आहड़ सभ्यता – उदयपुर
Aahad Sanhyata
- आहड़ नामक ताम्रयुगीन सभ्यता उदयपुर में आयड़ या बेचड़ नदी के किनारे स्थित है।
- आहड़ सभ्यता का विकास बनास नदी घाटी में माना जाता है।
- दसवीं-ग्यारहवीं शताब्दी में इसे आघाटपुर या आघट दुर्ग के नाम से जाना जाता था। इसे ताम्रवती नगरी भी कहा जाता था।
- इसका एक अन्य नाम धूलकोट भी है।
- इसके उत्खनन का कार्य सर्वप्रथम वर्ष 1953 में अक्षयकीर्ति व्यास के नेत्तृत्व में हुआ।
- यहाँ पर व्यापक उत्खनन कार्य आर. सी. अग्रवाल द्वारा वर्ष 1954 में करवाया गया।
- आर.सी. अग्रवाल ने आहड़ से 12 किमी. दूर मतून एवं उमरा नामक स्थानों पर ताम्र शोधन के साक्ष्य प्राप्त किए हैं।
- 1961-62 में यहाँ वी. एन. मिश्रा एवं एच. डी. सांकलिया द्वारा यहाँ उत्खनन करवाया गया।
- आहड़ के उत्खनन अभियान के समय राजस्थान सरकार की ओर से विजय कुमार एवं पी. सी. चक्रवर्ती भी उपस्थित रहे।
- डॉ. सांकलिया ने इसे आहड़ या बनास संस्कृति कहा है।
- यहाँ पर उत्खनन के फलस्वरूप बस्तियों के कई स्तर प्राप्त हुए हैं।
- आहड़ के उत्खनित स्थल को महासत्तियों का टीला कहा जाता है।
- आहड़ एक ग्रामीण सभ्यता थी।
- आहड़ से नारी की खण्डित मृण्मूर्ति मिली है जो कमर के नीचे लहंगा धारण किए हुए हैं।
- आहड़ से मृण्मूर्तियों में क्रीस्टल, फेन्यास, जैस्पर, सेलखड़ी तथा लेपीस लाजूली जैसे कीमती उपकरणों का प्रयोग किया जाता था।
- पहले स्तर में मिट्टी की दीवारें, मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े तथा पत्थर के ढेर प्राप्त हुए हैं।
- आहड़वासी धूप में सुखाई गई कच्ची ईंटों से मकानों का निर्माण करते थे।
- आहड़वासी कृषि (चावल की खेती) एवं पशुपालन (कुत्ता, हाथी आदि) से परिचित थे।
- गिलूण्ड (राजसमन्द) से आहड़ के समान धर्म संस्कृति मिली है।
- हड़ से छपाई के ठप्पे, आटा पिसने की चक्की, चित्रित बर्तन एवं तांबे के उपकरण मिले हैं।
- आहड़ के लोग मृतकों को कपड़ों एवं आभूषण के साथ गाड़ते थे।
- आहड़ के लोगों के अधिकांशत: आभूषण मिट्टी के मनकों के बने होते थे।
- आहड़वासी लाल एवं काले रंग के मृदपात्रों का उपयोग करते थे।
- तीसरी बस्ती में कुछ चित्रित बर्तन तथा उनका घरों में प्रयोग करना प्रमाणित हुआ है।
- चौथी बस्ती से दो ताँबे की कुल्हाड़ियाँ प्राप्त हुई हैं।
- आहड़वासी ताम्रधातु कर्मी थे।
- आहड़ से अनाज रखने के मृद्भांपड प्राप्त हुए हैं जिन्हें स्थानीय भाषा में ‘गोरे’ यो ‘कोठ’ कहा जाता है।
- आहड़ से ताँबे की छह मुद्राएं तथा तीन मुहरें प्राप्त हुई है जिनका समय तीन ईसा पूर्व से प्रथम ईसा पूर्व है।
- यहाँ से प्राप्त एक मुद्रा पर एक ओर त्रिशूल तथा दूसरी ओर अपोलो देवता का चित्रण किया गया है। इस पर यूनानी भाषा में लेख भी अंकित किया गया है।
- यहां के मिलने वाली तीन मुहरों विहितभ विस, पलितसा तथा तातीय तोम अंकित हैं।
- यहाँ के लोगों का प्रमुख व्यवसाय ताँबा गलाना तथा उससे उपकरण बनाना था।
- आहड़ से पकी ईटों के प्रयोग के प्रमाण नहीं प्राप्त हुए हैं।
- डॉ. गोपीनाथ शर्मा ने आहड़ सभ्यता का समृद्ध काल 1900 ई. पू. से 1200 ई.पू. तक माना है।
- आहड़ से प्राप्त एक ही मकान में 4 से 6 चूल्हों का प्राप्त होना जिस पर एक मानव हथेली की छाप है एवं संयुक्त परिवार व्यवस्था की ओर संकेत करते है।
- आहड़ सभ्यता के लोग मिट्टी के बर्तन पकाने की उल्टी तिपाई विधि से परिचित थे।
- आहड़ से मिट्टी की बनी टेराकोटा वृषभ आकृतियां प्राप्त हुई है जिन्हें बनासियन बुल कहा गया है। जिसे टेराकोटा की संज्ञा दी गई है।
- यहां बड़े कमरों की लंबाई-चौड़ाई 33×20 फीट तक देखी गई है।
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