बप्पा रावल (734 – 753 ई.) || Bappa Rawal
– गुहिल वंश के वास्तविक संस्थापक बप्पा रावल थे।
– इस वंश की कुल देवी बाणमाता थी तथा अन्नपूर्णा माता इनकी इष्ट देवी थी।
– इस वंश के राजध्वज पर उगता सूरज एवं धनुष-बाण अंकित था।
– कुंभलगढ़ प्रशस्ति (1460 ई.) में बप्पा रावल को ‘विप्र’ कहा गया है।
– बप्पा रावल ने ‘हिन्दुआ सूरज’, ‘राजगुरु चक्कवै’ (चारों दिशाओं का विजेता) की उपाधि धारण की थी। गुहिल वंश के अन्य सभी शासक भी अपने आप को ‘हिन्दुआ सूरज’ कहते थे।
– डॉ. गौरी शंकर हीराचन्द ओझा के अनुसार बप्पा का वास्तविक नाम कालभोज था एवं उसने ‘बप्पा रावल’ उपाधि धारण की थी।
– यह मुस्लिम सेना को हराते हुए गजनी तक पहुँच गया था। सी. वी. वैद्य ने बप्पा रावल को ‘चार्ल्स मार्टेल’ (फ्रांसीसी सेनापति) कहा है।
– राजप्रशस्ति के अनुसार बप्पा रावल ने 734 ई. में चित्तौड़ के शासक मानमोरी को पराजित कर चित्तौड़ पर अधिकार किया और ‘मेवाड़’ राज्य की स्थापना की।
– बप्पा रावल ने ‘नागदा’ को अपनी राजधानी बनाई थी।
– मुहणोत नैणसी एवं कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार बप्पा रावल हरित ऋषि का शिष्य था।
– राजस्थान में ‘सोने के सिक्के’ (115 ग्रेन) सर्वप्रथम बप्पा रावल ने ही चलाए थे। उन्होंने ‘एकलिंग जी के मंदिर’ की स्थापना कैलाशपुरी (उदयपुर) में की व एकलिंग जी को शासक मानते हुए तथा स्वयं को उसका दीवान मानकर शासन किया।
– उदयपुर के कैलाशपुरी में स्थित एकलिंग जी का मंदिर पाशुपत सम्प्रदाय का प्रमुख केन्द्र माना जाता है।
– एकलिंग जी गुहिल वंश के कुलदेवता हैं।
– ‘एकलिंग प्रशस्ति’ में बप्पा रावल से सम्बन्धित दंतकथा मिलती है।
– ‘रणकपुर प्रशस्ति’ में बप्पा रावल और कालभोज को अलग-अलग बताया गया है, परंतु दोनों एक ही हैं।
– बप्पा रावल की समाधि नागदा में स्थित है जिसे ‘बप्पा रावल का मंदिर’ कहा जाता है।