विजयनगर साम्राज्य
दक्षिण में संघर्ष का काल
– विजयनगर की भाषा तेलुगु व बहमनी राज्य की भाषा मराठी थी।
1. संगम वंश :
– विजयनगर साम्राज्य की स्थापना पाँच भाइयों वाले परिवार के दो सदस्यों हरिहर तथा बुक्का ने की थी।
– ये वारंगल के काकतीयों के सामंत थे तथा बाद में आधुनिक कर्नाटक में काम्पिली राज्य में मंत्री बने थे।
– ऐसा कहा जाता है कि हरिहर और बुक्का ने ब्राह्मण साधु एवं विद्वान माधव विद्यारण्य तथा उसके भाई, वेदों के प्रसिद्ध भाष्यकार सायण की प्रेरणा से मुसलमान से हिन्दू बनकर नवीन विजयनगर राज्य की स्थापना की तथा संगम वंश के नाम से शासन आरम्भ किया।
हरिहर (1336-1356 ई.)
– 1336 ई. हम्पी (हस्तिनावती) की नींव डाली जिसे विजय नगर के नाम से जाना गया।
– 1346 ई. में अनुगोड़ी को राजधानी बनाया व बुक्का -I को संयुक्त राजा बनाया था।
– वीर भल्लाल-II की मृत्यु के बाद होयसेलों पर आक्रमण कर उसे विजयनगर सम्राज्य में मिला लिया गया।
– हरिहर के शासनकाल में होयसल राज्य को विजित किया गया तथा पुनः मदुरा विजय हेतु कम्पन के नेतृत्व में सेना भेजी गई तथा मदुरा विजयनगर साम्राज्य में शामिल कर लिया गया।
– कुमार कंपन की पत्नी गंगा देवी ने अपने पति द्वारा मदुरा विजय का अपने ग्रन्थ ‘मदुरा विजयम’ में उल्लेख किया है।
बुक्का-I (1356-1377 ई.)
– इसने साम्राज्य वादी नीति का अनुसरण किया।
– 1377 ई. में मदुरै को विजयनगर में मिला लिया।
– बुक्का-I ने अपने शासनकाल में 1374 ई. में चीन में एक दूतमण्डल भेजा।
– बुक्का-I ने ‘वेदमार्ग प्रतिष्ठापक’ की उपाधि धारण की।
विजयनगर व बहमनी संघर्ष
– दोनों राज्यों के मध्य 1367 ई. में संघर्ष प्रारंभ हुआ।
संघर्ष के प्रमुख कारण
(1) रायचूर दोआब पर अधिकार करने के लिए।
(2) यहाँ पर पर सोने एवं लोहे की खानों का होना तथा अत्यधिक उपजाऊ क्षेत्र का होना।
(3) कृष्णा गोदावरी डेल्टा क्षेत्र
– बहमनी शासक मोहम्मद शाह ने आक्रमण किया जिसे बुक्का-I ने पराजित कर दिया। बहमनी शासक व बुक्का-I के मध्य संधि हुई।
– दो आब क्षेत्र- विजयनगर के अधीन रहेगा।
– कृष्णा नदी को दोनों राज्य सीमा रेखा के रूप में मानेगें।
हरिहर-II (1377-1406 ई.)
– हरिहर की सबसे बड़ी सफलता पश्चिम में बहमनी राज्य से बेलगांव तथा गोवा का अधिकार छीनना था। इसने श्रीलंका पर भी आक्रमण किया किया जो सफल रहा ।
– अपनी विद्वता तथा विद्वानों के संरक्षण के कारण हरिहर-II राज व्यास या राज वाल्मीकि नाम से भी जाना जाता था।
– इसने महाराजाधिराज व राजपरमेश्वर की उपाधियाँ धारण की।
– 1377 में शासक बनते ही बहमनी साम्राज्य पर आक्रमण किया और बहमनी साम्राज्य के दो प्रांत (बेलगाँव वे गोवा) पर अधिकार कर विजयनगर साम्राज्य में मिलाया।
– यह प्रथम शासक था जिसने श्रीलंका के शासक से राजस्व वसूल किया।
बहमनी- वारंगल समझौता
– विजयनगर पर विजय प्राप्त करने के लिए यह समझौता हुआ।
देवराय-I (1406-1422 ई.)
– देवराय-I का संघर्ष बहमनी शासक फिरोजशाह से हुआ, जिससे वह पराजित हुआ व संधि की-
1. अपनी पुत्री का विवाह फिरोजशाह से किया तथा
2. बांकापुर का क्षेत्र दहेज में दिया।
3. दस लाख हूण, हाथी व रत्नाभूषण जुर्माने में दिया।
– इस युद्ध को “सुनार की बेटी का युद्ध” कहा जाता है।
– देवराय-I ने तुंगभद्रा तथा हरिद्रा नदी पर बाँध बनवाया व 12 मील लंबी नहर का निर्माण कराया।
– देवराय-I के शासनकाल में ही इटली के यात्री निकोलो कोंटी (1420 ई.) ने विजयनगर राज्य का भ्रमण किया था।
– देवराय प्रथम के दो पुत्र थे (राजचन्द्र व विजय) दोनों एक माह तक शासक रहे। विजय का पुत्र देवराय-II शासक बना
– इसके दरबार में तेलुगु कवि श्रीनाथ रहते थे।
देवराय-II (1422-1446 ई.)
– देवराय-II इस वंश का महानतम शासक था।
– देवराय ने इम्माडी देवराय तथा गजबेटकर की उपाधि की।
– इसके शासनकाल में अब्दुल रज्जाक (फारसी यात्री ) भारत आया।
– फरिश्ता के अनुसार देवराय II का विचार था कि बहमनी सेना की श्रेष्ठता मजबूत घोड़ों तथा बड़ी संख्या में तीरंदाजों के कारण थी।
– देवराय-II प्रोढ़ देवराय के नाम से भी जाना जाता था।
– देवराय-II अपने सिंहासन के समक्ष कुरान रखता था।
– इसने तेलुगु कवि श्रीनाथ को संरक्षण दिया।
– फारसी राजदूत अब्दुल रज्जाक ने इसी समय विजयनगर राज्य की यात्रा की।
– इसका दरबारी विद्वान चामरस था जिसने प्रभुलिंगलिला नामक ग्रंथ की रचना की।
– देवराय-II को दो संस्कृत ग्रन्थों महानाटक सुधानिधि एवं बादरायण के ब्रह्मसूत्र पर एक टीका की रचना का श्रेय प्राप्त है।
– देवराय–II ने दहेजप्रथा को अवैधानिक घोषित किया
– इस वंश का अन्तिम शासक प्रोढ़ राय था।
मल्लिकार्जुन (1446-1465 ई.)
– मल्लिकार्जुन को प्रोढ़ देवराय के नाम भी जाना जाता है।
– चीनी यात्री “माहुआन” 1451 ई. में मल्लिकार्जुन के समय विजयनगर आया था।
विरूपाक्ष – II (1465-1485 ई.)
– चन्द्रगिरी प्राप्त के गवर्नर ने विद्रोह किया व उसके बेटे सालुव नरसिंह ने तख्ता पलट दिया।
– यह घटना इतिहास में प्रथम बलापहार कही जाती है।
2. सालुव वंश (1486-1505 ई.)
सालुव नरसिंह (1486-1491 ई.)
– सालुव नरसिंह ने संगम वंश के अंतिम शासक प्रोढ़ राय को पराजित कर सालुव वंश की स्थापना की।
– सालुव नरसिंह के दो पुत्र तिम्मा तथा इम्माडी नरसिंह तत्कालीन मंत्री नरसा नायक के संरक्षण में थे।
– इम्माडी नरसिंह शासक बना लेकिन नरसा नायक ने इम्माडी को पदस्थ कर स्वयं शासक बना।
– नरसा नायक ने रायचूर दोआब को बहमनियों के कब्जे से मुक्त करवाया।
– नरसा नायक की मृत्यु के बाद वीर नरसिंह इम्माडी नरसिंह का प्रतिशासक बना।
इम्माडि नरसिंह (1491-1505 ई.)
– इसकी हत्या वीर नरसिंह ने की व तुलुव राजवंश स्थापित किया।
– यह घटना इतिहास में द्वितीय बलापहार कही जाती है।
3. तुलुव वंश (1505-1570 ई.)
वीर नरसिंह (1505-1509 ई.)
– नरसा नायक के पुत्र वीर नरसिंह ने इम्माडी की हत्या कर तुलुव वंश की नींव डाली।
– वीर नरसिंह ने पुर्तगाली गवर्नर ‘फ्रांसिस्को द अल्मेडा’ से समझौता कर अच्छी नस्ल के घोड़े खरीदे।
कृष्णदेवराय (1509-1529 ई.)
– कृष्णदेवराय विजयनगर साम्राज्य का महान शासक था। यह हिन्दू धर्म का संरक्षक व वैष्णव धर्म का अनुयायी था।
– उसने (1509-10 ई.) गुलबर्गा तथा बीदर को जीतकर, अपनी अधीनता स्वीकार करने वाले शासकों को सत्ता पुनः सौंपी। इस सफलता के बाद कृष्णदेवराय ने ‘यवन स्थापनाचार्य’ की उपाधि धारण की।
– 1510 ई. में पुर्तगाली शासक अल्बुकर्क को भटकल में एक दुर्ग निर्माण की अनुमति दी गई।
– पुर्तगाल का यात्री डोमिंगो पाएस कृष्णदेवराय के दरबार में अनेक वर्षों तक रहा।
– बारबोसा, नूनिज तथा डोमिंगोस पायस ने कृष्णदेवराय के श्रेष्ठ प्रशासन की चर्चा की है।
– कृष्णदेवराय ने तेलुगु भाषा के प्रसिद्ध ग्रंथ ‘अमुक्तमाल्यद’ तथा संस्कृत भाषा में ‘जाम्बवती कल्याणम’ तथा (नाटक) उषा परिण्य की रचना की।
– उसके दरबार में तेलुगु भाषा के आठ सर्वश्रेष्ठ कवि रहते थे, जिन्हें अष्टदिग्गज नाम से जाना जाता था।
– अल्लासानी पेड्डाना उसके राजदरबार में रहता था जिसे तेलुगु कविता का पितामह कहा जाता है।
– अमुक्तमाल्यद से कृष्णदेवराय के सैनिक एवं नागरिक प्रशासन की क्षमता का आभास मिलता है।
– कृष्णदेवराय ने आन्ध्रभोज, आंध्र पितामह, अभिनव भोज आदि उपाधियाँ धारण की।
– उसी के शासनकाल में हजारा तथा विट्ठलस्वामी मंदिर का निर्माण हुआ।
– पुर्तगाली यात्री बारबोसा कृष्णदेवराय के समय विजय नगर की यात्रा पर भारत आया।
– कृष्णदेवराय के राजगुरु – व्यासराज थे-
– कृष्णदेवराय की आस्था वैष्णव धर्म में थी।
– नागलपुर नगर की स्थापना कृष्णदेवराय के काल में हुई।
अच्युत देवराय (1529-1542 ई.)
– यह कृष्णदेवराय का भाई था।
– अच्युत देवराय ने बीजापुर के शासक को पराजित किया।
– अच्युत देवराय के शासनकाल में पुर्तगाली यात्री नूनिज ने यात्रा की थी।
– पुर्तगालियों ने इसके समय आक्रमण कर ‘तूतीकोरिन का मोती’नामक क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
– “महामण्डलेश्वर” नामक नये अधिकारी की नियुक्ति की।
सदाशिवराय (1542-1570 ई.)
– मंत्री रामराय के हाथों की कठपुतली मात्र था।
– रामराय की दोस्ती-दुश्मनी नीति से तंग आकर बीजापुर, अहमदनगर, गोलकुंडा तथा बीदर ने विजयनगर के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्च का गठन किया, जिसका परिणाम तालीकोटा का युद्ध था।
– तालीकोटा का युद्ध (23 जनवरी, 1565) राक्षसी तगड़ी नामक गाँवों में लड़ा गया, जिसका नेतृत्व अली आदिलशाह ने किया। इस युद्ध में बरार शामिल नहीं था।
– तालीकोटा युद्ध का अन्य नाम “क्रस्न का युद्ध” भी है।
– आर. सेवेल तालीकोटा युद्ध का प्रत्यक्षदभी था तथा इस युद्ध का वर्णन अपनी पुस्तक “A forgotton Empire” में किया गया।
युद्ध के कारण –
– धार्मिक कारण- दक्षिणी सल्तनत इतना समृद्ध हिन्दू साम्राज्य हाने के कारण घृणा करते थे।
– राजनीतिक कारण- विजयनगर की बढ़ती हुई शक्ति का दमन करना।
युद्ध के परिणाम –
– विजयनगर का पतन।
– 6 माह लूटपाट।
– इमारतों मंदिरों को जलाया गया।
– विजयनगर के अधीन राज्यों(वेल्लोर व सिमोगा) ने अपने आप को स्वतंत्र राज्य घोषित किया।
– इस युद्ध में रामराय पराजित हुआ।
– सदाशिव राय ने तिरुमल के सहयोग से पेनुगोंडा को अपनी नवीन राजधानी बनाई।
4. अरविडु वंश (1570-1649 ई.)
– इसकी स्थापना तिरुमल ने 1570 ई. में पेनुगोंडा में की।
– 1582-86 ई. तक तुरूमल के पुत्र रंग द्वितीय ने शासन किया।
– वेंकट-II ने स्पेन के राजा फिलिप-III के साथ राजनीतिक संबंध बनाया।
– वेंकट द्वितीय (1586-1614ई.) तुरूमल का पुत्र था।
– इसने अपनी राजधानी चन्द्रगिरी को बनाया जो विजयनगर साम्राज्य की अंतिम राजधानी थी।
– रंग-III विजयनगर का अंतिम शासक था।
विजयनगर के प्रमुख शासक वंश
वंश
संस्थापक
तुलुव
वीर नरसिंह
आरवीडु
तिरूमल
संगम
हरिहर एवं बुक्का
सालुव
नरसिंह सालुव
– विजयनगर में संगम वंश ने सर्वाधिक 149 वर्ष शासन किया जबकि सालुव वंश ने सबसे कम 20 वर्ष शासन किया।
– आयंगर–नायंगर व्यवस्था का संबंध विजयनगर से है।
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