मनोविज्ञान (Psychology):- ‘साइकोलॉजी’ शब्द की उत्पत्ति यूनानी (ग्रीक) भाषा के दो शब्दों से हुई है-
साइकी (Psyche), जिसका अर्थ है- आत्मा (Soul) और लोगस (Logos) जिसका अर्थ है- अध्ययन (Study)। इस प्रकार साइकोलॉजी (मनोविज्ञान) का अर्थ है- आत्मा का अध्ययन/विज्ञान (Study of the Soul)
● एबिंगहास:- ‘मनोविज्ञान का वर्तमान स्वरूप नया है परन्तु इसका इतिहास बहुत पुराना है।‘
● अरस्तू (384 ई.पू. से 322 ई.पू.) ने दर्शनशास्त्र में आत्मा के अध्ययन की शुरुआत की थी और यही आत्मा का अध्ययन आगे चलकर आधुनिक मनोविज्ञान बना; इसलिए अरस्तू को मनोविज्ञान का जनक माना जाता है।
● मनोविज्ञान की उत्पत्ति दर्शनशास्त्र से हुई है।
मनोविज्ञान का क्रमश: विकास
1. आत्मा का विज्ञान (Science of Soul) :- अरस्तू, प्लेटो।
यूनानी दार्शनिक प्लेटो, अरस्तू और देकार्ते ने मनोविज्ञान को आत्मा का विज्ञान माना। कालान्तर में आत्मा के विषय में सवाल पैदा हो गए। आत्मा क्या है, कैसी है एवं उसका रंग, रूप, आकार क्या है?
● आत्मा की व्याख्या, उसके अस्तित्व एवं प्रामाणिकता का उत्तर न दे पाने के कारण 16वीं शताब्दी में मनोविज्ञान का यह अर्थ (आत्मा का विज्ञान) अस्वीकार कर दिया गया।
2. मन/मस्तिष्क का विज्ञान (Science of Mind):- इटली के दार्शनिक पोम्पोनॉजी ने मनोविज्ञान को नया अभिप्राय दिया, जिसे मन/मस्तिष्क का अध्ययन करने वाला विज्ञान कहा गया।
समर्थक- हॉब्स, जॉन लॉक, कान्ट, स्पिनोजा, लिबिनिज, ह्यूम और बर्कले द्वारा।
मनोविज्ञान की यह परिभाषा करीब 1870 ई. तक सर्वमान्य रही।
मन के स्वरूप तथा प्रकृति का निर्धारण न होने के कारण यह परिभाषा भी अस्वीकार कर दी गई।
3. चेतना का विज्ञान (Science of Consciousness) :- 19वीं शताब्दी में विलियम जेम्स, विलियम वुण्ट, जेम्स सल्ली, वाइव्स, टिचनर और चेडविक आदि विद्वानों ने मनोविज्ञान को चेतना का विज्ञान कहा, उन्होंने कहा कि मनोविज्ञान मनुष्य की चेतन क्रियाओं का अध्ययन करता है परन्तु वे ‘चेतना’ शब्द के अर्थ के सम्बन्ध में एकमत न हो सके और यह अभिप्राय भी अस्वीकार कर दिया गया, जिसके प्रमुख कारण निम्न है-
● इंग्लैण्ड के विद्वान विलियम मैक्डूगल ने अपनी पुस्तक “The Outline of Psychology” में ‘चेतना’ शब्द की आलोचना की और लिखा कि “मनोविज्ञान का यह दुर्भाग्य है कि लोग इसे चेतना का विज्ञान मानते हैं।“
● सिगमण्ड फ्रॉयड ने अपने मनोविश्लेषण सिद्धांत में बर्फ के टुकड़े का उदाहरण देते हुए बताया कि मानव मन का चेतन भाग केवल (1/10), 12.5% है और बाकी 87.5% (9/10) भाग अचेतन व अर्द्धचेतन है।
Note :- प्रसिद्ध जर्मन मनोवैज्ञानिक विलियम वुण्ट ने 1879 ई. में लिपजिंग (जर्मनी) के कार्लमार्क्स विश्वविद्यालय (कॉर्नविल्स) में मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के लिए प्रथम मनोविज्ञान प्रयोगशाला स्थापित की। इसी कारण से विलियम वुण्ट को प्रयोगात्मक मनोविज्ञान का जनक कहा जाता है।
विलियम वुण्ट को मनोविज्ञान को दर्शनशास्त्र से अलग करने का श्रेय दिया जाता है।
4. व्यवहार का विज्ञान (Science of Behaviour) :- मनोविज्ञान का वर्तमान अभिप्राय 20वीं सदी के आरम्भ में आया। प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक J.B. वाटसन ने इसे व्यवहार का विज्ञान कहा। इसी कारण से J.B. वाटसन को व्यवहारवाद का जनक कहा जाता है।
● सन् 1913 में जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में व्यवहारवाद की स्थापना J.B. वाटसन ने की थी। वाटसन का मत था कि मनोविज्ञान की विषयवस्तु चेतन या अनुभूति नहीं हो सकता है क्योंकि इसे प्रेक्षण ही नहीं किया जा सकता है। इनका मत था कि मनोविज्ञान व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान है, व्यवहार का प्रेक्षण भी किया जा सकता है तथा मापा भी जा सकता है।
● व्यवहारवादी मनोविज्ञान को उद्दीपक-अनुक्रिया मनोविज्ञान (Stimulus-Respond Psychology) भी कहा जाता है, क्योंकि जीव का प्रत्येक व्यवहार किसी न किसी तरह के उद्दीपक (Stimulus) के प्रति एक अनुक्रिया (Responses) ही होता है।
● व्यवहारवाद के अनुसार मनोविज्ञान की अध्ययन विधि प्रयोग, अनुबंधन तथा प्रेक्षण विधि है।
● व्यवहारवाद में पर्यावरणीय कारकों को महत्त्वपूर्ण माना जाता है।
● वाटसन ने कहा कि :- “तुम मुझे एक बालक दो मैं उसे कुछ भी बना सकता हूँ, इंजीनियर, डॉक्टर, वकील, चोर, डाकू कुछ भी।” (1925 में)
अत: वर्तमान में मनोविज्ञान का अभिप्राय व्यवहार का विज्ञान/अध्ययन है।
● प्रमुख व्यवहारवादी :- B.F. स्कीनर, टॉलमैन, थॉर्नडाइक, ईवान पेट्रोविच पावलॉव, वुडवर्थ, क्लार्क हल आदि।
● मनोविज्ञान के क्रमश: विकास को प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक R.S. वुडवर्थ ने अपने शब्दों में व्यक्त करते हुए अर्थयात्रा परिभाषा दी। “मनोविज्ञान ने सबसे पहले अपनी आत्मा, फिर मन का त्याग, फिर चेतना का त्याग किया और वर्तमान में व्यवहार के स्वरूप को अपनाए हुए हैं।”
● प्रमुख परिभाषाएँ :-
(1) वाटसन :- “मनोविज्ञान, व्यवहार का सकारात्मक/धनात्मक/निश्चित विज्ञान है।”
(2) R.S. वुडवर्थ :- “मनोविज्ञान, वातावरण के सम्बन्ध में व्यक्ति की क्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।”
(3) स्कीनर :- “मनोविज्ञान, व्यवहार और अनुभव का विज्ञान है।”
(4) बोरिंग, लैंगफेल्ड व वेल्ड :- “मनोविज्ञान, मानव-प्रकृति का अध्ययन है।”
(5) क्रो व क्रो :- “मनोविज्ञान, मानव-व्यवहार और मानव-सम्बन्धों का अध्ययन है।”
(6) मैक्डूगल :- “मनोविज्ञान, मानव के आचरण एवं व्यवहार का यथार्थ विज्ञान है।“
(7) स्कीनर :– “मनोविज्ञान व्यवहार का आधारभूत विज्ञान है।“
(8) जेम्स ड्रेवर :– “मनोविज्ञान व्यवहार का विशुद्ध विज्ञान है।“
(9) सैन्ट्रोक :- “मनोविज्ञान व्यवहार एवं मानसिक प्रक्रियाओं का वैज्ञानिक अध्ययन है।”
(10) पिल्सबरी :- “मनोविज्ञान मानव व्यवहार का विज्ञान है।”
विशिष्ट तथ्य :
● साइकोलॉजी (मनोविज्ञान) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सोलहवीं सदी में सन् 1590 में यूनानी दार्शनिक रूडोल्फ गोयक्ले ने अपनी पुस्तक साइकोलॉजिया (Psychologia) में किया।
● मनोविज्ञान का जनक – अरस्तू। (पुस्तक – डी-एनिमा)
● कॉलसनिक के अनुसार मनोविज्ञान का जनक – प्लेटो।
● आधुनिक मनोविज्ञान का जनक – विलियम जेम्स।
● प्रयोगात्मक मनोविज्ञान के जनक – विलियम वुण्ट
● मनोविज्ञान की विषयवस्तु-व्यवहार एवं संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का अध्ययन करना है।
● वाटसन ने मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान कहा, उसने मनोविज्ञान को वस्तुपरक (Objective) बनाने के लिए उत्तेजक (Stimulus) प्राणी (Organism) तथा अनुक्रिया (Response) पर बल दिया। (S-O-R)
● मनोविज्ञान की विशेषताएँ/प्रकृति :
1. मनोविज्ञान एक विधायक विज्ञान/वस्तुपरक/सकारात्मक विज्ञान (Positive Science) है।
2. मनोविज्ञान एक अनुप्रयुक्त विज्ञान (Applied Science) है।
3. मनोविज्ञान, भौतिक एवं सामाजिक दोनों प्रकार के वातावरण का अध्ययन करता है।
4. मनोविज्ञान न केवल व्यक्ति के व्यवहार, अपितु पशु-व्यवहार का भी अध्ययन करता है।
5. मनोविज्ञान, वातावरण का अध्ययन करता है जो व्यक्ति की ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करता है और वह अपनी कर्मेन्द्रियों द्वारा वातावरण के प्रति प्रतिक्रिया (Response) करता है।
6. मनोविज्ञान सभी प्रकार की ज्ञानात्मक क्रियाओं (Cognitive Activities); जैसे- स्मरण, कल्पना, संवेदना, चिंतन, तर्क संवेदना, प्रत्यक्षीकरण, सम्प्रत्यय आदि; संवेगात्मक क्रियाओं (Emotional Activities); जैसे- रोना, हँसना, क्रोध करना, ईर्ष्या और क्रियात्मक क्रियाओं (Motor Activities) जैसे; चलना, फिरना, नाचना का अध्ययन करता है।
7. मनोविज्ञान व्यवहार का विज्ञान है।
● मनोविज्ञान की प्रमुख शाखाएँ:
1. बाल मनोविज्ञान :- मनोविज्ञान की वह शाखा जिसके अन्तर्गत बालक के प्रारंभिक विकास एवं व्यवहार से संबंधित अध्ययन किया जाता है। अर्थात् गर्भावस्था से किशोरावस्था तक मानव विकास का अध्ययन करना।
2. किशोर मनोविज्ञान :- वह शाखा जिसमें किशोरावस्था से संबंधित विशेषताओं एवं व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है।
3. प्रौढ़ मनोविज्ञान :- किशोरावस्था के बाद की मानव विकास की अवस्था जिसमें व्यक्ति प्रौढ़ हो जाता है जहाँ उसके कार्य व्यवहार, सोच, अभिवृत्ति आदि में परिपक्वता आ जाती है।
4. सामान्य मनोविज्ञान :- जब मानव के सामान्य परिस्थितियों में होने वाले व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।
5. असामान्य मनोविज्ञान :- असामान्य व्यक्ति अर्थात् पागल, मनोरोगी, असामाजिक व्यवहार (जिसका व्यवहार सामान्य बालक से भिन्न हो) आदि का अध्ययन करने वाली शाखा, जो मनोचिकित्सा से संबंधित है, असामान्य मनोविज्ञान कहलाता है।
6. सामुदायिक मनोविज्ञान :- सामाजिक परिस्थितियों के संदर्भ में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाली शाखा।
7. पशु मनोविज्ञान :- मनोविज्ञान की वह शाखा, जिसमें पशुओं के व्यवहार का अध्ययन होता है। इसमें पशुओं की विभिन्न प्रजातियों का तुलनात्मक अध्ययन (समानता और अंतर) किया जाता है।
8. वैयक्तिक मनोविज्ञान :- व्यक्तियों में पाई जाने वाली भिन्नता, समानता का अध्ययन करना।
9. परामनोविज्ञान :-
● सबसे नवीनतम शाखा।
● प्रमुख व्यक्ति :- हेनरी सिजविक, जेबी राइन
● परामनोविज्ञान एक विधा है जो वैज्ञानिक विधि का उपयोग करते हुए इस बात की जाँच-परख करने का प्रयत्न करती है कि मृत्यु के बाद भी मनोवैज्ञानिक क्षमताओं का अस्तित्व रहता है या नहीं।
● परामनोविज्ञान का संबंध मनुष्य की उन अधिसामान्य शक्तियों से है, जिनकी व्याख्या अब तक के प्रचलित सामान्य मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों से नहीं हो पाती।
● आधुनिक परामनोविज्ञान का प्रारंभ सन् 1882 से ही मानना चाहिए जिस वर्ष लंदन में परामनसिकीय अनुसंधान के लिए “सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च” (एस.पी.आर.) की स्थापना हुई। यद्यपि इससे पहले भी कैब्रिज में ‘घोस्ट सोसाइटी’ तथा ऑक्सफोर्ड में ‘फैस्मेटोलॉजिकल सोसाइटी’ जैसे संस्थान रह चुके थे तथा एक संगठित वैज्ञानिक प्रयत्न का आरंभ ‘एस.पी.आर.’ की स्थापना से ही हुआ। जिसकी पहली बैठक 17 जुलाई, 1882 में प्रसिद्ध दार्शनिक हेनरी सिजविक की अध्यक्षता में हुई।
● आधुनिक परामनोवैज्ञानिकों में जे.बी.राइन, प्रैट, गार्डनर मर्फी, जी.एन.एम. टिटेल कैरिंगटन, एम.जी.सोल, के.एम. गोल्डने के नाम उल्लेखनीय है।
● इसके अन्तर्गत उन परासामान्य घटनाओं का अध्ययन किया जाता है जिसकी ज्ञात नियमों एवं तथ्यों द्वारा व्याख्या नहीं की जा सकती है।
जैसे:- अतीन्द्रिय प्रत्यक्षण, अतिन्द्रिय दृष्टि आदि।
10. शिक्षा मनोविज्ञान :- मनोविज्ञान की वह शाखा जो बालक की शैक्षिक परिस्थितियों की व्याख्या करती है। शिक्षा मनोविज्ञान शिक्षा की प्रक्रिया में मानव व्यवहार का अध्ययन करने वाला विज्ञान है।
● यह मनोविज्ञान के सिद्धांतों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग करता है।
● मनोविज्ञान की अनुप्रयुक्त व्यावहारिक शाखा है।
11. अपराध मनोविज्ञान :- अपराधी के व्यवहार को समझना उस तक पहुँचना एवं उसे सामान्य बनाने की प्रक्रिया से संबंधित विज्ञान।
● मनोविज्ञान की प्राचीन शाखा
● जनक – सीजर लेम्ब्रोसो (1908)
12. औद्योगिक मनोविज्ञान :- औद्योगिक परिस्थितियों में मानव व्यवहार, घटनाओं आदि का अध्ययन करना।
13. प्रयोगात्मक मनोविज्ञान :- जिसमें मनोवैज्ञानिक परीक्षणों तथा प्रयोगों को मनोवैज्ञानिक अध्ययन का केन्द्र बनाया जाता है। प्रयोगात्मक मनोविज्ञान में कार्य व कारण के मध्य संबंध को जाना जाता है।
14. विकासात्मक मनोविज्ञान :- मनोविज्ञान की वह शाखा जिसमें गर्भाधान से लेकर बालक के जन्म, वृद्धावस्था तक होने वाली सभी प्रकार की वृद्धि एवं विकास का क्रमबद्ध अध्ययन करने का कार्य करता है।
15. नैदानिक मनोविज्ञान :- नैदानिक मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की सबसे बड़ी शाखा है। इसमें कुसमायोजन के कारणों एवं परिस्थितियों का उचित निदान करके उसे समायोजन में सहायता करने तथा उसके व्यवहार में उचित सुधार लाने का कार्य किया जाता है।
मनोविज्ञान के प्रमुख सम्प्रदाय :
1. संरचनावाद (Structuralism) :-
● जनक – विलियम वुण्ट
● स्थापना – विलियम वुण्ट, E.B. टिचेनर।
● मनोविज्ञान का पहला व प्राचीन सम्प्रदाय।
● संरचनात्मक की स्थापना 1892 में विलियम वुण्ट के शिष्य E.B. टिचेनर ने कॉर्नेल विश्वविद्यालय (अमेरिका) में की थी लेकिन संरचनावाद की स्थापना में विलियम वुण्ट को अग्रणी माना जाता है क्योंकि टिचेनर ने मूलत: वुण्ट के विचारों को ही थोड़ा परिवर्तन करके प्रस्तुत किया है।
प्रमुख विधियाँ :- अन्तर्निरीक्षण/अन्त:दर्शन (Introspection) तथा प्रयोग (Experiment)।
● 1879 ई. में लिपजिंग (जर्मनी) नामक स्थान पर विलियम वुण्ट ने पहली मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला स्थापित की।
● इस विचार के अनुसार प्राणी से छोटे-छोटे प्रत्यय मिलकर एक संगठित प्रकार की संरचना का निर्माण कर लेते हैं।
● संरचनावाद ने मनोविज्ञान को प्रयोगात्मक बनाया।
● विलियम वुण्ट को संरचनावाद एवं अंत:दर्शन विधि का जनक माना जाता है। बालक-बालिकाओं द्वारा स्वयं की मानसिक प्रक्रियाओं का निरीक्षण करना अन्त:दर्शन कहलाता है। यह मनोविज्ञान की सबसे प्राचीन विधि है।
● विलियम वुण्ट ने भाव के त्रिविमीय सिद्धांत का प्रतिपादन किया, जिसके अनुसार भाव की तीन विमाएँ हैं-
1. उत्तेजन – शांत 2. सुख – दु:ख 3. तनाव – शिथिलता
● वुण्ट ने चेतन अनुभूति के दो तत्त्व माने हैं-
1. संवेदन (Sensation) 2. भाव (Feeling)
● टिचेनर ने चेतना के 3 (तीन) मूल तत्त्व माने हैं-
1. संवेदन 2. भाव 3. प्रतिमा (Image)
● विलियम वुण्ट ने चेतना की दो विशेषताएँ बताई-
1. गुण (Quality) 2. तीव्रता (Intensity)
● टिचेनर ने इनमें 2 और विशेषताएँ जोड़ दी-
1. गुण 2. तीव्रता 3. स्पष्टता 4. अवधि
2. प्रकार्यवाद सम्प्रदाय (Functionalism):
● 1895 ई. में
● जनक – विलियम जेम्स (अमेरिका)
● प्रकार्यवाद की स्थापना अनौपचारिक ढंग से विलियम जेम्स ने 1890 में की।
● प्रकार्यवाद की औपचारिक स्थापना 1895 में जॉन डीवी, एंजिल, कार्र ने की थी।
● विकास/प्रचलन में लाने का श्रेय – जॉन डी. वी. (अमेरिका)
● प्रकार्यवाद की स्थापना संरचनावाद के विरोध में हुई।
● विलियम जेम्स की पुस्तक The Principles of Psychology (मनोविज्ञान के सिद्धांत) सन् 1890 में प्रकाशित हुई, जो मनोविज्ञान की आधारशिला बन गई।
● विलियम जेम्स को आधुनिक मनोविज्ञान का जनक माना जाता है।
● इसके अन्तर्गत कार्य के साथ व्यवहार को व्यवस्थित करना एवं अधिगम संबंधित व्यवहारों को देखना है।
● प्रकार्यवाद का मत था कि मनोविज्ञान की विषयवस्तु चेतन की संरचना या तत्त्व नहीं हो सकते हैं, बल्कि चेतन के कार्य (Functions) हो सकते हैं।
● जॉन डीवी ने 1894 में शिकागो विश्वविद्यालय में अमेरिका के शिक्षा मनोविज्ञान की पहली वृहत् प्रयोगशाला स्थापित की।
● विलियम जेम्स ने चेतन सरिता का सम्प्रत्यय दिया।
3. व्यवहारवाद (Behaviourism):
● जनक – J.B. वाटसन (अमेरिका)
● स्थापना – सन् 1913 में J.B. वाटसन द्वारा जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय में की गई।
● पुस्तक – Behaviourism (1924)
● प्रमुख व्यवहारवादी :- B.F. स्कीनर, ईवान पैट्रोविच पावलॉव, C.L. हल, थॉर्नडाइक, टॉलमैन, गुथरी आदि।
● व्यवहारवाद के अनुसार मनोविज्ञान व्यवहार के अध्ययन का विज्ञान है, व्यवहार का प्रेक्षण भी किया जा सकता है तथा मापा भी जा सकता है।
● प्रमुख विधियाँ – प्रयोग, अनुबंधन, प्रेक्षण विधि (निरीक्षण)।
● पर्यावरणीय कारकों पर बल।
● पुनर्बलन के महत्त्व पर बल।
● व्यवहारवादी मनोविज्ञान को उद्दीपक-अनुक्रिया मनोविज्ञान भी कहा जाता है क्योंकि जीव का प्रत्येक व्यवहार किसी-न-किसी तरह के उद्दीपक (Stimuluis) के प्रति अनुक्रिया (Responses) होती है।
● मनोविज्ञान में व्यवहारवाद को द्वितीय बल (Second Force) के रूप में भी माना जाता है।
4. मनोविश्लेषणवाद सम्प्रदाय (Psychoanalysis):
● प्रतिपादक – सिगमण्ड फ्रॉयड (वियना)
● सन् 1900 में।
● मनोविश्लेषणवाद को मनोविज्ञान में प्रथम बल कहा जाता है।
● इसके अनुसार मानव की मानसिक जिन्दगी एक हिमशैल (Iceberg) (बर्फ का टुकड़ा) के समान होता है। इसी के आधार पर चेतन, अर्द्धचेतन एवं अचेतन मन की व्याख्या की। (स्थलाकृतिक मॉडल)
● फ्रॉयड का मत था कि व्यक्ति का व्यवहार एवं चिंतन अचेतन बलों द्वारा अधिक निर्धारित होते हैं।
● इसके संरचनात्मक/गत्यात्मक मॉडल में इदम (Id), अह (ego) पराहं (Super ego) की चर्चा की गई है।
● इस सम्प्रदाय को गतिक मनोविज्ञान भी कहते हैं।
● इस सम्प्रदाय को अधिक विकसित करने का श्रेय इनके शिष्य कॉर्ल युंग, एडलर और फ्रॉयड की पुत्री अन्ना फ्रॉयड को जाता है।
5. गेस्टाल्टवाद सम्प्रदाय:
● स्थापना – मैक्स वर्दाइमर ने सन् 1912 में।
● समर्थक – कोहलर, कोफ्का, कुर्त लेविन
● गेस्टाल्ट – जर्मन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है- सम्पूर्णाकार/समग्र/पूर्णांकार/समाकृति/प्रारूप।
● गेस्टाल्ट मनोविज्ञान का विचार था कि व्यक्ति किसी वस्तु या पैटर्न का प्रत्यक्षण एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में करता है।
● प्रमुख सूत्र – पूर्ण से अंश की ओर।
● इसके अनुसार प्राणी सूझ (Insight)/ अन्तर्दृष्टि द्वारा सीखता है।
पूर्वज्ञान – सूझ – अहा अनुभव – सीखना
● अमेरिकी विद्वान कोहलर ने प्रयोग किया। (चिम्पाजी पर)
● गेस्टाल्टवाद ने प्रत्यक्षण के क्षेत्र में 2 नियम बताए-
1. प्रत्यक्षज्ञानात्मक संगठन के नियम।
2. समकृतिकता का नियम
● गेस्टाल्टवाद ने चिंतन के तीन प्रकार बताएँ-
1. A उत्पादक चिन्तन
2. B अंशत: उत्पादक व अंशत अनुत्पादक एवं यांत्रिक
3. Y प्रयास एवं त्रुटि
Note :- गेस्टाल्टवाद को अवयवीवाद भी कहते हैं।
6. साहचर्यवाद सम्प्रदाय (Associationism):
● प्रस्तुतकर्ता :–जॉन लॉक (इंग्लैण्ड)
● कोई भी बालक जन्म के बाद जिस वातावरण के संपर्क में साहचर्य करता है उसी के अनुसार वह अपना व्यवहार भी निर्मित करता है।
● जॉन लॉक : – “जन्म के समय बालक का मस्तिष्क एक कोरे कागज (टेबुला रासा) के समान खाली होता है जिस पर वह अपने अनुभव लिखता है।”
● इन्हें अनुभववाद का जनक भी कहा जाता है।
7. प्रेरकीय/प्रयोजनवादी/हार्मिक सम्प्रदाय :
● जनक – विलियम मैक्डूगल।
● ‘Hormic’ शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के Horme शब्द से हुई है, जिसका अर्थ है- वृत्ति।
● यह मूलप्रवृत्ति (Instincts) द्वारा अभिप्रेरित मौलिक लक्ष्य-उन्मुखी (Goal-Oriented) या उद्देश्यपूर्ण व्यवहारों के संग्रहण पर आधारित है।
● मैक्डूगल के अनुसार आचरण व व्यवहार ही प्रेरक/प्रयोजन को वर्णित करते हैं।
● विलियम मैक्डूगल ने मूल प्रवृत्ति सिद्धांत दिया और उसमें 14 मूल प्रवृत्तियों का उल्लेख किया।
8. मानवतावादी सम्प्रदाय – (Humanistic):
● प्रतिपादक – अब्राहम मैस्लो
● समर्थक – कॉर्ल रोजर्स
● मानवतावाद को मनोविज्ञान में तृतीय बल (Third Force) कहा जाता है।
● मैस्लो ने अभिप्रेरणा की आवश्यकता पदानुक्रम सिद्धांत प्रस्तुत किया, जिसमें उच्चतम आवश्यकता आत्म सिद्धि (Self-Actualization) है।
● कार्ल रोजर्स ने रोगी केन्द्रित चिकित्सा (Client Centered Therapy) का प्रतिपादन किया। (1951 में)
9. संज्ञानात्मक मनोविज्ञान (Cognitive Psychology):
● यह व्यक्ति की मानसिक प्रक्रियाओं जैसे स्मृति चिंतन, कल्पना, बोध, समझ, समस्या, समाधान, सम्प्रत्यय निर्माण, तर्कणा एवं निर्णय लेने की प्रक्रियाओं आदि का अध्ययन करता है।
● प्रमुख संज्ञानवादी :- जीन पियाजे, जेरोम ब्रूनर, डेविड आसुबेल, नॉम चोमस्की आदि।
● यह मानव को एक ऐसा सक्रिय प्राणी मानता है जो नई-नई अनुभूतियों की खोज करता है, उन्हें परिवर्तित करता है और मानसिक प्रक्रियाओं के माध्यम से संज्ञानात्मक विकास करता है।
● जीन पियाजे (स्विट्जरलैण्ड) ने संज्ञानात्मक विकास का सिद्धांत दिया, जिसमें इन्होंने मानसिक विकास की 4 अवस्थाओं का वर्णन किया।
10. गत्यात्मक मनोविज्ञान :
● वुडवर्थ – जनक
● वुडवर्थ ने S-O-R सूत्र दिया।
मनोविज्ञान के प्रमुख लक्ष्य (Goals):
1. व्यवहार एवं संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं का वर्णन (Description) करना।
2. व्यवहार एवं संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं को समझना एवं व्याख्या (Explanation) करना।
3. व्यवहार एवं संज्ञानात्मक प्रक्रिया का पूर्वकथन (Prediction) करना।
4. व्यवहार एवं संज्ञानात्मक प्रक्रिया को नियंत्रित (Contral) करना।
5. मनोविज्ञान का मानव कल्याण में उपयोग (Apply)
विशिष्ट तथ्य:
1. अमेरिकन मनोवैज्ञानिक संघ – स्थापना – 1892 में
2. भारतीय मनोवैज्ञानिक संघ – स्थापना – 1924
3. 1915 में पहली भारतीय मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला प्रो. एन. एन. सेन गुप्ता ने कलकत्ता विश्वविद्यालय में स्थापित की।
4. 1916 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान का प्रथम विभाग खुला तथा 1938 में अनुप्रयुक्त मनोविज्ञान का विभाग प्रारम्भ किया गया।
5. वुडवर्थ ने S-O-R का सम्प्रत्यय विकसित किया।
6. अर्थ के संदर्भ सिद्धांत (1915 में) का प्रतिपादन – टिचेनर ने।
7. मनरहित मनोविज्ञान – वाटसन।
8. इंडियन सॉयकोएनालिटिक सोसायटी – 1922 ई. में प्रो. गिरिन्द्रशेखर बोस द्वारा
9. साइकोलॉजी इन ए थर्ड वर्ल्ड कंट्री : द इंडियन एक्सपीरियेंस – दुर्गानंद सिन्हा (1986 में प्रकाशित)
मनोविज्ञान की उपयोगिता :
1. शिक्षा के क्षेत्र में मनोविज्ञान की उपयोगिता।
2. निर्देशन एवं परामर्श के क्षेत्र में।
3. चिकित्सा क्षेत्र में।
4. व्यापार एवं उद्योग क्षेत्र।
5. कानून एवं अपराध क्षेत्र में।
6. राजनीति के क्षेत्र में।
7. सैन्य विज्ञान के क्षेत्र में।
8. शिक्षा के क्षेत्र में।
9. समायोजन और मानसिक स्वास्थ्य हेतु।
10. आत्मविकास हेतु।
11. सद्भावना एवं विश्व शांति हेतु मनोविज्ञान की उपयोगिता।
शिक्षा (Education)
शिक्षा शब्द का अभिप्राय :
● शिक्षा शब्द की उत्पत्ति संस्कृत की ‘शिक्ष्’ धातु से हुई है जिसका अर्थ है – सीखना।
● अंग्रेजी भाषा के शब्द एजुकेशन (Education) शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘एडुकेयर’ (Educare) एवं एडुसीयर (Educere) से हुई है जिसका अर्थ है- बाहर लाना, आगे बढ़ाना।
अत: व्यवहार में परिमार्जन या प्रकाशित करने वाली क्रिया, शिक्षा कहलाती है।
Note :- शिक्षा शीर्षक नामक पुस्तक की रचना स्वामी विवेकानंद ने की।
● शिक्षा के अर्थ :
1. प्रचलित अर्थ :- सीखने-सिखाने की क्रिया।
2. वास्तविक अर्थ :- व्यवहार को परिमार्जित/प्रकाशित करने वाली क्रिया।
3. संकुचित अर्थ :- किसी विद्यालय में पढ़ना।
4. व्यापक अर्थ :- जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया जिसमें व्यक्ति परिस्थितियों में सार्वभौमिक रूप से अनुभव व प्रशिक्षण के माध्यम से सीखता है।
● शिक्षा की परिभाषाएँ :-
1. अरस्तू :- “स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण ही शिक्षा है।”
2. प्लेटो :- “शिक्षा व्यक्ति में शारीरिक, मानसिक एवं बौद्धिक परिवर्तन लाती है।”
3. स्वामी विवेकानन्द :- “मनुष्य में अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति ही शिक्षा है।”
4. गाँधीजी :- “शिक्षा से मेरा अभिप्राय बालक के शरीर, मस्तिष्क एवं आत्मा के सर्वोत्तम विकास से है।”
5. फ्रॉबेल :- “शिक्षा बालक की आंतरिक शक्तियों का बाह्य प्रकटीकरण है।”
6. पेस्टोलॉजी :- “शिक्षा बालक आन्तरिक अभियोग्यताओं का स्वाभाविक, समरस एवं प्रगतिशील विकास है।”
7. जॉन डीवी :- शिक्षा बालक की उन सभी योग्यताओं का विकास हैं जिनके द्वारा वह अपने वातावरण पर नियंत्रण करने की क्षमता प्राप्त करता है तथा अपनी संभावनाओं को पूर्ण करता है।
8. डमविल :- “अपने व्यापक अर्थ में शिक्षा में वे सब प्रभाव सम्मिलित रहते हैं, जो व्यक्ति पर उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक पड़ते हैं।”
9. जॉन लॉक :- “जिस प्रकार से फसल के लिए कृषि होती है, उसी प्रकार से मनुष्य के लिए शिक्षा होती है।”
10. क्रो एण्ड क्रो :- “शिक्षा व्यक्तीकरण व समाजीकरण की प्रक्रिया है जो व्यक्ति की उन्नति व समाज उपयोगिता को बढ़ावा देती है।“
11. कॉलसनिक :- “शिक्षा बालक में शारीरिक व मानसिक विकास करती है।”
12. राधाकृष्णन :- शिक्षा को मनुष्य और सम्पूर्ण समाज का निर्माण करना चाहिए, इस कार्य को किए बिना शिक्षा अनुर्वर व अपूर्ण है।
13. जे. कृष्णमूर्ति :- शिक्षा आपके बच्चों को शिक्षित करने के लिए है ताकि वे जीवन को पूर्ण रूप से समझ सकें न कि मात्र जीवन के एक हिस्से को, एक ऐसा मानव सामने आए जो रचनात्मक रूप से सक्षम हो, संपूर्ण एकीकृत दृष्टिकोणयुक्त हो।
अत: शिक्षा से ही व्यक्ति का सर्वांगीण विकास संभव है। जिससे व्यक्ति अपनी अन्तर्निहित शक्तियों का बाहरी वातावरण के साथ समन्वय स्थाापित करता है। शिक्षा व्यक्ति एवं समाज दोनों के कल्याण के लिए आवश्यक तत्त्व हैं।
● शिक्षा के प्रकार :
1. औपचारिक शिक्षा (Formal Education) :- जिसका समय व स्थान निश्चित होता है, जैसे- विद्यालय में शिक्षा प्राप्त करना।
2. अनौपचारिक शिक्षा (Informal Education) :- जिसका समय व स्थान निश्चित नहीं होता है। यह जीवनपर्यन्त अनवरत रूप से चलती है।
जैसे- परिवार, समाज में सीखना।
3. निरौपचारिक शिक्षा (Non-Formal Education) :- दूरस्थ शिक्षा, पत्राचार एवं खुले विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों द्वारा प्रदान की जाने वाली शिक्षा।
Note:- प्रसिद्ध विद्वान जॉन डीवी ने अपनी पुस्तक ‘शिक्षा एवं समाज’ में शिक्षा के तीन तत्त्व बताए और शिक्षा को त्रिमार्गीय प्रक्रिया बताया।
● जॉन डीवी ने प्रगतिशील शिक्षा की अवधारणा दी।
● जॉन एडम्स ने शिक्षा को द्विमुखी प्रक्रिया कहा है।
छात्रशिक्षक
शिक्षा मनोविज्ञान (Education Psychology):
● अर्थ :- शिक्षा में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण आ जाना ही शिक्षा मनोविज्ञान है। जिसमें विद्यार्थी के व्यवहार का शैक्षिक वातावरण के संदर्भ में अध्ययन किया जाता है।
● शिक्षा मनोविज्ञान दो शब्दों के योग से बना है- ‘शिक्षा’ और ‘मनोविज्ञान’।
● उत्पत्ति :- मनोविज्ञान की शाखा के रूप में शिक्षा मनोविज्ञान की उत्पत्ति सन् 1900 में हुई।
● जनक :- थॉर्नडाइक (अमेरिका)
● पुस्तक :- शिक्षा मनोविज्ञान (1903)
● थॉर्नडाइक, जड, टर्मन, स्टेनले हॉल आदि के सतत प्रयासों से शिक्षा मनोविज्ञान ने सन् 1920 में स्पष्ट व निश्चित स्वरूप धारण किया।
● सही अर्थ में शिक्षा मनोविज्ञान का इतिहास 1880 में फ्रांसिस गाल्टन द्वारा दिए गए योगदानों से प्रारम्भ होता है।
● शिक्षा और मनोविज्ञान को जोड़ने वाली कड़ी है- मानव व्यवहार।
● शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान के सिद्धांतों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग है।
शिक्षा मनोविज्ञान की परिभाषाएँ :
1. स्कीनर :- “शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान की वह शाखा है जो शिक्षण एवं सीखने से संबंधित है।”
2. क्रो एण्ड क्रो :- “शिक्षा मनोविज्ञान व्यक्ति के जन्म से लेकर वृद्धावस्था तक के सीखने सम्बन्धी अनुभवों का वर्णन और व्याख्या करता है।”
3. कॉलसनिक :- “शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान के सिद्धांत व अनुसंधानों का शिक्षा में प्रयोग है।”
4. पील :- “शिक्षा मनोविज्ञान, शिक्षा का विज्ञान है।”
5. स्टीफन :- “शिक्षा मनोविज्ञान, बालक के क्रमबद्ध शैक्षिक विकास का अध्ययन है।”
6. बी. एन. झा :- “शिक्षा की प्रक्रिया पूर्णतया, मनोविज्ञान की कृपा पर निर्भर है।”
● उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर निम्न बातें स्पष्ट होती हैं-
1. मनोविज्ञान और शिक्षा में घनिष्ठ संबंध है।
2. शिक्षा मनोविज्ञान का केन्द्र मानव व्यवहार है।
3. शिक्षा मनोविज्ञान, खोज और निरीक्षण से प्राप्त किए गए तथ्यों का संग्रह है।
4. शिक्षा मनोविज्ञान, मनोविज्ञान के सिद्धांतों का शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग है।
5. शिक्षा मनोविज्ञान के सिद्धांत और पद्धतियाँ शैक्षिक सिद्धांतों और प्रयोगों को आधार प्रदान करते हैं।
6. शिक्षा मनोविज्ञान की प्रकृति वैज्ञानिक है।
7. शिक्षा मनोविज्ञान एक विधायक विज्ञान है।
8. यह अनुप्रयुक्त विज्ञान (Applied) है।
9. शिक्षा, मानव व्यवहार में परिवर्तन करके उसे अच्छा बनाने का प्रयास करती है।
10. यह शैक्षणिक परिस्थितियों का वैज्ञानिक अध्ययन करता है।
11. शिक्षा का आधार मनोविज्ञान है।
12. शिक्षा और मनोविज्ञान का उभयनिष्ठ लक्ष्य अधिगमकर्ता के व्यवहार में परिवर्तन लाना है।
● थॉर्नडाइक पर प्रकृतिवादी विचारक, रूसो की पुस्तक ‘Emile’ (इमाइल) का प्रभाव पड़ा। इमाइल का प्रकाशन 1762 में हुआ, जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि व्यक्ति में ज्ञान का अर्जन उसकी अनुभूति के कारण होता है।
● 18वीं शताब्दी के मध्य में रूसो ने शैक्षिक अध्यापन सिद्धांत का प्रतिपादन किया तथा इस बात पर बल डाला कि स्वाभाविक (प्राकृतिक) रुझान के अनुसार बच्चों को शिक्षा दी जानी चाहिए।
● ‘Emile’ रूसो का एक प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसमें रूसो ने लिखा कि “बालक एक पुस्तक के समान है शिक्षक को उसे आद्योपान्त (शुरू से अंत) पढ़ना चाहिए।” इसके इसी विचार के कारण रूसो को शिक्षा में मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण लाने का श्रेय दिया जाता है।
● शिक्षा मनोविज्ञान के आधार पर शिक्षक-प्रशिक्षणों की शुरुआत वर्ष 1900 में अमेरिका में हुई, जिसके प्रणेता जॉन डीवी माने जाते हैं।
● थॉर्नडाइक विश्व के प्रथम शिक्षा शास्त्री (शैक्षिक मनोवैज्ञानिक) कहलाते हैं।
● जॉन डीवी को विश्व के प्रथम शिक्षाविद् माना जाता है।
● भारत में मनोवैज्ञानिक तरीके से शिक्षक प्रशिक्षणों की शुरुआत वर्ष 1920 में हुई।
● ‘टॉक टू टीचर्स’ के लेखक – विलियम जेम्स ने, 1899 में (इसे शिक्षा मनोविज्ञान की पहली पाठ्यपुस्तक माना जाता है।)
● डेमोक्रेटिस पहले ऐसे दार्शनिक थे जिन्होंने बच्चों के व्यक्तित्व विकास में घरेलू शिक्षा के महत्त्व पर बल डाला।
शिक्षा मनोविज्ञान के क्षेत्र :
1. मानव अभिवृद्धि एवं विकास :- विभिन्न अवस्थाओं में बालक के विकास वंशानुक्रम व वातावरण, अभिवृद्धि एवं विकास सामाजिक, संवेगात्मक, नैतिक, गामक विकास, भाषा विकास आदि का अध्ययन किया जाता है।
2. अधिगम प्रक्रिया :- अधिगम का अर्थ, प्रकृति, प्रभावित करने वाले तत्त्व, अधिगम के सिद्धांत नियम, अधिगम स्थानान्तरण प्रविधियाँ आदि का अध्ययन किया जाता है।
3. व्यक्तिगत विभिन्नताएँ :- इसके अन्तर्गत बालकों की रुचि, दृष्टिकोण, स्तर आदि के आधार पर उनको किस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए। विशिष्ट बालकों के अनुसार उनका पाठ्यक्रम निर्माण, शिक्षण विधि का चयन आदि शिक्षा-मनोविज्ञान के आधार पर किए जाते हैं।
4. मानसिक स्वास्थ्य एवं संज्ञानात्मक प्रक्रिया :- बालकों के मानसिक स्वास्थ्य के अनुसार उनकी संज्ञानात्मक प्रक्रियाओं जैसे- संवेदना, प्रत्यक्षीकरण, सम्प्रत्यय विकास, अवधान, बोध, समस्या-समाधान, चिंतन, तर्क, स्मृति, कल्पना, प्रत्यय निर्माण का अध्ययन किया जाता है।
5. मापन एवं मूल्यांकन :- शिक्षा मनोविज्ञान छात्रों के व्यवहार, बुद्धि निष्पति/उपलब्धि, अभिवृद्धि, अभिरुचि, अधिगम आदि का मापन एवं मापन के परिणामों का मूल्यांकन करता है एवं उसके आधार पर उनके व्यवहार की भविष्यवाणी की जा सकती है।
6. निर्देशन एवं परामर्श :- शिक्षा मनोविज्ञान बालकों के निर्देशन एवं परामर्श में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
● लिण्डग्रेन (1972) ने शिक्षा मनोविज्ञान के 5 कार्यक्षेत्र बताए-
(i) शिक्षक व शिक्षार्थी
(ii) अधिगम प्रक्रिया
(iii) अधिगम परिस्थिति
(iv) मापन व मूल्यांकन
(v) निर्देशन व परामर्श
Note :- लिण्डग्रेन ने शिक्षार्थी, अधिगम प्रक्रिया व अधिगम परिस्थिति को शिक्षा मनोविज्ञान के तीन केंद्रीय क्षेत्र माना है।
● गैरिसन ने शिक्षा मनोविज्ञान के चार क्षेत्र बताए-
(i) बाल विकास
(ii) अधिगम और शिक्षण प्रक्रिया
(iii) विकास का मूल्यांकन
(iv) बालक का निर्देशन
● शिक्षा मनोविज्ञान का महत्त्व :– शिक्षा मनोविज्ञान ने शिक्षा के क्षेत्र में वैचारिक (Theoretical) एवं व्यावहारिक (Practical) परिवर्तन किए हैं। शिक्षा के क्षेत्र की रूढ़धारणाओं, पूर्वाग्रहों को तोड़ा है एवं नवीन धारणाओं का विकास किया है। अध्यापक, छात्र एवं अभिभावक सभी के लिए इसका वैचारिक एवं व्यावहारिक महत्त्व है। शिक्षा मनोविज्ञान का महत्त्व निम्नलिखित हैं-
1. बाल-केन्द्रित शिक्षा (Child-Centred Education) :- प्राचीन काल में शिक्षा अध्यापक-केन्द्रित एवं विषय-केन्द्रित थी। उसमें बालक को महत्त्व नहीं दिया जा था, उसके मस्तिष्क को खाली स्लेट समझा जाता था, जिसे ज्ञान से भरना शिक्षक का मुख्य कर्तव्य था लेकिन वर्तमान में शिक्षा मनोविज्ञान के प्रभाव से शिक्षा का मुख्य केंद्र बालक है। बालक की रुचि, स्तर, योग्यता, अभिरुचि आदि के अनुसार शिक्षण विधि-प्रविधि का चयन एवं पाठ्यक्रम निर्माण किया जाता है।
● अत: वर्तमान में शिक्षा बालक के लिए है, न कि बालक शिक्षा के लिए।
2. शिक्षण पद्धति में परिवर्तन :- प्राचीन काल में शिक्षा रटने पर बल देती थी, जिसमें सभी आयु स्तर के बालकों के लिए एक-सी शिक्षण विधियों का प्रयोग किया जाता था जो उचित नहीं था क्योंकि बालक जैसे-जैसे बड़ा होता जाता है, वैसे-वैसे उसकी रुचियाँ और आवश्यकताएँ परिवर्तित होती है।
● वर्तमान में शिक्षण की नवीन पद्धतियों का विकास हुआ है जो बालक की स्वतंत्र अभिव्यक्ति एवं रुचि को महत्त्व देती है एवं शिक्षा का उद्देश्य बालक की अन्तर्निहित शक्तियों का विकास करना है। नवीन पद्धतियाँ जैस- खेल विधि, प्रोजेक्ट विधि (Project) डाल्टन विधि, किण्डरगार्टन विधि, साहचर्य विधि आदि जो बालक के सर्वांगीण विकास का महत्त्व देती है। वर्तमान में “करके सीखना” पर बल दिया जाता है।
3. पाठ्यक्रम में सुधार (Reform in Curriculum) :- शिक्षा-मनोविज्ञान के प्रभाव से पाठ्यक्रम में सुधार आया है। पहले पाठ्यक्रम पूर्ण रूप से पुस्तकीय एवं ज्ञान प्रधान था जिसमें सब विषय सभी बालकों के लिए अनिवार्य थे, लेकिन वर्तमान में पाठ्यक्रम का निर्माण बालकों की आयु, स्तर, योग्यता, समझ, रुचि एवं मानसिक क्षमता को ध्यान में रखकर किया जाता है।
4. पाठ्यसहयागी क्रियाओं पर बल (Co-Curricular Activities) :- शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक का सर्वांगीण विकास करना है, अत: सर्वांगीण विकास के लिए शैक्षिक क्रियाओं के साथ-साथ पाठ्यसहगामी क्रियाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है, इसी कारण से वर्तमान में विद्यालयों में खेल-कूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, वाद-विवाद प्रतियोगिता, निबन्ध-लेखन, बालचर विधा, अभिनय एवं नाटक, संगीत, शैक्षिक भ्रमण, अंत्याक्षरी आदि क्रियाओं को पाठ्यक्रम में स्थान दिया गया है।
5. बालकों की व्यक्तिगत विभिन्नताओं को महत्त्व (Importance Of Individual Differences of Childrens) :- प्राचीन विधियों में सभी प्रकार के बालकों के लिए समान प्रकार की शिक्षा व्यवस्था थी, जो सर्वथा अनुचित है क्योंकि बालकों की रुचियों, क्षमताओं, योग्यताओं आदि में अन्तर होता है। इसी आधार पर सामान्य बालक, मंद-बुद्धि बालक, पिछड़े बालक, समस्यात्मक बालक, प्रतिभाशाली बालक, अपराधी बालक एवं विभिन्न दोषों वाले बालकों के लिए अलग-अलग विद्यालयों में अलग-अलग प्रकार की शिक्षा व्यवस्था की जाती है।
6. अनुशासन की नई विधियाँ (New Methods of Dicipline) :- प्राचीन शिक्षा में बालकों में अनुशासन रखने की एक ही विधि थी शारीरिक दण्ड, मनोविज्ञान ने विद्यालय में दण्ड और भय पर आधारित कठोर अनुशासन को अनुचित सिद्ध किया है, इसके स्थान पर प्रेम, प्रशंसा, सहानुभूति, पुनर्बलन आदि को अनुशासन के अच्छे आधार बताए हैं। हमें अनुशासनहीनता के कारणों को खोजना और उनको दूर करना चाहिए।
7. बालकों की रुचियों एवं मूल प्रवृत्तियों को महत्त्व :- मनोविज्ञान ने यह सिद्ध किया कि जिस कार्य में बालकों की रुचि होती है, उसे वे जल्दी सीखते हैं एवं वे कार्य करने में अपनी मूल-प्रवृत्तियों से प्रेरणा प्राप्त करते हैं। अत: अब बालकों की शिक्षा का आधार उनकी रुचियाँ और मूल-प्रवृत्तियाँ हैं।
8. शिक्षा के उद्देश्य प्राप्ति में सहायक (Helpful in Achieving Aims of Education):- शिक्षा-मनोविज्ञान शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति में सहायक है, यह निश्चित रूप से बताता है कि किस प्रकार से उनकी प्राप्ति संभव है। शिक्षा मनोविज्ञान के आधार पर ही शिक्षक यह जान पाता है कि वह अपने उद्देश्य प्राप्ति में सफल हुआ है या नहीं।
9. मापन एवं मूल्यांकन की नवीन विधियाँ (New Methods of Measurement and Evaluation):- शिक्षा-मनोविज्ञान का महत्त्वपूर्ण योगदान है, मापन एवं मूल्यांकन की नवीन विधियों का विकास एवं प्रयोग। पूर्व की मूल्यांकन पद्धतियों के दोषों को दूर करने के लिए मनोविज्ञान ने अनेक नवीन विधियों का विकास किया है, जैसे- बुद्धि परीक्षा, व्यक्तित्व परीक्षा, अभिवृत्ति मापन, वस्तुनिष्ठ एवं प्रायोगिक परीक्षाएँ; इनमें मूल्यांकन की मुख्य विशेषताओं जैसे- विश्वसनीयता, वस्तुनिष्ठता, व्यापकता, विभेदकारिता का ध्यान रखा जाता है।
10. निर्देशन एवं परामर्श :- शिक्षा-मनोविज्ञान अध्यापक को बालकों के निर्देशन एवं परामर्श प्रदान करने का ज्ञान प्रदान करता है। जिससे अध्यापक विद्यार्थियों का उचित मार्गदर्शन करता है।
11. विद्यार्थी को समझना (To know the learnes) :- शिक्षा-मनोविज्ञान अध्यापक को छात्रों को समझने का अवसर प्रदान करता है, जैसे-
● बच्चों के दृष्टिकोण, रुचियों, अभिरुचियों एवं जन्मजात योग्यताओं एवं शक्तियों को जानना।
● उसका अभिप्रेरित व्यवहार समझना
● उनके मानसिक स्वास्थ्य को जानना।
● बालकों की आवश्यकताओं का ज्ञान।
● उसके चेतन, अर्द्धचेतन एवं अचेतन व्यवहार को जानना
12. खोज एवं अनुसंधान (Research) :- शिक्षा-मनोविज्ञान के क्षेत्र में अनेक अनुसंधान की संभावना है। नवीन अनुसंधान अध्यापक को नवीन शिक्षण पद्धतियों, विधियों, व्यूह-रचना आदि का ज्ञान करवाता है। क्रियात्मक अनुसंधान के माध्यम से विद्यालयी समस्याओं का समाधान करता है।
13. नए ज्ञान का आधार पूर्व ज्ञान :- स्टाउट का मत है कि “शिक्षा सिद्धांत को मनोविज्ञान द्वारा दिया जाने वाला मुख्य सिद्धांत यह है कि नवीन ज्ञान का विकास पूर्व ज्ञान के आधार पर किया जाना चाहिए।”
अध्यापक हेतु शिक्षा मनोविज्ञान का महत्त्व/उपयोगिता :-
1. बालकों को जानना।
2. जन्मजात स्वभाव का ज्ञान प्राप्त करने में सहायक।
3. बालकों की आवश्यकताओं एवं समस्याओं को जानने में सहायक।
4. बालक के विकास का ज्ञान प्राप्त करने में सहायक।
5. व्यक्तिगत विभिन्नताओं को जानने में सहायक।
6. विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास में सहायक।
7. शिक्षण-विधि, प्रविधि का चयन करने में।
8. समय-सारणी का निर्माण करने में।
9. उपयोगी पाठ्यक्रम का निर्माण करने में सहायक।
10. शिक्षण-प्रक्रिया को प्रभावी बनाने में।
11. अनुशासन स्थापित करने में।
12. निर्देशन एवं परामर्श प्रदान करने में।
13. अध्यापक-छात्र संबंधों को मधुर बनाने में।
14. बाल-केन्द्रित शिक्षा व्यवस्था बनाने में।
15. नवीन शिक्षण विधियों के उचित प्रयोग करने में सहायक।
16. विद्यालय के भौतिक एवं सामाजिक वातावरण में अपेक्षित सुधार लाना।
17. स्वयं के आत्मज्ञान प्राप्त करने में, योग्यता, कमियों, रुचि को सुधारने में।
18. शिक्षा से संबंधित विभिन्न समस्याओं का समाधान।
19. क्रियात्मक अनुसंधान में।
20. मापन एवं मूल्यांकन में।
21. निदानात्मक एवं उपचारात्मक शिक्षण में।
22. नवीन विधियों को समझकर दक्षता वृद्धि करने में।
23. चरित्र निर्माण में सहायक।
24. शिक्षा के उद्देश्यों की सफल प्राप्ति में।
25. विषयवस्तु, सीखने संबंधी अनुभवों का चयन एवं आयोजन में।