहारी का भांजा कुलपति मिश्र भी बड़ा विद्वान था, जिसने 52 ग्रन्थों की रचना की इनका दरबारी था।
  • इनकी मृत्यु बुरहानपुर के पास हुई थी।
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जयसिंह द्वितीय या सवाई जयसिंह (1700-1743 .)

  • इनका वास्तविक नाम विजयसिंह था।
  • बादशाह औरंगजेब ने उसकी वाकपटुता से प्रभावित होकर उसकी तुलना जयसिंह प्रथम से की तथा उसे जयसिंह प्रथम से भी अधिक योग्य अर्थात् सवाया जानकर विजयसिह का नाम बदलकर सवाई जयसिंह कर दिया।
  • सवाई जयसिंह ने मुगलों के लिए तीन बार मराठों से युद्ध किये।
  • सवाई जयसिंह द्वारा जाटों पर मुगलों की विजय होने के उपलक्ष्य में बादशाह मुहम्मद शाह ने जयसिंह को राज राजेश्वर, राजाधिराज, सवाई की उपाधि प्रदान की।
  • सवाई जयसिंह ने मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह द्वितीय से मिलकर 1734 ई. में हुरड़ा(भीलवाड़ा) मे राजस्थान के राजपूत राजाओं का सम्मेलन आयोजित किया जिसका उद्देश्य सामुहिक शक्ति द्वारा मराठा आक्रमण को रोकना था।
  • वह संस्कृत, फारसी, गणित एवं ज्योतिष का प्रकाण्ड विद्वान था उसे ‘ज्योतिष शासक’ भी कहा गया है।
  • उसने ‘जयसिंह कारिका’ नामक ज्योतिष ग्रन्थ की रचना की।
  • उसने जयपुर, दिल्ली, बनारस, उज्जैन व मथुरा में वैध शालाए बनवायी जिसमें सबसे बड़ी वेधशाला (जंतर-मंतर) जयपुर की है तथा सर्वप्रथम वेधशाला दिल्ली की है।
  • उसने 18 नवम्बर, 1727 ई. में जयपुर नगर की स्थापना की। जयपुर का प्रधान वास्तुकार बंगाली ब्राह्मण विद्याद्यर भट्टाचार्य था।
  • नाहरगढ़ दुर्ग, जयनिवास महल का निर्माण भी करवाया।
  • सवाई जयसिंह के समय ही आमेर राज्य का सर्वाधिक विस्तार हुआ।
  • वह अंतिम हिन्दू शासक था जिसने अश्वमेघ यज्ञ का आयोजन करवाया। इस यज्ञ का पुरोहित पुण्डरीक रत्नाकर था।
  • मुगल बादशाह बहादुर शाह ने सवाई जयसिंह को आमेर की गद्दी से अपदस्थ करके विजय सिंह को आमेर का शासक बनाया तथा आमेर का नाम ‘मोमिनाबाद‘ रखा था।
  • पुण्डरीक रत्नाकर ने ‘जयसिंह कल्पदुम‘ नामक पुस्तक लिखी।
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सवाई ईश्वरी सिंह (1743-1750 .)

  • महाराजा सवाई जयसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र ईश्वरीसिंह ने राजकाज संभाला। परन्तु उनके भाई माधोसिंह ने राज्य प्राप्त करने हेतु मराठों एवं कोटा-बून्दी की संयुक्त सेना के साथ जयपुर पर आक्रमण कर दिया।
  • बनास नदी के पास 1747 ई. में राजमहल (टोंक) स्थान पर हुए युद्ध में ईश्वरीसिंह की विजय हुई, जिसके उपलक्ष्य में उन्होंने जयपुर के त्रिपोलिया बाजार में एक ऊंची मीनार ईसरलाट (वर्तमान सरगासूली) का निर्माण कराया।
  • 1750 ई. में मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर ने पुनः जयपुर पर आक्रमण किया। तब सवाई ईश्वरीसिंह ने आत्महत्या कर ली।

महाराजा सवाई माधोसिंह प्रथम (1750-1768 .)

  • जयपुर महाराजा ईश्वरीसिंह द्वारा आत्महत्या कर लेने पर माधोसिंह जयपुर की गद्दीपर बैठे।
  • माधोसिंह के राजा बनने के बाद मराठा सरदार मल्हार राव होल्कर एवं जय अप्पा सिंधिया ने इससे भारी रकम की मांग की, जिसके न चुकाने पर मराठा सैनिकों ने जयपुर में उपद्रव मचाया, फलस्वरूप नागरिकों ने व्रिदोह कर मराठा सैनिकों का कत्लेआम कर दिया।
  • महाराजा माधोसिंह ने मुगल बादशाह अहमदशाह एवं जाट महाराजा सूरजमल (भरतपुर) एवं अवध नवाब सफदरजंग के मध्य समझौता करवाया। इसके परिणामस्वरूप बादशाह ने रणथम्भौर किला माधोसिंह को दे दिया। इससे नाराज हो कोटा महाराजा शत्रुसाल ने जयपुर पर आक्रमण कर नवम्बर, 1761 ई. में भटवाड़ा के युद्ध में जयपुर की सेना को हराया।
  • 1768 ई. में इनकी मृत्यु हो गई। इन्होंने जयपुर में मोती डूंगरी पर महलों का निर्माण करवाया।

सवाई प्रतापसिंह (1778-1803 .)

  • महाराजा पृथ्वीसिंह की मृत्यु होने पर उनके छोटे भाई प्रतापसिंह ने 1778 ई. में जयपुर का शासन संभाला। इनके काल में अंग्रेज सेनापति जॉर्ज थॉमस ने जयपुर पर आक्रमण किया।
  • मराठा सेनापति महादजी सिंधिया को भी जयपुर राज्य की सेना ने जोधपुर नेरश महाराणा विजयसिंह के सहयोग से जुलाई, 1787 में तुंगा के मैदान में बुरी तरह पराजित किया।
  • प्रतापसिंह जीवन भर युद्धों में उलझे रहे फिर भी उनके काल में कला साहित्य में अत्यधिक उन्नति हुई। वे विद्वानों एवं संगीतज्ञों के आश्रयदाता होने के साथ-साथ स्वयं भी ब्रजनिधि नाम से काव्य रचना करते थे।
  • इन्होंने जयपुर में एक संगीत सम्मेलन करवाकर ‘राधागोविंद संगीत सार’ गंथ की रचना करवाई।
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महाराजा रामसिंह द्वितीय (1835-1880 .) 

  • महाराजा रामसिंह को नाबालिग होने के कारण ब्रिटिश सरकार ने अपने संरक्षण में ले लिया। इनके समय मेजर जॉन लुडलो ने जनवरी, 1843 ई. में जयपुर का प्रशासन संभाला सरकार ने अपने संरक्षण में ले लिया।
  • इनके समय मेजर जॉन लुडलो ने जनवरी, 1843 ई. में जयपुर का प्रशासन संभाला तथा उन्होंने सतीप्रथा, दास प्रथा एवं कन्या वध, दहेज प्रथा आदि पर रोक लगाने के आदेश जारी किये।
  • महाराजा रामसिंह को वयस्क होने के बाद शासन के समस्त अधिकार दिये गये। 1857 ई. के स्वतंत्रता आन्दोलन में महाराजा रामसिंह ने अंग्रेजों की भरपूर सहायता की। अंगेजी सरकार ने इन्हें सितार-ए-हिन्द की उपाधि प्रदान की।
  • 1870 ई. में गवर्नर जनरल एवं वायसराय लॉर्ड मेयो ने जयपुर एवं अजमेर की यात्रा की।
  • दिसम्बर, 1875 ई. में गवर्नर जनरल नार्थब्रुक तथा फरवरी, 1876 ई. प्रिंस अल्बर्ट ने जयपुर की यात्रा की। उनकी यात्रा की स्मृति में जयपुर में अल्बर्ट हॉल (म्यूजियम) का शिलान्यास प्रिंस अल्बर्ट के हाथों करवाया गया तथा जयपुर को गुलाबी रंग (1835 – 1880 ई.) से  रंगवाया ।
  • इनके समय सन् 1845 में जयपुर में महाराजा कॉलेज तथा संस्कृत कॉलेज का निर्माण हुआ। महाराजा रामसिंह के काल में जयपुर की काफी तरक्की हुई। 1880 ई. में इनका निधन हो गया।
  • जयपुर के सवाई प्रतापसिंह ने 1799 ई. में हवामहल का निर्माण करवाया। हवामहल में 953 खिड़कियाँ है तथा यह पाँच मंजिला है।
  • जयपुर के जगतसिंह ने ईस्ट इंडिया कम्पनी से सन्धि की थी।
  • जयपुर राजाओं की छतरियाँ गेटोर (नाहरगढ़ के पास) के नाम से जानी जाती है।
  • जयपुर के नाहरगढ़ किले में एक जैसे नौ महल है।

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