मौर्योत्तर काल

शुंग वंश

– पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य शासक बृहद्रथ की हत्या कर शुंग वंश की नींव डाली। पुष्यमित्र बृहद्रथ का सेनापति था।

– पुष्य मित्र शुंग को मगध में ब्राह्मण राज्य स्थापित करने एवं ब्राह्मण धर्म के पुनरुद्धार का श्रेय दिया जा सकता है।

– पुष्यमित्र शुंग का काल वैदिक प्रतिक्रिया अथवा वैदिक पुनर्जागरण का काल भी माना जाता है।

– पाटलिपुत्र भी शुंग वंश की राजधानी रही।

– विदिशा शुंग वंश की राजधानी थी।

– पुष्यमित्र ने ‘सेनानी’ की उपाधि धारण की।

– धनदेव के अयोध्या अभिलेख से ज्ञात होता है कि पुष्यमित्र शुंग ने अपने शासनकाल में दो अश्वमेध यज्ञ किए। पतंजलि इन यज्ञों के पुरोहित थे।

– दिव्यावदान एवं आर्यमंजूश्री मूलकल्प में पुष्यमित्र शुंग को बौद्धों का हत्यारा तथा मठों और विहारों को नष्ट करने वाला बताया गया है।

– पतंजलि ने इसके शासनकाल में ही महाभाष्य लिखा। महाभारत के शांति एवं अश्वमेघ पर्व का विस्तार इस काल में हुआ।

– स्थापत्यकला के क्षेत्र में इस काल में भरहूत और साँची के स्तूपों में बने जंगले और रैलिंग लकड़ी के स्थान पर पत्थर के बनाए गए।

– भरहूत स्तुप का निर्माता पुष्यमित्र शुंग को माना जाता है।

– भरहूत स्तुप की खोज 1873 ई. में अलेक्जेंडर कींनघम ने की।

– पुष्यमित्र शुंग के पश्चात् उसका पुत्र अग्निमित्र शासक हुआ।

– शुंग शासक भागभद्र के समय में ग्रीक राजदूत हेलियोडोरस था, जिसने भागवत धर्म से प्रभावित होकर बेसनगर में वासुदेव कृष्ण के सम्मान में एक गरुड़ध्वज की स्थापना की।

कण्व वंश :

– वासुदेव ने अंतिम शुंग शासक देवभूति की हत्या कर कण्व वंश की स्थापना की गई।

– इस वंश में केवल चार शासक वसुदेव, भूमिमित्र, नारायण और सुशर्मा हुए। अंतिम शासक सुशर्मा को विस्थापित कर आंध्रों ने सातवाहन वंश की स्थापना की।

सातवाहन वंश

– सातवाहन अभिलेख के आधार पर सिमुक को सातवाहन वंश का संस्थापक माना जाता है। इसने गोदावरी नदी के किनारे पैठन या प्रतिष्ठान को अपनी राजधानी बनाया।

– सातवाहन इतिहास को जानने के महत्त्वपूर्ण साधन – मत्स्य व वायु पुराण है।

– पुराणों में सातवाहनों को “आन्द्रभृव्य” तथा “आन्ध्रजातीय” कहा गया है।

– सिमुक के बाद कान्हा तथा कान्हा के बाद उसका पुत्र श्री शातकर्णी शासक हुआ। नानाघाट और नागनिका अभिलेख से इसके बारे में जानकारी मिलती है।

– भूमिदान प्रथा की शुरुआत सर्वप्रथम सातवाहन शासकों ने शुरू की इसका प्रथम उल्लेख नागनिका के नानाघाट अभिलेख में आता है। (प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य – भूमिदान)

– सातवाहन शासक हाल ने ‘गाथा सप्तसती’ (प्राकृत भाषा में) की रचना की। इसके शासनकाल में अमरावती स्तूप का विस्तार किया गया।

– गौतमी पुत्र शातकर्णी (106-130 ई.) सातवाहन वंश का महानतम शासक था। इसने सातवाहन वंश को पुनर्जीवित किया।

– गौतमी पुत्र शातकर्णी को ’त्रि – समुद्र तोय – पिता वाहन‘ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है-उसके घोड़ों ने तीनों समुद्रों का पानी पिया था।

– गौतमीपुत्र शातकर्णी के विजय की एक जानकारी उसकी माँ बलश्री की नासिक प्रशस्ति से भी मिलती है। इसने (नहपान) शकों को पराजित किया।

– वाशिष्ठीपुत्र पुलमावि (130-154 ई.) गौतमी पुत्र शातकर्णी की मृत्यु के बाद शासक बना। अमरावती से प्राप्त लेख से इसके बारे में जानकारी मिलती है।

– सातवाहन वंश का अंतिम प्रमुख शासक शातकर्णी था।

– यज्ञ श्री शातकर्णी व्यापार तथा समुद्री यात्रा का प्रेमी था। इसके सिक्कों पर जहाज, मत्स्य एवं शंख की आकृति उत्कीर्ण थी।

– सातवाहन काल के अधिकांश सिक्के सीसे व प्रोटीन द्वारा निर्मित मिले हैं।

– शासन का मातृतंत्रात्मक ढाँचा इस काल में प्रचलित था।

– सातवाहनों द्वारा ब्राह्मणों और बौद्ध भिक्षुओं को भूमिदान देने का प्रथम अभिलेखीय उदाहरण मिलता है।

कलिंग का चेदि वंश :

– इस वंश का संस्थापक ‘महामेघवाहन’ था।

– ‘खारवेल’ इस वंश का महान शासक था। इसने हाथीगुफा अभिलेख खुदवाया।

– खारवेल जैन धर्म का अनुयायी था।

– नहरों की जानकारी देने वाला प्रथम अभिलेखीय साक्ष्य हाथीगुफा अभिलेख है।

विदेशी आक्रमण(प्राचीन भारत)

इंडो – ग्रीक :

– इंडो – ग्रीक को भारतीय ग्रंथों में यवन नाम से संबोधित किया गया है।

– मौर्य शासन के बाद भारत पर सर्वप्रथम बैक्ट्रिया के ग्रीक शासकों ने आक्रमण किया।

– भारत पर पहला सफल आक्रमण डेमेट्रियस प्रथम ने किया।

– डेमेट्रियस ने साकल को अपने भारतीय राज्य की राजधानी बनाया।

– मीनान्डर इंडो – ग्रीक शासकों में सबसे योग्य एवं महान शासक था। यह डेमेट्रियस कुल का था। इसने भारत में यूनानी सत्ता को स्थायित्व प्रदान किया।

– बौद्ध ग्रन्थ मिलिन्दपन्हो में बौद्ध दार्शनिक नागसेन और मीनान्डर या मिलिन्द के बीच बौद्ध धर्म पर हुए वाद – विवाद (प्रश्नोत्तर रूप में) का संकलन है। इसके बाद मीनान्डर ने बौद्ध धर्म अंगीकार किया।

– इंडो-ग्रीक (हिन्दु-यूनानी) राजाओं ने ही भारत में सर्वप्रथम सोने के सिक्के चलाए जिन्हें “स्टेनर” कहा जाता था।

– इनकी कुल 5 शाखाएँ थीं।

– सर्वप्रथम भारत में इंडो – बैक्ट्रियन शासकों ने ही लेखयुक्त सिक्के चलवाए। (द्विभाषिंक)

– साहित्य, कला तथा ज्योतिष के क्षेत्र में भारत यूनानियों का ऋणी है।

शक :

– शक मूलतः मध्य एशिया की एक घुमक्कड़ जाति थी।

– शक राजा अपने आपको ‘क्षत्रप’ कहते थे। शकों की भारत में दो शाखाएँ थीं – 1. उत्तरी क्षत्रप – तक्षशिला और मथुरा तथा 2. पश्चिमी क्षत्रप – नासिक और उज्जैन।

– संभवतः भारत का प्रथम शक शासक माउस था। नासिक के शक क्षहरात वंश का पहला शासक भूमक था।

– उज्जयिनी के शक (कार्दमक वंश) का संस्थापक चष्टण था। इसका उत्तराधिकारी रुद्रदामन (130-150 ई.) इस वंश का प्रतापी और योग्य शासक था। इसने ‘महाक्षत्रप’ की उपाधि धारण की।

– रुद्रदामन ने जूनागढ़ में स्थित अपने अभिलेख शुद्ध और उत्कृष्ट संस्कृत में लिखवाए। इस अभिलेख से रुद्रदामन द्वारा सातवाहन नरेश दक्षिणापथस्वामी शातकर्णी को दो बार पराजित करने का विवरण मिलता है।

– रुद्रदामन ने अपनी प्रजा पर बिना कोई अतिरिक्त कर लगाए सुदर्शन झील के बाँध की मरम्मत करवाई।

पार्थियाई या पहलव :

– इस कुल का प्रथम शासक वोनोनिज था।

– गोंडोफर्निस (20-41 ई.) पल्लव वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था। खरोष्ठी लिपि में लिखित ‘तख्तेबही अभिलेख’ में इसको गुदुव्हर कहा गया है। इसी के शासनकाल में ‘सेंट थॉमस’ धर्मप्रचार करने हेतु भारत आए थे इसी समय ईसाई धर्म भारत में पहली सदी ई. में आया।

कुषाण :

– कुषाण वंश यूची जाति से सम्बद्ध था। इनका मूल निवास स्थान उत्तरी मध्य एशिया में चीन के पड़ोस में था।

– कुजुल कडफिसस ने कुषाण वंश की स्थापना की। इसने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।

– कुजुलकडफिसस के बाद उसका पुत्र विम कडफिसस शासक बना। इसने कुषाण साम्राज्य का विस्तार करते हुए तक्षशिला, पंजाब तथा मथुरा को भी कुषाण साम्राज्य का अंग बनाया।

– विम कडफिसस के सिक्कों पर नंदी शिव और त्रिशूल की आकृति खुदी होने से अनुमान लगाया जाता है कि वह शैव मतानुयायी थी।

कनिष्क प्रथम : (78-101 ई.)

– कनिष्क कुषाण शासकों में सबसे योग्य एवं महान शासक था। इसे शक संवत् का संस्थापक माना जाता है, जो 78 ई. में प्रारम्भ हुआ। कनिष्क के साम्राज्य की सीमाएँ अफगानिस्तान, सिंध, बैक्ट्रिया, पार्थिया तथा भारत में मगध तक फैली थी। राजतरंगिणी से स्पष्ट होता है कि कश्मीर भी कनिष्क के राज्य का अंग था।

– कनिष्क ने अपनी राजधानी ‘पुरुषपुर’ या पेशावर को बनाई थी। मथुरा इसके राज्य की दूसरी राजधानी थी।

– प्रसिद्ध विद्वान अश्वघोष को कनिष्क पाटलिपुत्र से अपने साथ ले गया था।

– कनिष्क के दरबार में नागार्जुन, अश्वघोष, पार्श्व तथा वसुमित्र जैसे प्रमुख विद्वान रहते थे। महान चिकित्सक चरक कनिष्क का राजवैद्य था।

– कनिष्क बौद्ध धर्म की महायान शाखा का अनुयायी था।

– कुषाण शासकों ने ‘देवपुत्र’ की उपाधि धारण की।

– कनिष्क ने सर्वप्रथम अपने द्वारा जारी किए गए सिक्कों पर बुद्ध की आकृति बनवाई।

– कुषाणों के समय में सर्वाधिक शुद्ध स्वर्ण एवं ताँबे के सिक्के जारी किए गए लेकिन उन्होंने चाँदी के के कोई सिक्के नहीं चलाए।

– अश्वघोष ने बुद्धचरित, सौन्दरानंद, शारिपुत्र प्रकरण एवं सूत्रालंकार की रचना की।

– नागार्जुन को भारत का ‘आइन्सटाइन’ कहा गया है।

– चरक ने औषधि पर ‘चरकसंहिता’ की रचना की।

– कुषाणों ने प्रान्तों में द्वैध शासन प्रणाली का प्रचलन किया।

कनिष्क के उत्तराधिकारी

वासिष्क– यह कनिष्क के बाद शासक बना। इसने कश्मीर में जुस्कपुर नगर की स्थापना की।

हुविष्क  (106-138 ई.)

हुविष्क के सिक्कों पर संकर्षण एवं वासुदेव दोनों अंकित हैं।

इसकी मुद्राओं पर ही सर्वाधिक संख्या में हिन्दु देवी देवताओं का अंकन है।

हुविष्क के मथुरा लेख से ज्ञात होता है कि श्रेणियाँ बैंक का  कार्य करती थी। इसमें आटा पीसने वाली श्रेणी का उल्लेख है।

वासुदेव प्रथम :-

कनिष्क कुल का अन्तिम महान शासक वासुदेव प्रथम (192 ई.-232 ई.) था। वासुदेव प्रथम कुषाण शासक था, जिसका नाम भारतीय देवताओं पर था।

कुषाणों ने भारत में सर्वप्रथम शुद्ध स्वर्ण मुद्राए  निर्मित करवाई।

प्रथम बार स्वर्ण मुद्रा इंडो-ग्रीक शासकों ने तथा वृहद् स्तर पर कुषाणों ने चलाई। सर्वाधिक स्वर्ण मुद्राएँ गुप्तों ने चलवाई।

कनिष्क द्वितीय :- इसने रोमन राजाओं की उपाधि सीजर  एवं कैसर उपाधि धारण की।

वासुदेव द्वितीय (175 ई. – 300 ई.) अन्तिम कुषाण शासक था। ईरान के ससैनियन शासकों ने इसे पराजित कर कुषाण वंश का अन्त किया।

वाणिज्य एवं व्यापार :

– मौर्योत्तर काल में वाणिज्य – व्यापार का विकास हुआ तथा पश्चिमी देशों के साथ व्यापार में प्रगति हुई। भारत का रोम के साथ व्यापार में विकास हुआ। मध्य एशिया से गुजरने वाला व्यापारिक मार्ग चीन एवं रोमन साम्राज्य को जोड़ता था। ‘सिल्कमार्ग’ अथवा ‘रेशममार्ग’ के नाम से जाना जाता था। रोम और चीन के बीच व्यापार में कुषाणों की भूमिका बिचौलियों जैसी थी।

– प्लिनी ने अपनी पुस्तक “नेचुरल हिस्ट्री” में भारत – रोम व्यापार में रोम से भारत आ रहे सोने के सिक्के पर दु:ख व्यक्त किया है। रोमन व्यापार का सर्वाधिक लाभ दक्षिण भारत को मिला तथा सर्वाधिक व्यापार रोमन सम्राट आगस्टस के काल में हुआ।

कला :

– गांधार कला : कनिष्क के संरक्षण में इस कला का विकास हुआ। यह कला भावना से मूलतः भारतीय कला है, किन्तु निर्माण कला यूनान से ली गई है। इस शैली में मानव शरीर का वास्तविक चित्रण हुआ है।

– मथुरा कला : इस शैली में मूर्तियों का निर्माण लाल पत्थर से किया गया है। बुद्ध की सर्वाधिक प्राचीन मूर्ति (प्रथम मूर्ति) मथुरा शैली से ही प्राप्त हुई है।

– मानसून की खोज – हिप्पालस द्वारा 48 ई. में की गई।

     पुस्तक                                लेखक

नेचुरल हिस्टोरिका                        प्लिनी

पेरिप्लस ऑफ ऐरीथियन सी          अज्ञात (80 – 115ई.)

ज्योग्राफी                                   टॉलमी  

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