संघीय विधायिका
भारत संविधान में संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली को अपनाया गया है, जिसे सरकार का वेस्मिंस्टर मॉडल भी कहा जाता है। संसदीय लोकतंत्र में संसद के सामान्यत: तीन लक्षण होते हैं, प्रथम – यह जनता का प्रतिनिधित्व करती है, द्वितीय – इसमें उत्तरदायित्वपूर्ण सरकार होती है तथा तृतीय – मंत्रिपरिषद् लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है।
भारतीय संसद राष्ट्रपति, लोकसभा एवं राज्यसभा से मिलकर बनती है। राष्ट्रपति इसका अभिन्न अंग होता है, क्योंकि कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की स्वीकृति के पश्चात् ही विधि बन पाता है। संसद की संरचना, अवधि, अधिकारों, प्रक्रियाओं, विशेषाधिकारों तथा शक्तियों का वर्णन संविधान के भाग – 5 के अंतर्गत अनुच्छेद 79 से 122 में किया गया है।

संसद
पृष्ठभूमि
– भारत की संघीय व्यवस्था को संसद कहा जाता है। संसद केन्द्र सरकार का विधायी अंग हैं। संसदीय प्रणाली, जिसे सरकार का ‘वेस्टिमिंस्टर मॉडल’ भी कहा जाता हैं।
– भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में संसद एक विशिष्ट एवं केन्द्रीय स्थान रखती है।
संविधान में प्रावधान
– संविधान के भाग-5 के अन्तर्गत अनुच्छेद 79 से 122 में संसद के गठन, संरचना, अवधि, अधिकारों, प्रक्रियाओं, विशेषाधिकारों व शक्तियों के बारे में वर्णन किया गया है।
संसद का गठन
– संविधान के अनुच्छेद – 79 के अनुसार संघ के लिए एक संसद होगी जो राष्ट्रपति और दोनों सदनों से मिलकर बनेगी जिसमें राज्यसभा और लोकसभा होंगे। सन् 1954 में राज्य परिषद् एवं जनता का सदन के स्थान पर क्रमश: राज्यसभा और लोकसभा शब्द को अपनाया गया था। राज्यसभा में राज्य व संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं, जबकि लोकसभा भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करती है।
– राष्ट्रपति के पास संसद के सत्र को आहूत करने, तथा लोकसभा को भंग करने की शक्ति प्राप्त है। राष्ट्रपति संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं होता और न ही वह किसी सदन की अध्यक्षता करता है, वह संसद का एक अभिन्न अंग होता है। संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कोई विधेयक तब तक विधि नहीं बनता, जब तक राष्ट्रपति उसे अपनी स्वीकृति नहीं दे देता है।
प्रथम आम चुनाव
– भारत का संविधान 26 जनवरी, 1950 को प्रवर्तित हुआ था। नये संविधान के अनुसार प्रथम आम चुनाव 26 अक्टूबर, 1951 से शुरू हुए तथा 21 फरवरी, 1952 को खत्म हुए थे। इस प्रकार प्रथम लोकसभा 17 अप्रैल, 1952 को अस्तित्व में आई थी। वर्तमान भारत में मई, 2019 से 17 वीं लोकसभा कार्य कर रही हैं।
संसद की शक्तियाँ
विषय सूची पर कानून बनाना
– भारतीय संविधान ने संसद को संघ सूची, समवर्ती सूची एवं अवशिष्ट विषयों पर कानूनों का निर्माण करने का अधिकार दिया हैं।
संयुक्त बैठक
– संयुक्त बैठक में विधेयक दोनों सदनों में उपस्थित तथा मत देने वाले सदस्यों की कुल संख्या के बहुमत से पारित हो जाता हैं। अनुच्छेद 108(1) में प्रावधान किया गया है कि यदि किसी विधेयक को एक सदन द्वारा पारित किये जाने और दूसरे सदन को भेजे जाने के बाद उस विधेयक को अस्वीकार कर दिया गया है या असहमत है तो ही संयुक्त बैठक का प्रावधान हैं।
कार्यपालिका पर नियंत्रण
– लोकसभा कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है। लोकसभा समय-समय पर मंत्रियों से उनके विभागों के कार्यों एवं उपलब्धियों के संबंध में प्रश्न कर सकती हैं। वार्षिक बजट और अनुदान संबंधी मांग भी लोकसभा के समक्ष रखी जाती है और इस प्रकार के समस्त व्यय की स्वीकृति देने का एकाधिकार लोकसभा को ही प्राप्त हैं।
– संविधान संशोधन के संबंध में लोकसभा और राज्यसभा दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं।
– धन विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है। प्रधानमंत्री एवं मंत्रिपरिषद् के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव लोकसभा में लाए जा सकते हैं।
अनुच्छेद 249
– अनुच्छेद 249 के अनुसार राज्यसभा राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित कर सकती हैं।
नई अखिल भारतीय
– अनुच्छेद-312 के अनुसार राज्यसभा प्रस्ताव पारित कर नई अखिल भारतीय सेवाएँ स्थापित करने का अधिकार केन्द्रीय सरकार को दे सकती है।
संसद के सत्र, स्त्रावसान और विघटन
– संविधान के अनुच्छेद 85 के अनुसार राष्ट्रपति संसद के सत्र को आहूत (बुलाना) करवाता है तथा उसका सत्रावसान (समापन) करवाता है और प्रधानमंत्री की सिफारिश पर लोकसभा को भंग भी कर सकता है।
संसद के दो सत्रों के मध्य 6 माह से अधिक अन्तराल नहीं हो सकता हैं।
– परम्परानुसार संसद के वर्ष में तीन नियमित सत्र होते हैं–
1. बजट सत्र (फरवरी-मई)
2. मानसून सत्र (जुलाई-सितम्बर)
3. शीतकालीन सत्र (नवम्बर- दिसम्बर)
– राज्यसभा का बजट सत्र दो सत्रों में पूर्ण होता है, इसलिए इसके वर्ष में चार नियमित सत्र होते हैं।
संसद का सत्रावसान
– राष्ट्रपति समय-समय पर सदनों का या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा। सत्रावसान से आशय सत्र की समाप्ति से हैं। राष्ट्रपति के आदेश से ही संसद का दुबारा सत्र आयोजित किया जाता हैं।
सदन का स्थगन
– स्थगन से अभिप्राय संसद के अधिवेशन में होने वाले उस संक्षिप्त अवकाश से हैं जो सदन के अध्यक्ष द्वारा घोषित किया जाता हैं। सदन की बैठकों का स्थगन अध्यक्ष या सभापति द्वारा किया जाता है।
भारतीय संसद-गठन
मुख्य आधार | राज्यसभा | लोकसभा |
संरचना संबंधी अनुच्छेद | 80 | 81 |
अधिकतम सदस्य संख्या | 250 (238 निर्वाचित +12 मनोनीत) | 550 (530 राज्यों से + 20 संघ शासित प्रदेशों से) |
वर्तमान सदस्य संख्या | 245 [225 राज्यों से + 8 संघ शासित प्रदेशों से (दिल्ली – 3, पुडुचेरी – 1, जम्मू कश्मीर – 4) + 12 मनोनीत] | 545 (524 राज्यों से + 19 संघ शासित प्रदेशों से + दो मनोनीत आंग्ल भारतीय)नोट :- 104वें संविधान संशोधन अधिनियम 2020 के तहत लोकसभा में राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 331 के तहत दो आंग्ल भारतीयों को लोकसभा में मनोनीत करने का प्रावधान निष्प्रभावी हो गया है। |
स्थानों का आरक्षण | राज्यसभा में कोई आरक्षण नहीं है। | (i) अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए (अनु.-330 के तहत)(ii) वर्तमान में 84 अनुसूचित जाति के लिए + 47 अनुसूचित जनजाति। के लिए आरक्षित स्थान |
12 नाम निर्देशित (साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा यथा विषय के विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव वालों का) अनु.-80 | अधिकतम 2 आंग्ल भारतीय (लोकसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने की दशा में, अनु.-331) अपवाद: पहली लोकसभा में कुल नाम 10 निर्देशित सदस्य थे। (2 आंग्ल भारतीय, 6 जम्मू-कश्मीर के, 1 असम के भाग-ख के जनजाति क्षेत्रों से, 1 अंडमान निकोबार द्वीप समूह) | |
सदन की प्रकृति | उच्च सदन किन्तु द्वितीय सदन। | निम्न सदन किन्तु लोकप्रिय सदन एवं प्रथम सदन। |
गठन की तिथि | 3 अप्रैल, 1952 (Council of States 23 अगस्त, 1954 से राज्यसभा शब्द प्रयुक्त किया जाने लगा।) | 17 अप्रैल,1952 (House of People 14 मई, 1954 से लोकसभा शब्द प्रयुक्त किया जाने लगा।) |
निर्वाचन | अप्रत्यक्ष राज्यों के प्रतिनिधि आनुपातिक प्रतिनिधित्व के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वाराराज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा | (i) प्रत्यक्ष (वयस्क मताधिकार द्वारा)(ii) द फर्स्ट पास्ट द पोस्ट प्रणाली द्वारा(iii) निर्वाचक 18 वर्ष का भारतीय जो मतदाता के रूप में पंजीकृत हो।(iv) गुप्त मतदान द्वारा(v) निर्वाचन क्षेत्र प्रादेशिक भौगोलिक, एक सदस्यीय(vi) जमानत राशि-(क) सामान्य- 25,000 रुपये(ख) अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति- 12,500 रुपये(ग) जमानत जब्त- कुल वैध मतों का 1/6 मत प्राप्त न होने पर |
उप–निर्वाचन | रिक्त हुए स्थान के शेष समय तक | रिक्त हुए स्थान के शेष समय के लिए अथवा लोकसभा के विघटन/भंग होने तक। |
कार्यकाल या अवधि | स्थायी सदन (किंतु सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष, (i) प्रति दो वर्ष के पश्चात् निर्वाचित सदस्यों में से 1/3 सदस्य पदमुक्त हो जाते हैं। तथा 1/3 नये निर्वाचित होते है।(ii) राष्ट्रपति द्वारा मनोनित सदस्यों में से प्रति 3 वर्ष बाद 1/2 पदमुक्त तथा 1/2 नये मनोनित किये जाते है।) | सामान्यतया 5 वर्ष (अनु.-352 में उत्पन्न परिस्थितियों में इसे बढ़ाया जा सकता है अथवा समय पूर्व विघटित भी किया जा सकता है।) अनु.-83 |
प्रतिनिधित्व का आधार | जनसंख्या (एक राज्य की जनसंख्या के प्रथम 50 लाख व्यक्तियों तक हर 10 लाख व्यक्तियों के लिए एक सदस्य और उसके बाद हर 20 लाख पर एक सदस्य के रूप में से प्रतिनिधित्व प्राप्त होगा।)राज्यसभा में अधिकतम सदस्य संख्या का निर्धारण मूल संविधान में 250 किया गया था, उसमें अभी तक कोई संशोधन नहीं किया गया। | जनसंख्या (कम से कम 5 लाख पर एक प्रतिनिधि, अधिकतम सीमा बदलती परिस्थितियों के अनुसार निर्धारित, किंतु यह उन राज्यों तथा केन्द्रशासित क्षेत्रों पर लागू नहीं होगी जिनकी जनसंख्या 60 लाख से कम है।) 84वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2001 के द्वारा सन् 2000 की समय-सीमा को अगले 25 वर्षों तक यानी सन् 2026 तक के लिए बढ़ा दिया गया।87वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 में निर्वाचित क्षेत्रों का परिसीमन 2001 की जनगणना के आधार पर किए जाने की व्यवस्था की गई। |
वेतन–भत्ते | लोकसभा के समान। | सदस्य का वेतन 1 लाख रुपये मासिक, दैनिक भत्ता 2000 रुपये, मासिक कार्यालय खर्च 60,000 रुपये एवं अन्य भत्ते एवं सुविधाएँ। |
अर्हताएँ या योग्यताएँ | अनुच्छेद-84 के अनुसार-(क) लोकसभा के समान(ख) उसकी आयु 30 वर्ष या उससे अधिक हो।(ग) लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951की धारा 3 के अनुसार-(क) भारत में किसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का निर्वाचक (मतदाता) हो। | अनुच्छेद-84 के अनुसार-(क) भारत का नागरिक हो तथा निर्वाचन के लिए एक अभ्यर्थी के रूप में तीसरी अनुसूची में उल्लिखित शपथ या प्रतिज्ञान करता हो।(ख) उसकी आयु 25 वर्ष या उससे अधिक हो।(ग) संसद द्वारा बनाई गई विधि के द्वारा निर्धारित सभी अर्हताएँ रखता हो।लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा-4 के अनुसार-(क) अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित स्थानों पर उन्ही जातियों से सम्बद्ध हो।(ख) असम के स्वशासी जिलों में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित स्थान पर असम स्वशासी जिले की जनजाति का हो।(ग) लक्षद्वीप में अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित स्थान पर लक्षद्वीप की अनुसूचित जनजाति का सदस्य हो।(घ) सिक्किम राज्य को आवंटित स्थान पर सिक्किम का निर्वाचक हो।(ङ) किसी अन्य स्थान की दशा में वह किसी संसदीय निर्वाचन क्षेत्र का निर्वाचक हो। |
निरर्हताएँ/अयोग्यताएँ (लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा-7(ख) के अनुसार निरर्हता से तात्पर्य संसद या विधानमंडल का सदस्य चुने जाने या सदस्य होने या रहने के लिए निरर्हित अभिप्रेत हैं।) | लोकसभा के समान लोकसभा के समान लोकसभा के समान लोकसभा के समान | अनुच्छेद-101 के अनुसार-संसद के दोनों सदनों का एक साथ अथवा संसद के किसी एक सदन और राज्य विधानमंडल के किसी सदन का एक साथ सदस्य हो।अनुच्छेद-102(1) के अनुसार-(क) भारत या राज्य सरकार के अधीन कोई लाभ का पद धारण किए हो।(ख) सक्षम न्यायालय द्वारा विकृतचित्त घोषित हो।(ग) अनुन्मोचित दिवालिया हो।(घ) भारत का नागरिक न हो या विदेशी नागरिकता ग्रहण कर ली हो।(ङ) यदि वह संसद द्वारा निर्मित किसी विधि के अयोग्य घोषित कर दिया गया हो। दसवीं अनुसूची में उल्लिखित प्रावधानों के तहत दल-बदल के आधार पर निरर्हत घोषित हो [अनु.-102(2)] लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा-8 में उल्लिखित कतिपय अपराधों के लिए दोष सिद्धि पर सिद्धदोष ठहराए जाने के दिन से और कारावास की अवधि के खत्म होने के छह वर्ष पश्चात् तक निरर्हत रहेगा। सहकारी सोसायटी से भिन्न किसी कम्पनी जिसमें सरकार की कम से कम 25% भागीदारी हो, का प्रबंध अभिकर्ता प्रबंधक या सचिव हो। |
निरर्हताओं संबंधी प्रश्नों का विनिश्चय | लोकसभा के समान लोकसभा के समान सभापति विनिश्चय करता है वह अन्तिम होता है। | अनुच्छेद-103 के अनुसार-(क) अनुच्छेद-102 के खण्ड-(1) में वर्णित निरर्हताओं के प्रश्न पर विनिश्चय राष्ट्रपति करता है और विनिश्चय अंतिम है किन्तु राष्ट्रपति इस सम्बन्ध में निर्वाचन आयोग की राय लेगा और उसी अनुरूप विनिश्चय करेगा। विशेष- ज्ञात रहे निर्वाचन आयोग (भ्रष्ट आचरण के लिए निरर्हताएँ) को छोड़कर अधिनियम के अध्याय तीन में उल्लिखित निरर्हताओं की समयावधि को हटा या कम करने का अधिकार भी रखता है।(ख) अनुच्छेद-102(2) के तहत दसवीं अनुसूची (दल-बदल) के अधीन निरर्हता का उल्लेख करता है दल-बदल के आधार पर निरर्हता के बारे में प्रश्नों का विनिश्चय अध्यक्ष करता है और उसका निर्णय अंतिम होता है। (10वीं अनुसूची) |
कोरम या गणपूर्ति | लोकसभा के अनुरूप वर्तमान में कुल सदस्य 245 तो कोरम (1/10) = 25 लोकसभा के समान | अनुच्छेद-100(3) के अनुसारसदन के सदस्यों की कुल संख्या 1/10 का भाग वर्तमान में कुल सदस्य 545 तो कोरम (1/10) = 55अनुच्छेद-100(4) के अनुसारकोरम पूरा न होने पर अध्यक्ष जब तक गणपूर्ति नहीं हो जाए, सदन को स्थगित या अधिवेशन को निलंबित कर सकता है। |
स्थानों का रिक्त होना | लोकसभा के समान | अनुच्छेद-101 के अनुसार(i) कोई व्यक्ति संसद के दोनों सदनों का सदस्य चुना जाता है तो उसे एक सदन की सदस्यता छोड़नी होगी।(ii) कोई व्यक्ति संसद और किसी राज्य विधानमंडल के सदन या सदनों का भी सदस्य चुना जाए और निर्धारित अवधि (14 दिन) में स्थान रिक्ति की सूचना नहीं देता है तो संसद में उसका स्थान रिक्त समझा जाएगा।विशेष- यहाँ निर्धारित अवधि का निर्धारण समसामयिक सदस्य प्रतिषेध नियम, 1950 के तहत किया गया है।(iii) अनुच्छेद-102 के तहत निरर्हत हो गया हो (इसमें दल-बदल भी सम्मिलित है।)(iv) उसने अध्यक्ष को त्याग पत्र दे दिया हो।(v) वह संसद के अधिवेशनों से लगातार 60 दिन बिना बताए अनुपस्थित हो। |
बहुस्थानिक निर्वाचन (दोहरी सदस्यता) | लोकसभा के समान(i) लोकसभा के समान(ii) राज्यसभा का सदस्य पहले से है और उसमें अपना स्थान ग्रहण कर चुका है, यदि लोकसभा के लिए चुना जाता है तो राज्यसभा में उसका स्थान उस तारीख को जिसको वह लोकसभा के लिए चुना जाता है, रिक्त हो जाएगा।(iii) लोकसभा के समान | लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का अध्याय-6 (धारा-68 से 70)(i) लोकसभा और राज्यसभा दोनों के लिए चुन लिया गया और किसी भी सदन में स्थान ग्रहण नहीं किया तो चुने जाने के 10 दिन के भीतर निर्वाचन आयोग को लिखित में सूचना देगा कि वह किस सदन में सेवा करना चाहता है। ऐसी स्थिति में दूसरे सदन से उसका स्थान रिक्त माना जाएगा किन्तु 10 दिन के भीतर कोई सूचना नहीं देता है तो राज्यसभा से उसका स्थान स्वत: रिक्त माना जाएगा।(ii) लोकसभा का सदस्य पहले से है और उसमें अपना स्थान ग्रहण कर चुका है और यदि राज्यसभा के लिए चुना जाता है तो राज्यसभा में चुने जाने वाले दिन से उसका स्थान लोकसभा से रिक्त माना जाएगा।(iii) संसद के दोनों सदनों में से किसी में या राज्य के विधानमंडल के सदन या दोनों सदनों में से किसी एक से अधिक स्थान के लिए निर्वाचित हो गया है तो जब तक वह यथास्थिति अध्यक्ष या सभापति या ऐसे अन्य प्राधिकारी को जैसा विहित किया जाए, सम्बोधित करके अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा उन स्थानों में से केवल एक को छोड़कर शेष सबके त्याग पत्र 14 दिन के अन्दर नहीं देता है तो वे सब स्थान रिक्त हो जाएँगे। |
सदस्यों की शपथ या प्रतिज्ञान | लोकसभा के समान लोकसभा के समान लोकसभा के समान लोकसभा के समान | अनुच्छेद-99 के उपबंधों के अधीन (निर्वाचित होने के पश्चात्) सदन के स्थान ग्रहण करने से पूर्व राष्ट्रपति या उसके द्वारा इस निमित्त नियुक्त व्यक्ति के समक्ष शपथ/प्रतिज्ञान का प्रारूप संविधान की तीसरी अनुसूची में उल्लिखित। यदि कोई व्यक्ति अनुच्छेद-99 के शपथ या प्रतिज्ञान के बिना सदन की कार्यवाही में भाग लेता है या मत देता है तो प्रत्येक दिन 500 रुपये जुर्माना का भागी होना।(अनु.-104) |
सत्र | लोकसभा के अनुरूप लोकसभा के समान | वर्ष में कम से कम दो सत्र अवश्य होने चाहिए अर्थात् दो सत्रों के बीच का अन्तराल 6 महीने से अधिक नहीं होना चाहिए। राष्ट्रपति सदन के सत्र को आहुत करता है। सत्र का समय और स्थान निर्धारित करता है। अनुच्छेद-85(1) सामान्यतया वर्ष में तीन बार-बजट सत्र – 1 फरवरी सेमानसून सत्र – 15 जुलाई सेशीतकालीन सत्र – 5 नवम्बर या दीपावली के बाद चौथा दिन जो भी हो |
विघटन अनुच्छेद-85(2) | राज्यसभा स्थायी सदन है, अत: विघटन नहीं होता। | राष्ट्रपति लोकसभा का विघटन कर सकता है। |
विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ | लोकसभा के समान | अनुच्छेद-105 के अंतर्गत(i) संसद में या उसकी समिति में कही हुई किसी बात या दिए गए मत के आधार पर किसी भी न्यायालय की कार्यवाही से उन्मुक्ति।(ii) न्यायालयों को संसद की कार्यवाही की जाँच करने का निर्णय।(iii) सभा के सत्र के दौरान तथा उसके चालीस दिन पहले और चालीस दिन बाद तक दीवानी मामलों में सदस्यों की गिरफ्तारी से उन्मुक्ति।(iv) किसी सदस्य की गिरफ्तारी, निरोध, कारावास तथा रिहाई के संबंध में तुरंत सूचना प्राप्त करने का सदन को अधिकार है।(v) सदन के सदस्यों को विचार अभिव्यक्ति की पूर्ण स्वतंत्रता होगी।(vi) संसद सदस्यों को जूरी सदस्यों के रूप में नियुक्त नहीं किया जा सकता।(vii) जब सदन गोपनीय बैठक के लिए बैठता है तो उस समय कोई भी व्यक्ति जो सदन का सदस्य नहीं है, सभाकक्षों और दीर्घाओं, इत्यादि में नहीं रह सकता। शर्मा बनाम श्रीकृष्ण वाद में उच्चतम न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित किया कि संसद के विशेषाधिकारों तथा नागरिकों के मूल अधिकारों के बीच संघर्ष की दशा में संसदीय विशेषाधिकारों को अधिमान्यता दी जाएगी। संसद की मानहानि को विशेष अधिकारों का हनन के नाम से जाना जाता है। |
पीठासीन अधिकारी | संविधान के अनुच्छेद – 89 में यह प्रावधान है कि भारत के उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पेदन सभापति होगा तथा उपसभापति का चयन राज्यसभा अपने सदस्यों में से करेगी। उपसभापति अपना त्यागपत्र सभापति को संबोधित करते हुए देता है।सभापति का वेतन 4 लाख रूपए प्रतिमाह है। राज्यसभा का विघटन नहीं होता है। अगले उपराष्ट्रपति के पदभार तक अपने पद पर रहता है। | संविधान के अनुच्छेद-93 में यह प्रावधान है कि लोकसभा का एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष होगा जिनका सदन में बहुमत से चयन होगा। अध्यक्ष अपना त्याग पत्र उपाध्यक्ष को और उपाध्यक्ष अपना त्याग पत्र अध्यक्ष को संबोधित करते हुए देगा।लोकसभाध्यक्ष को 4 लाख रुपये प्रतिमाह वेतन मिलता है। लोकसभा के विघटन पर लोकसभा अध्यक्ष का पद रिक्त नहीं होता है, वह अगली लोकसभा की प्रथम बैठक के तत्काल पूर्व तक पद पर बना रहता है। |
संसद की निधियाँ–
संचित निधि
– अनुच्छेद 266 (1) के अनुसार सरकार को मिलने वाले सभी राजस्वों, जैसे – सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क, आयकर, सम्पदा शुल्क, अन्य कर एवं शुल्क और सरकार द्वारा दिए गए ऋणों की वसूली से जो धन प्राप्त होता है, वे सभी संचित निधि में जमा किये जाते हैं। संसद की स्वीकृति के पश्चात सरकार अपने सभी खर्चों का वहन इसी निधि से करती है।
लोकलेखा
– संविधान के अनुच्छेद 266 (2) के अनुसार भारत सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त सभी अन्य लोक धनराशियाँ (भारत की संचित निधि से ऋण के अलावा) भारत के लोक लेखों में जमा की जाती है। इस खाते से भुगतान संसदीय विनियोजन के बिना किया जा सकता है। इस प्रकार के भुगतान मुख्यतया बैंक आदान-प्रदान से संबंधित होते हैं।
आकस्मिकता निधि
– अनुच्छेद 267 के अनुसार संविधान संसद को ‘भारत की आकस्मिक निधि’ के गठन की अनुमति देता है। इसमें समय-समय पर विधि द्वारा निर्धारित निधियाँ प्राप्त की जाती है। संसद द्वारा ‘भारत की आकस्मिक निधि’ अधिनियम 1950 से शुरू हुआ। निधि को राष्ट्रपति की ओर से वित्त सचिव द्वारा रखा जाता है। यह निधि राष्ट्रपति के अधिकार में रहती है और वह किसी अप्रत्याशित व्यय के लिए इससे अग्रिम दे सकता है, जिसे बाद में संसद द्वारा प्राधिकृत करवाया जा सकता है। भारत के लोक लेखा की तरह इसे कार्यकारी प्रक्रिया से संचालित किया जाता है।
संसदीय समितियाँ
– संसद की स्थायी समितियों में लोकसभा से आने वाले सदस्यों को लोकसभा सदस्य “अनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमण मत पद्धति” द्वारा अपने में से चुनते है।
– किसी भी मंत्री को स्थाई समिति का सदस्य नहीं बनाया जाता।
– इन समितियों में राज्य सभा से आने वाले सदस्यों को सभापति द्वारा नामित किया जाता है।
– इनका कार्यकाल 1 वर्ष का होता है।
लोकलेखा समिति
– इस समिति की स्थापना 1921 में भारत सरकार अधिनियम,1919 के तहत की गई और यह संसदीय समितियों में सबसे प्राचीन समिति है।
– इस समिति का कार्यकाल एक वर्ष होता है। तथा इसके सदस्यों को आनुपातिक प्रतिनिधित्व के एकल-संक्रमणीय मत द्वारा चुना जाता है।
– कुल सदस्य संख्या – 22, (15 लोकसभा तथा 7 राज्यसभा सदस्य)
– वर्तमान अध्यक्ष :- अधीर रंजन चौधरी
– लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा नियुक्त किया जाता है। सामान्यत: विपक्षी पार्टी के किसी सदस्य को इसका अध्यक्ष चुना जाता है।
– मंत्रियों को इसमें शामिल नहीं किया जाता है।
लोकलेखा समिति को प्राक्कलन समिति की ‘जुडवाँ’ बहन के नाम से भी जाना जाता है।
कार्य
(1) नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की वार्षिक रिपोर्ट की जाँच करना अर्थात् सार्वजनिक व्यय की जांच करना।
(2) भारत सरकार के वार्षिक वित्तीय खातों तथा सदन के समक्ष प्रस्तुत अन्य खातों की जाँच करना।
(3) विनियोग लेखों की जाँच करना।
प्राक्कलन समिति
– 1950 में जॉन मथाई की सिफारिश पर इस समिति का गठन किया गया।
– वर्तमान स्थायी समितियों में सबसे बड़ी समिति है।
– इसका गठन एक वर्ष के लिए आनुपातिक प्रतिनिधित्व के एकल-संक्रमणीय मत द्धारा किया जाता है।
– कुल सदस्य संख्या – 30
– इस समिति से सभी सदस्य लोकसभा से नियुक्त किए जाते है।
– मंत्रियों को इसमें शामिल नहीं किया जाता है।
– इन सदस्यों की नियुक्ति लोकसभा के अध्यक्ष द्वारा की जाती है।
– वर्तमान अध्यक्ष:- गिरीश बाल चन्द्रन बापत
कार्य
(1) वित्तीय प्रशासन में मितव्ययता लाने और प्रशासन में कुशल एवं वैकल्पिक नीतियों के संबंध में सुझाव देना।
(2) समिति यह भी निश्चित करती है कि अनुमानों में निहित नीति की सीमा के अंतर्गत धन का समुचित वितरण किया गया अथवा नहीं?
सार्वजनिक उपक्रम समिति
– 1 मई, 1964 में कृष्णा मेनन समिति के सुझाव पर इस समिति का गठन किया गया।
– इस समिति का कार्यकाल एक वर्ष का होता है।
– इसके सदस्यों का चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व के एकल-संक्रमणीय मत द्वारा होता है।
– मंत्रियों को इसमें शामिल नहीं किया जाता है।
– कुल सदस्य संख्या 22, (15 लोकसभा तथा 7 राज्यसभा सदस्य)
– इनके सदस्यों की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है।
– वर्तमान अध्यक्ष:- मीनाक्षी लेखी
कार्य
(1) सरकारी उपक्रमों के लेखा एवं रिपोर्ट का परीक्षण
(2) सरकारी उपक्रमों पर कैग की रिपोर्ट का परीक्षण
(3) सरकारी उपक्रमों का व्यवसाय के सिद्धांतों एवं वाणिज्य प्रयोग के तहत काम का परीक्षण।
विभागों की स्थायी समितियाँ :-
– सर्वप्रथम 1989 में कृषि समिति, वन एवं पर्यावरण समिति तथा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी समिति की तीन स्थायी समिती गठित की गई।
– 1993 में नई विभागीय समिति प्रणाली लागू की गई।
– 2004 में विभागीय समितियों की संख्या 24 (16 लोकसभा, 8 राज्यसभा) कर दी गई।
– इन 24 समितियों में से 16 लोकसभा के अधीन तथा 8 राज्यसभा के अधीन कार्य करती है।
– प्रत्येक विभागीय समिति में 31 (21 लोकसभा, 10 राज्यसभा) सदस्य होते है।
सरकारी विधेयक और गैर सरकारी विधेयक
सरकारी विधेयक | गैर सरकारी विधेयक |
इसे संसद में मंत्री द्वारा पेश किया जाता है। | इसे संसद में मंत्री के अलावा किसी भी सदस्य द्वारा पेश किया जाता है। |
यह सरकार की नीतियों को प्रदर्शित करता है। | यह सार्वजनिक मामले पर विपक्षी दल के मंतव्य को प्रतिदर्शित करता है। |
संसद द्वारा इसके पारित होने की पूरी उम्मीद होती है। | इसके संसद में पारित होने की कम उम्मीद होती है। |
सदन द्वारा अस्वीकृत होने पर सरकार को इस्तीफा देना पड़ सकता है। | इसके अस्वीकृत होने पर सरकार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। |
सदन में पेश करने के लिए सात दिनों का नोटिस होना चाहिए। | सदन में पेश करने के लिए ऐसे प्रस्ताव के लिए एक माह का नोटिस होना चाहिए। |
इसे संबंधित विभाग द्वारा विधि विभाग के परामर्श से तैयार किया जाता है। | इसका निर्माण संबंधित सदस्य की जिम्मेदारी होती है। |
धन विधेयक और सामान्य विधेयक में अन्तर
क्र.सं. | धन विधेयक | सामान्य विधेयक |
1. | धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किया जाता है, राज्यसभा में नहीं। | सामान्य विधेयक को संसद के किसी भी सदन में पेश किया जाता है। |
2. | धन विधेयक को प्रस्तुत करने से पूर्व राष्ट्रपति की अनुमति आवश्यक होती है। | सामान्य विधेयक को पेश करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्वानुमति आवश्यक नहीं है। |
3. | धन विधेयक के संबंध में लोकसभा को अत्यान्तिक अधिकार प्रदान किया जाता है। | सामान्य विधेयक के संबंध में दोनों सदनों को समान अधिकार प्राप्त है। |
4. | धन विधेयक के संबंध में संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है। | सामान्य विधेयक पर दोनों सदनों में मतभेद होने पर राष्ट्रपति संयुक्त बैठक बुला सकता है। |
5. | धन विधेयक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए वापस नहीं कर सकता हैं। (अनुच्छेद 111) | सामान्य विधेयक को राष्ट्रपति एक बार पुनर्विचार के लिए वापस कर सकता हैं। (अनुच्छेद 111) |
6. | धन विधेयक केवल सरकार के द्वारा ही प्रस्तावित किये जाते हैं। | साधारण विधेयक को दूसरे सदन में भेजने के पूर्व लोकसभा के अध्यक्ष के प्रमाण पत्र की आवश्यकता होती है। |
7. | धन विधेयक को दूसरे सदन में भेजने के पूर्व लोकसभा के अध्यक्ष को इस बात का प्रमाण पत्र देना पड़ता है कि यह धन विधेयक है। | इसे राज्यसभा संशोधित या अस्वीकृत कर सकती है। |
8. | धन विधेयक को राज्यसभा केवल 14 दिन तक अपने पास रोक सकती हैं। | राज्यसभा साधारण विधेयक को 6 महीने तक रोक सकती है। |
9. | धन विधेयक 14 दिन के बाद राज्यसभा द्वारा पारित समझा जाता है। | साधारण विधेयक दूसरे सदन द्वारा 6 महीने तक पारित न किये जाने पर राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों का संयुक्त बैठक बुला सकता है। |
धन विधेयक और वित्त विधेयक
क्र.सं. | धन विधेयक | वित्त विधेयक |
1. | धन विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया अनु.109 में दी गयी है। | वित्त विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया अनु.117 में दी गयी हैं। |
2. | धन विधेयक का विषय क्षेत्र वित्त विधेयक की अपेक्षा सीमित होता है अत: प्रत्येक धन विधेयक वित्त विधेयक होता है। | वित्त विधेयक धन विधेयक में व्यापक होता है, अत: प्रत्येक वित्त विधेयक धन विधेयक नहीं होता है। |
3. | धन विधेयक को राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता हैं। | अनु. 117 (3) के अधीन आने वाले वित्त विधेयक को छोड़कर अन्य वित्त विधेयकों को भी राज्यसभा में पेश नहीं किया जा सकता है। |
4. | धन विधेयक राज्यसभा द्वारा पारित नहीं किया जाता है वरन सिफारिश सहित या रहित लौटा दिया जाता है। | वित्त विधेयक को दोनों सदनों द्वारा पारित किया जाता है। |
5. | धन विधेयक के संबंध में संयुक्त बैठक का प्रावधान नहीं है। | वित्त विधेयक के संबंध में संयुक्त बैठक बुलायी जा सकती है। |
6. | धन विधेयक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए नहीं लौटा सकता है। वह उस पर अनुमति देने के लिए बाध्य है। | वित्त विधेयक को राष्ट्रपति पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है। |
लोकसभा अध्यक्ष (स्पीकर)
चुनाव
– अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव लोकसभा की प्रथम बैठक में निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है।
त्याग पत्र
– अध्यक्ष अपना त्याग पत्र उपाध्यक्ष को, उपाध्यक्ष अपना त्याग पत्र अध्यक्ष को देता है।
पद से हटाया जाना
– लोकसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष को तात्कालिक समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा उन्हें हटाया जाता है लेकिन इनकी जानकारी 14 दिन पूर्व अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को देनी होगी।
– अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष दोनों का पद रिक्त होने पर ऐसा सदस्य अध्यक्ष व उपाध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करेगा जिसको राष्ट्रपति नियुक्त करेगा। अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष की अनुपस्थिति में लोकसभा द्वारा अवधारित व्यक्ति अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करेगा। जब लोकसभा अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष को पद से हटाने का संकल्प लोकसभा में विचारधीन हो तब वह उसकी अध्यक्षता नहीं करेगा लेकिन उसे बोलने, कार्यवाही में भाग लेने, प्रथमत: मतदान करने का अधिकार होता है लेकिन मत बराबर होने की स्थिति में निर्णायक मत देने का अधिकार नहीं होता है।
अध्यक्ष की शक्तियाँ एवं कार्य –
– लोकसभा एवं राज्यसभा के संयुक्त अधिवेशन में अध्यक्षता करता है।
– कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं इस बात का निर्णय अध्यक्ष ही करता हैं।
– दल-बदल के आधार पर अयोग्यता संबधी प्रश्नों का निर्णय करता है।
– बराबर मत होने की दशा में निर्णायक मत देने का अधिकार है।
– संसदीय शासन व्यवस्था होने के कारण कार्यपालिका को (मंत्रिपरिषद्) व्यवस्थापिका (लोकसभा) के नियंत्रण में कार्य करना पड़ता है।
– अनुच्छेद 109 के अनुसार धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तावित किये जाते हैं। वार्षिक बजट एवं अनुदान संबधी मांगें भी लोकसभा के समक्ष ही रखी जाती है।
– जब किसी विधेयक पर दोनों सदनों में पूर्ण सहमति न होने पर राष्ट्रपति अनुच्छेद 108 के तहत संयुक्त अधिवेशन बुला सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है। यह अधिवेशन सिर्फ साधारण विधेयक व वित्त विधेयक के सम्बन्ध में ही बुलाया जाता है जबकि धन विधेयक व संविधान संशोधन विधेयक के संबंध में नहीं बुलाया जाता है अभी तक 3 बार संयुक्त अधिवेशन बुलाया जा चुका है जो निम्न हैं-
विधेयक | वर्ष | प्रधानमंत्री |
दहेज प्रतिषेध विधेयक, 1960 | 1961 | जवाहरलाल नेहरू |
बैकिंग सेवा आयोग विधेयक | 1978 | मोरारजी देसाई |
आंतकवाद निरोधक अध्यादेश | 2002 | अटल बिहारी वाजपेयी |
– संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष की अनुपस्थिति में लोकसभा उपाध्यक्ष करता है यदि वह भी अनुपस्थित हो तो राज्यसभा का उपसभापति करता है। अत: संयुक्त अधिवेशन की अध्यक्षता राज्यसभा का सभापति (उपराष्ट्रपति) नहीं करता है क्योंकि वह किसी भी सदन का सदस्य नहीं होता है। संयुक्त बैठक का कोरम दोनों सदनों की कुल सदस्य संख्या का 1/10 भाग होती है।
– किसी भी विधेयक की स्वीकृति के सम्बन्ध में राष्ट्रपति के पास अनुच्छेद 111 के अनुसार तीन विकल्प होते हैं-
(A) अनुमति दे दे।
(B) अनुमति रोक सकता है
(C) अपने सुझाव के साथ पुनर्विचार के लिए लौटा सकता है। किन्तु दोनों सदन विधेयक को पुन: संशोधन सहित पारित कर देते है तो राष्ट्रपति विधेयक पर हस्ताक्षर करने के लिए बाध्य होता है।
संसद में सामान्य प्रक्रिया
प्रश्नकाल
– बैठक के पश्चात कार्यवाही का प्रथम घंटा (दोपहर-11-12) इसमें संसद सदस्यों द्वारा लोक महत्त्व के राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय मामलों पर प्रश्न पूछे जाते हैं। इसमें तीन प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं।
(i) तारांकित प्रश्न
वह प्रश्न जिसका उत्तर तुरन्त मौखिक रूप में दिया जाये। इसमें पूरक प्रश्न पूछा जा सकता है।
(ii) अतांराकित प्रश्न
प्रश्न का उत्तर लिखित में दिया जाता है पूरक प्रश्न नहीं पूछे जाते है।
(iii) अल्प सूचना प्रश्न
लोक महत्त्व के तात्कालिक मामलो से संबंधित जिसका उत्तर मौखिक में तात्कालिक दिया जाता है।
शुन्यकाल
– प्रश्नकाल के तुरन्त बाद का एक घंटे का समय जिसमें बिना पूर्व सूचना के सार्वजानिक महत्त्व का कोई भी प्रश्न उठाया जा सकता है। इस प्रकार संसदीय व्यवस्था में शून्यकाल भारत की देन है। इसके अलावा भी संसदीय प्रस्ताव है जिसमें स्थगन प्रस्ताव, ध्यानाकर्षण प्रस्ताव, विशेषाधिकार प्रस्ताव, निन्दा प्रस्ताव, कटौती प्रस्ताव, अविश्वास प्रस्ताव, विश्वास प्रस्ताव इत्यादि।
लोकसभा के अध्यक्ष
क्र.सं. | नाम | अवधि |
1. | जी.वी. मावलंकर | 15 मई 1952 – 27 फरवरी 1956 |
2. | एम.ए. अयंगर | 1956-1962 |
3. | सरदार हुकुम सिंह | 1962-1967 |
4. | एन. संजीव रेड्डी | 1967-1969 |
5. | जी.एस. ढिल्लों | 1969-1975 |
6. | बलीराम भगत | 1976-1977 |
7. | एन. संजीव रेड्डी | 26 मार्च, 1977 – 13 जुलाई, 1977 |
8. | के.एम. हेगड़े | 1977-1980 |
9. | बलराम जाखड़ | 1980-1989 |
10. | रवि रे | 1989-1991 |
11. | शिवराज पाटिल | 1991-1996 |
12. | पी.ए. संगमा | 1996-1998 |
13. | जी.एम.सी. बालयोगी | 1998-2002 |
14. | मनोहर जोशी | 2002-2004 |
15. | सोमनाथ चटर्जी | 2004-2009 |
16. | मीरा कुमार | 2009-2014 |
17. | सुमित्रा महाजन | 2014-2019 |
18. | ओम बिड़ला | 19 जून, 2019 से |
प्रोटेम स्पीकर
– जब नवीन लोकसभा चुनी जाती है तब राष्ट्रपति लोकसभा के उस व्यक्ति को कार्यवाहक अध्यक्ष नियुक्त करता है जिसे लोकसभा सदस्य होने का सबसे लम्बा अनुभव होता है। राष्ट्रपति उस सामयिक अध्यक्ष को शपथ दिलाता है। वह मुख्यत: दो कार्य करता है-
1. नई लोकसभा के सदस्यों को शपथ दिलवाना
2. लोकसभा की प्रथम बैठक की अध्यक्षता करना।
– संविधान तथा लोकसभा प्रक्रिया नियमों के अंतर्गत तथा अन्यथा, प्रोटेम स्पीकर को वे सारी शक्तियाँ प्राप्त है जो कि अध्यक्ष को होती है। तथापि, वह तभी तक कार्य करता है जब तक लोकसभा द्वारा अध्यक्ष का निर्वाचन नहीं कर लिया जाता। प्रथम बैठक में अध्यक्ष चुने जाने के बाद उसका पद स्वत: ही समाप्त हो जाता है। (17 वीं लोकसभा में डॉ. वीरेन्द्र कुमार के द्वारा प्रोटेम स्पीकर की भूमिका निभाई गई थी।)