राज्य के आवश्यक तत्त्व

 भू भागः 

एक ऐसा निश्चित भौगोलिक प्रदेश होता है जहाँ उस राज्य की सरकार अपनी राजनीतिक क्रियाएँ करती है।

 जनसंख्याः 

राज्य के भू-भाग पर निवास करने वाला एक ऐसा जनसमुदाय होना चाहिए, जो राजनीतिक व्यवस्था के अनुसार संचालित होता हो।

 सरकारः 

सरकार एक या एक से अधिक व्यक्तियों का वह समूह है जो व्यावहारिक स्तर पर राजनीतिक शक्ति का प्रयोग करता है ।

– संप्रभुता या प्रभुसत्ता: 

संप्रभुता से तात्पर्य है कि राज्य के पास अर्थात् उसकी सरकार के पास अपने भू-भाग और जनसंख्या की सीमाओं के भीतर कोई भी निर्णय करने की पूरी शक्ति होनी चाहिए तथा उसे किसी भी बाहरी और भीतरी दबाव में निर्णय करने के लिए बाध्य नहीं होना चाहिए।

शासन के अंग (Organs of Government)

(कार्यपालिका (Executive)

शासन के दूसरे अंग को कार्यपालिका कहते हैं। इसका आशय व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह से हैं, जो विधायिका द्वारा निर्मित कानूनों के अनुसार शासन चलाता है अर्थात् कानूनों को लागू करता है।

वर्तमान समय में कार्यपालिका के कई रूप दिखाई पड़ते हैं, जो नीचे बने चित्र में देखकर समझे जा सकते हैं-

उपर्युक्त चार्ट द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण में कार्यपालिका के सबसे महत्त्वपूर्ण दो प्रकार हैं-

–  राजनीतिक कार्यपालिकाः 

यह कार्यपालिका के सर्वोच्च स्तर पर होती है, जिसे जनता निश्चित अवधि के लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चुनती है। उदाहरण के लिए, भारत में केंद्रीय मंत्रिमंडल या अमेरिका में राष्ट्रपति इसी के उदाहरण हैं।

–  स्थायी कार्यपालिकाः 

इसमें वे उच्च पदाधिकारी शामिल होते हैं, जो अधिकारीतंत्र के अंग होते हैं तथा जिनका कार्यकाल किसी तरह के निर्वाचन पर निर्भर नहीं होता। उदाहरण के लिए, भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा अन्य सिविल सेवाओं के अधिकारी इसी के उदाहरण हैं। स्थायी कार्यपालिका को राजनीतिक कार्यपालिका के निर्देशों के अनुरूप कार्य करना होता है।

उपर्युक्त चार्ट से स्पष्ट है कि राजनीतिक कार्यपालिका के भी कई रूप देखे जा सकते हैं, जैसे-

अध्यक्षीय कार्यपालिकाः

– इसमें जनता एक निर्वाचकगण के माध्यम से राजनीतिक कार्यपालिका के प्रमुख अर्थात् राष्ट्रपति का चयन करती ।

– राष्ट्रपति को कार्यपालिका के क्षेत्र में सभी शक्तियाँ प्राप्त होती हैं। उदाहरणार्थ- अमेरिका की कार्यपालिका।

संसदीय कार्यपालिकाः

 इसमें विधायिका के सदस्यों में से ही राजनीतिक कार्यपालिका का चयन होता है। विधायिका में जिस दल सदस्य बहुमत में होते हैं, वही दल अपनी सरकार बनाता है।

– सरकार चलाने वाले इसके सदस्यों के समूह को मंत्रिमंडल कहा जाता है। उदाहरणार्थ- भारत तथा इंग्लैंड।

दोहरी कार्यपालिकाः

– इसके अंतर्गत कार्यपालिका की शक्तियाँ राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री में विभाजित होती हैं। ध्यातव्य है कि इसमें राष्ट्रपति का चुनाव अमेरिका की अध्यक्षीय प्रणाली के समान होता है, जबकि प्रधानमंत्री का चयन ब्रिटिश या भारतीय संसदीय प्रणाली के समान होता है।

उदाहणार्थ- फ्रांस।

बहुल कार्यपालिकाः

– इसके अंतर्गत राजनीतिक कार्यपालिका के सभी सदस्य बराबर शक्तियाँ रखते हैं, उनमें सर्वोच्च अधिकारी का पद सिर्फ औपचारिक या नाममात्र का होता है। उदाहरण के लिए स्विट्जरलैंड की राजनीतिक कार्यपालिका में एक प्रमुख सहित कुल सात सदस्य होते हैं, किंतु इन सातों की शक्तियाँ बराबर होती हैं और प्रमुख के रूप में हर वर्ष इनकी नियुक्ति परिवर्तित होती रहती है।

– भारत में राजनीतिक कार्यपालिका के स्तर पर ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली जैसा ढाँचा स्वीकार किया गया है, जिसके अनुसार लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल मंत्रिमंडल का गठन करता है। मंत्रिमंडल सामूहिक उत्तरदायित्व के सिद्धांत के अनुसार कार्य करता है। राष्ट्रपति भारतीय कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान होता है, किंतु सामान्य स्थितियों में उसे मंत्रिमंडल के निर्देशों के अनुसार ही काम करना होता है।

– राजनीतिक कार्यपालिका के अलावा भारत में स्थायी कार्यपालिका के रूप में एक सशक्त नौकरशाही या अधिकारीतंत्र भी है। इसमें अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारी, केंद्रीय सेवाओं के अधिकारी भी शामिल हैं जबकि राज्यों के स्तर पर उनकी अपनी लोक-सेवाएँ कार्य करती हैं।

विधायिका (Legislative)

– विधायिका का कार्य कानूनों का निर्माण करना है। आधुनिक काल में लोकतंत्र की स्थापना के बाद माना गया कि कानूनों का निर्माण जनता की इच्छाओं के अनुसार होना चाहिए। आजकल अधिकांश देशों में प्रतिनिधि लोकतंत्र (Representative Democracy) के माध्यम से विधायिका का गठन किया जाता है। इसके अंतर्गत एक क्षेत्र विशेष का जनसमुदाय अपने एक प्रतिनिधि को चुनकर विधायिका या विधानमंडल में भेजता है तथा सभी क्षेत्रों से चुनकर आए ऐसे प्रतिनिधि आपसी सहमति से कानूनों का निर्माण करते हैं। चूँकि ये सब प्रतिनिधि जनता द्वारा इसी उद्देश्य के लिए चुने जाते हैं, इसलिए मान लिया जाता है कि इनकी सहमति से निर्मित कानून वस्तुतः जनता की इच्छा के अनुसार ही बनाए गए हैं।

न्यायपालिका (Judiciary)

– शासन का तीसरा अंग न्यायपालिका कहलाता है। न्यायपालिका के कई कार्य हैं। इसका प्रमुख कार्य यह है कि विधायिका द्वारा निर्मित कानूनों के अनुसार विभिन्न विवादों का समाधान करे, किंतु आजकल न्यायपालिका की भूमिका काफी हद तक विधायिका के समान भी होने लगी है। इसका कारण यह है कि कई कानून इतने जटिल और अस्पष्ट होते हैं कि न्यायपालिका को उनकी मौलिक व्याख्या करनी पड़ती है। ये व्याख्याएँ स्वतः कानून का दर्जा प्राप्त कर लेती हैं, जिन्हें न्यायाधीश-निर्मित-कानून या निर्णय-कानून कहते हैं।

राजव्यवस्था (Polity)

– प्रत्येक देश की सरकारों के निर्माण एवं संचालन की एक निश्चित व्यवस्था होती है, जिसे राजव्यवस्था कहते हैं। राजव्यवस्था का मूल आधार उस देश का संविधान होता है।

संविधान का अर्थ (Meaning of the Constitution)

– संविधान एक विधिक दस्तावेज है। संविधान किसी देश की सर्वोच्च व प्राथमिक विधि है, जो सरकार के गठन एवं संचालन के विषय में वर्णन करती है। संविधान न केवल सरकार के लिए दायित्वों का सृजन करता है, बल्कि सरकार की शक्तियों पर सीमायें भी आरोपित करता है। यह ऐसे नियमों, सिद्धांन्तों आदि की रूपरेखा निर्मित करता है।

– सरकार के तीन अंग होते है- कार्यपालिका, विधायिकका एवं न्यायपालिका। संविधान सरकार के तीनों अंगों की संरचना, गठन, कार्य एवं कार्यप्रणाली का वर्णन करता है। यह एक गतिशील दस्तावेज है अर्थात् परिवर्तित परिस्थितियों के अनुरूप इसमें परिवर्तन होता रहता है जिससे प्रत्येक अवस्था में यह सरकारों के अबाध संचालन को सुनिश्चित कर सके।

संविधान की आवश्यकता (Need of the Constitution)

संविधान की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से अनुभव की जाती है :

1. सरकार को शक्तियाँ सौंपना और सरकार की शक्तियों पर सीमायें सुनिश्चित करना।

2. सरकार का निर्माण कैसे होगा, यह सुनिश्चित करना।

3. समाज में निर्णय लेने की शक्ति किसके पास होगी, यह निर्धारित करना।

4. समाज में न्यूनतम समन्वय व विश्वास सुनिश्चित करने की व्यवस्था निर्मित करना।

5. एक न्यायपूर्ण एवं समतामूलक परिस्थिति का निर्माण करना।

6. नागरिकों के हितों की रक्षा करना।

7. सरकार को जनता की अपेक्षाओं को पूर्ण करने हेतु समर्थ बनाना।

संविधान का वर्गीकरण (Classification of the Constitution)

  1. लिखित संविधान (Written Constitution) : जब संविधान एक दस्तावेज के रूप में उपलब्ध हो, तब उसे लिखित संविधान कहते हैं, जैसे – भारत, अमेरिका, फ्रांस के संविधान।
  2. अलिखित संविधान  (Unwritten Constitution):

जब संविधान लिखित दस्तावेज के रूप में उपलब्ध न हो बल्कि रूढ़ियों, प्रथाओं, अभिसमयों, न्यायिक निर्णयों इत्यादि के द्वारा स्वयं विकसित हुआ हो, तब उसे अलिखित संविधान कहते हैं, जैसे – ब्रिटेन का संविधान

  1. कठोर संविधान (Rigid Constitution) : जब संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल हो तब उसे कठोर संविधान कहते हैं, जैसे – अमेरिका का संविधान।
  2. लचीला संविधान (Flexible Constitution) :

जब संविधान में संशोधन करने की प्रक्रिया सरल हो तब उसे लचीला संविधान कहते हैं, जैसे – ब्रिटेन का संविधान विश्व का सर्वाधिक लचीला संविधान है।

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