रैढ़ सभ्यता – टोंक

Raidhh Sabhyata

  • रैढ़ टोंक जिले की निवाई तहसील में ढील नदी के किनारे स्थित पुरातात्त्विक स्थल है।
  • यह एक लौह युगीन सभ्यता है।
  • यहाँ पर उत्खनन कार्य वर्ष 1938-39 में दयाराम साहनी के नेत्तृत्व में तथा अंतिम रूप में उत्खनन कार्य डॉ. केदारनाथ पूरी के द्वारा करवाया गया।
  • उत्खनित क्षेत्र का विवरण के.एन. पुरी ने जयपुर शासन के तत्वाधान में एस्केवैशनएट रैढ़ में प्रकाशित किया है।
  • रैढ़ के उत्खनन से बड़ी मात्रा में मिलने वाले लौह उपकरणों तथा मुद्राओं के कारण इसे प्राचीन भारत का टाटानगर कहा जाता है।
  • यह एक धातु केंद्र था जहाँ पर औद्योगिक कार्य एवं निर्यात हेतु उपकरण एवं औजार बनाए जाते थे।
  • रैढ़ में उत्खनन से 3075 आहत मुद्राएं तथा 300 मालव जनपद के सिक्के प्राप्त हुए है। यहाँ से यूनानी शासक अपोलोडोट्स का एक खण्डित सिक्का भी प्राप्त हुआ है।
  • रैढ़ में उत्खनन से हल्के गुलाबी रंग से मिट्‌टी का बना एक संकीर्ण गर्दन वाला फूलदान प्राप्त हुआ है।
  • यहाँ से प्राप्त मृद्भांपड चक्र से निर्मित है तथा यहाँ से विभिन्न प्रकार के मिट्‌टी के बर्तन प्राप्त हुए हैं।
  • रैढ़ के मृद्भांमडो में गोल ‘रिंग वेल्स’ एक दूसरे पर लगा दिए जाते थे।
  • रैढ़ में पकाई गई मातृ देवी व शक्ति के विभिन्न रूपों की मूर्तियां प्राप्त हुई है।
  • यहाँ से कर्णफूल, गले का हार, चूड़ियां, पायजेब आदि आभूषणों के प्रमाण प्राप्त हुए हैं।
  • यहाँ से आलीशान इमारतों के अवशेष भी प्राप्त हुए हैं।
  • रैढ़ से मृतिका से बनी यक्षिणी की प्रतिमा प्राप्त हुई है जो संभवत: शुंग काल की मानी जाती है।
  • यहाँ से मालव जनपद के 14 सिक्के, 6 सेनापति सिक्के एवं 7 वपू के सिक्के प्राप्त हुए हैं।
  • रैढ़ से एशिया का अब तक का सबसे बड़ा सिक्कों का भण्डार मिला है।
  • रैढ़ से जस्ते को साफ करने के प्रमाण मिले है।
  • रैढ़ के निवासी मोटा एवं बारीक कपड़ा बनाने में सिद्धहस्त थे।
  • अशोक तकनीक से पॉलिश किया हुआ चूनार बलूआ पत्थर का एक बड़ा प्याला भी मिला है जो संभवत: बाहर से आयात किया हुआ है।
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