राजस्थान में जनजातीय आंदोलन

राजस्थान की जनजातियों में भील, मीणा, सहरिया एवं गरासिया प्रमुख है। अंग्रेजीकाल में देश के अन्य हिस्सों की तरह राजस्थान में भी जागीरदारों और साहूकारों ने शोषण शुरू कर दिया। 19 वीं सदी के अन्त में इन जातियों की स्थिति में सुधार के लिए कई महापुरुष आगे आए तथा जनजागृति उत्पन्न की।

भीलआंदोलन
गुरु गोविन्द गिरी का भगत आन्दोलन

  • मेवाड़ राज्य के दक्षिण पश्चिम का क्षेत्र भोमट अथवा मगरा कहलाता था, जहाँ भील व गरासिया जनजातियां रहती थी।
  • 1841 में कम्पनी सरकार ने मेवाड़ भीलकोर की स्थापना की।
  • भीलों में जनजागृति पैदा करने का कार्य सर्वप्रथम स्वामी दयानन्द सरस्वती के शिष्य गुरु गोविन्द गिरी (1858 ई. में बांसिया ग्राम, डूंगरपुर में जन्में) ने किया। 
  • गुरु गोविन्द गिरी द्वारा राजस्थान के डूंगरपुर और बांसवाड़ा की सदियों से शोषित और उत्पीड़ित भील जनजाति को संगठित कर उनमें सामाजिक जागृति व नवजीवन के संचार हेतु चलाये गये आन्दोलन को भगत आन्दोलन के नाम से जाना जाता है।
  • गोविन्द गुरु दशनामी सम्प्रदाय के संन्यासी बने थे।
  • गुरु गोविन्द गिरी व सूर्जी भगत ने 1883 ई. में सिरोही में सम्प-सभा (भाईचारा एकता संघ) नामक संगठन की स्थापना की।
  • सम्प सभा का उद्देश्य भीलों व गरासियों में एकता स्थापित करना था।
  • नवम्बर, 1913 ई. में सम्प सभा के वार्षिक अधिवेशन, जो मानगढ़ पहाड़ी (बांसवाड़ा-गुजरात सीमा) पर हुआ था, में ब्रिटिश सेना ने घेरकर गोलियां चलायी जिसमें 1500 भील मारे गये।
  • मानगढ़ पहाड़ी पर हर वर्ष आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को मेला भरता है।
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एकी आन्दोलन या भोमट भील आन्दोलन

  • भील आंदोलन का दूसरा चरण मोतीलाल तेजावत (1886 ई. में उदयपुर के फलासियां क्षेत्र के कोल्यारी ग्राम के ओसवाल परिवार में जन्मे) के नेतृत्व में चले ‘एकी-आंदोलन’ के रूप में है।
  • मोतीलाल तेजावत ने अपनी डायरी ‘मेवाड़ की पुकार‘ में भीलों पर होने वाले अत्याचारों का वर्णन किया।
  • ‘आदिवासियों के मसीहा‘, ‘बावजी‘ उपनाम से प्रसिद्ध मोतीलाल तेजावत ने अनुचित लाग-बागों व बेगार के विरूद्ध संगठित भील आंदोलन भोमट क्षेत्र में चलाया, जो भोमट-भील आंदोलन या एकी-आंदोलन कहलाया।
  • एकी आन्दोलन का उद्देश्य भीलों व किसानों में पूर्ण एकता स्थापित करना था।
  • श्री तेजावत ने अहिंसक एकी आन्दोलन की शुरुआत 1921 ई. में चित्तौड़गढ़ की राशमी तहसील के मातृकुण्डिया स्थान से की। उन्होंने कोटड़ा, झाड़ोल व मादड़ी जैसे आदिवासी क्षेत्रों में भीलों को संगठित कर अवैध लागबाग व बेगार न देने हेतु प्रोत्साहित किया। तेजावत ने 21 सूत्री मांग पत्र तैयार किया जिसे मेवाड़ पुकार की संज्ञा दी जाती है। उन्होंने इस संबंध में विजयनगर राज्य (गुजरात) के नीमड़ा गाँव में पाल चितरिया में 7 मार्च, 1922 को एक सम्मेलन बुलाया जिसे सफल होने से रोकने के लिए मेवाड़ भील कोर के सैनिकों ने अंधाधुंध फायरिंग कर व्यापक नरसंहार किया जिसमें 1200 भील मारे गए। श्री तेजावत अज्ञातवास में चले गए। नीमड़ा हत्याकांड एक दूसरा जलियाँवाला हत्याकांड था।
  • 1929 में महात्मा गांधी के कहने पर तेजावत ने ईडर पुलिस के सामने समर्पण किया।
  • जनजातियों में जागृति उत्पन्न करने वाले अन्य नेताओं में भोगीलाल पंड्या,बलवन्त सिंह मेहता, माणिक्य लाल वर्मा, बालेश्वर दयाल, हरिदेव जोशी प्रमुख हैं।

मीणाआंदोलन

  • मीणा जाति के लोग बड़े मेहनती, निष्ठावान व दबंग व्यक्तित्व के धनी रहे हैं। इन्होंने राज्य के कई भागों पर शासन किया। लेकिन कालान्तर में मीणों का शासन समाप्त हो जाने के कारण ये अपनी आजीविका कमाने के लिए चोरी और लूटपाट करने लगे।
  • सन् 1924 के क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट तथा जयपुर राज्य के जरायम पेशा कानून, 1930 के तहत जरायम पेशा मानकर इन्हें 12 वर्ष से ऊपर के सभी स्त्री-पुरुषों को रोजाना थाने पर उपस्थिति देने के लिए पाबंद किया।
  • मीणा समाज ने इसका तीव्र विरोध किया तथा अपने मानवोचित अस्तित्व के लिए ‘मीणा जाति सुधार कमेटी‘ एवं 1933 में ‘मीणा क्षत्रिय महासभा‘ का गठन किया।
  • जयपुर क्षेत्र के जैन संत मगनसागर की अध्यक्षता में अप्रेल, 1944 मे मीणों का एक वृहद् अधिवेशन नीम का थाना में हुआ, जहां पं. बंशीधर शर्मा की अध्यक्षता में राज्य मीणा सुधार समिति का गठन किया गया।
  • इस समिति ने 1945 में जरायम पेशा व अन्य कानून वापस लेने की मांग करते हुए समिति के संयुक्त मंत्री श्री लक्ष्मीनारायण झरवाल के नेतृत्व में आन्दोलन चलाया।
  • 3 जुलाई, 1946 को सरकार ने स्त्रियों व बच्चों को पुलिस में उपस्थिति देने से मुक्त कर दिया। बाद में कभी भी अपराध नहीं करने वाले मीणों को जरायम पेशा कानून के तहत रजिस्टर में नाम दर्ज करवाने में सरकार ने छूट दी।
  • 28 अक्टूबर, 1946 को एक विशाल सम्मेलन बागावास में आयोजित कर चौकीदार मीणों ने स्वेच्छा से चौकीदारी के काम से इस्तीफा दिया तथा इस दिन को ‘मुक्ति दिवस‘ के रूप में मनाया।
  • मीणों द्वारा लगातार प्रयास करने पर सन् 1952 में यह जरायम पेशा संबंधी काला कानून रद्द हुआ।
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