सोनार गढ़ किला (जैसलमेर)

  • जैसलमेर दुर्ग सदा से उत्तरी सीमा का प्रहरी रहा है तथा ‘उत्तर भड़ किंवाड’ का यशस्वी विरूद धारण करने वाले भाटी राजपूतो के शौर्य और बलिदान का प्रतीक भी, इसकी प्रशंसा में लोक प्रसिद्ध दोहा – 

गढ़ दिल्ली गढ़ आगरो, अधगढ़ बीकानेर। 

भलो चिणायो भाटियां, सिरै तो जैसलमेर।। 

भड़ किंवाड़ उतराध रा, भाटी झालण भार। 

वचन राखों ब्रिजराज रा, समहर बांधों सार।।

  • रावल जैसल द्वारा सन् 1155 ई. में निर्मित यह किला सोनारगढ़ या सोनगढ़ कहलाता है। 
  • यह दुर्ग पूर्णतः पीले पत्थरों से निर्मित होने के कारण सूर्य किरणों में स्वर्णआभा लिये प्रतीत होते है। 
  • जैसलमेर से पूर्व भाटी राजाओं की राजधानी लोद्रवा थी वहां के शासक भोजदेव के शासनकाल में किसी अज्ञात आक्रांत ने लोद्रवा पर आक्रमण कर उसे उजाड़ दिया। जब रावल जैसल गद्दी पर बैठा तो उसने लोद्रवा को बाह्य आक्रमणों से असुरक्षित जानकर भाटी वंश की राजधानी जैसलमेर में स्थापित की। 
  • रावल जैसल अपने द्वारा स्थापित दुर्ग का केवल थोड़ा ही भाग बना पाये थे उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र शालिवाहन द्वितीय ने इस दुर्ग का अधिकाश निर्माण कार्य करवाया। 
  • इस दुर्ग के साथ इतिहास प्रसिद्ध ढाई साकों की गौरव गाथा जुड़ी हुई है। पहला साका उस समय हुआ जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने एक विशाल सेना के साथ दुर्ग पर आक्रमण किया। उस समय जैसलमेर के राजा रावल मूलराज थे उनके साथ कुंवर रतनसी भी वीर गति को प्राप्त हुए तथा ललनाओं ने जौहर किया। 
  • जैसलमेर का दूसरा साका फिरोजशाह तुगलक के शासन के प्रारम्भिक वर्षों में हुआ। रावल दूदा, त्रिलोकसी आदि भाटी योद्धा वीर गति को प्राप्त हुए एवं ललनाओं ने जौहर का अनुष्ठान किया। 
  • जैसलमेर का तीसरा साका ‘अर्द्ध साका’ कहलाता है। कारण इसमें वीरों ने केसरिया तो किया लेकिन जौहर नहीं हुआ। यह ‘अर्द्ध साका’ उस समय हुआ जब कंधार के अमीर अली पठान ने धोखे से रावल लूणकरण पर आक्रमण कर दिया। 
  • यह दुर्ग त्रिकूटाकृति का है, जिसमें 99 बुर्ज (सर्वाधिक बुर्ज) है।
  • यह दुर्ग ‘त्रिकूट’ पहाड़ी पर स्थित है। 
  • इस किले का मुख्य द्वार – अक्षयपोल है तथा इसका दोहरा परकोटा ‘कमरकोट’ कहलाता है। 
  • अन्य प्रवेश द्वार – सूरजपोल, गणेशपोल और हवापोल। 
  • दुर्ग के भीतर बने प्रमुख महल – सर्वोत्तम विलास (शीश महल), रंगमहल, मोतीमहल, गजविलास, जवाहरविलास, बादल महल। 
  • किले के भीतर पेयजल का प्राचीन स्रोत – जैसल कुआ। 
  • जैसलमेर दुर्ग के भीतर बने प्राचीन एवं भव्य जैन मंदिर तो कला के उत्कृष्ट नमूने है। इनमें पार्श्वनाथ, संभवनाथ, ऋषभदेव तथा 12वीं शताब्दी में निर्मित आदिनाथ मंदिर सबसे प्राचीन है। 
  • इस दुर्ग की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें हस्तलिखित ग्रन्थों का एक दुर्लभ भण्डार उपस्थित है। इनमें अनेक ग्रन्थ ताड़पत्रो पर लिखे हैं तथा वृहद आकार के हैं। हस्तलिखित ग्रन्थों का सबसे बड़ा संग्रह जैन आचार्य जिनभद्रसूरी के नाम पर ‘जिनभद्र सूरी ग्रन्थ भण्डार’ दुर्ग में स्थित हैं।
  • वीरता एवं शौर्य का प्रतीक जैसलमेर दुर्ग इतिहास, साहित्य और कला की त्रिवेणी का अनूठा संगम स्थल है। 
  • यहाँ के भाटी राजपूत अपने को यदुवंशी, यानी श्रीकृष्ण का वंशज मानते है। 
  • भाटी राजपूत जैसलमेर दुर्ग की चर्चा करते समय, अपने पूर्ववर्ती दुर्गों का भी स्मरण इस दोहे में करते है – 
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काशी मथुरा, प्रागबड़ गजनी अरु भटनेर। 

दिगम देरावल, लुद्रावों नमो जैसमलेर ।। 

  • यह दुर्ग राजस्थान का तीसरा प्राचीनतम दुर्ग है। दुर्ग – संरचना में यह मही या धान्वन दुर्ग की कोटि में आता है। 
  • इस किले के चारों और दोहरा परकोटा है, जिसे कमरकोट कहा जाता है। जिसे स्थानीय लोग ‘पाड़ा’ कहते है। 
  • जैसलमेर को ‘रेगिस्तान का गुलाब‘ (सुन्दर हवेलियों के कारण) कहा जाता है। 

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