मेहरानगढ़ दुर्ग 

‘अनड़ पहाड़ा ऊपरै, जबरो गढ़ जोधाण‘

  •  राव जोधा ने विक्रम संवत् 1515 की ज्येष्ठ सुदी 11, शनिवार (12 मई, 1459 ई) को इस किले की नीवं रखी व जोधाणा (जोधपुर) नामक नया नगर बसाया।

पनरासों पनरोतड़े जेठमास में जांण,

सुद ग्यारस शनिवार रो, मंडियो गढ़ महरान।

  • लोकमान्यता के अनुसार मेहरानगढ़ दुर्ग की नींव करणी माता ने रखी।
  • जोधपुर से पूर्व मारवाड़ की राजधानी मण्डोर (माण्डव्यपुर) थी।
  • जोधपुर में पचेटिया हिल्स की चिड़ियाटूँक पहाड़ी पर यह दुर्ग निर्मित है।
  • जोधपुर दुर्ग के नाम-

1. चिन्तामणिदुर्ग- कुण्डली के अनुसार नाम।

2. मयूर ध्वज/मोरध्वज- नागवंशियों पर अपनी श्रेष्ठता दिखलाने के लिए मयूराकृति के दुर्ग का निर्माण।

3. मेहरानगढ़-
पहली मान्यता- मिहिरगढ़ अर्थात् सूर्यवंशियों का दुर्ग और यही नाम कालान्तर में बिगड़कर मेहरानगढ़ हो गया।

दूसरी मान्यता- किले में चामुण्डा माता की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के समय पण्डित के पुत्र मोहराम/मेहरसिंह की बलि, जिससे नाम मोहरामगढ़/मेहरानगढ़ हो गया।

तीसरी मान्यता- इस दुर्ग की विशालता के कारण इसे मेहरानगढ़ कहा गया।

  •  दुर्ग की नींव में राजाराम मेघवाल का स्वेच्छा से बलिदान। ‘राव जोधाजी के फलसे‘ (जहाँ तक रावजोधा ने दुर्ग बनाया) के सामने राजाराम मेघवाल की समाधि के ऊपर ही खजाना व नक्कारखाने के भवन बने हुए हैं।
  • इतिहासकार गौरीशंकर हीराचंद ओझा ने अपने ग्रंथ जोधपुर राज्य के इतिहास में इस लोकविश्वास का उल्लेख किया है कि यदि किले की नींव में किसी जीवित व्यक्ति की बलि दे दी जाये तो वह किला अपने निर्माता के वंशजों के हाथों से नहीं निकलता।
  • दुर्ग के दो प्रवेश द्वार है- 1. जयपोल (उत्तर-पूर्व में) 2. फतेहपोल (दक्षिण-पश्चिम में शहर के अन्दर से)।
  • जयपोल का निर्माण 1808 ई. में मानसिंह ने जयपुर व बीकानेर की संयुक्त सेनाओं को हराने के उपलक्ष्य में तथा फतेहपोल का निर्माण महाराजा अजीतसिंह ने 1707 ई. में जोधपुर पर से मुगल खालसा (आधिपत्य) समाप्त होने के उपलक्ष्य में बनवाया।
  • दुर्ग में लोहापोल के पास मामा-भांजा (धन्ना और भींवा) की छतरी भी है।
  • दुर्ग में भूरेशाह की मजार है।
  • महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश नामक पुस्तकालय।
  • मोतीमहल- विक्रमी संवत् 1602 में सूरसिंह द्वारा निर्मित।
  • फूलमहल- विक्रमी संवत् 1781 में अभयसिंह द्वारा निर्मित।
  • शृंगार चौकी- दौलत खाने के आंगन में महाराजा तख्तसिंह द्वारा निर्मित शृंगार चौकी पर राजाओं का राजतिलक होता था।
  • जोधपुर दुर्ग में प्रसिद्ध तोपे- 1. किलकिला तोप- महाराजा अजीतसिह ने अहमदाबाद में बनवायी थी। 2. शम्भुबाण तोप- महाराजा अभयसिंह ने सर बलन्द खाँ से छीनी थी। 3. गजनी खाँ तोप- महाराजा गजसिंह ने 1607 ई. में जालौर विजय द्वारा हासिल की थी।
  • राणीसर-पदमसर- दुर्ग की जल आपूर्ति हेतु दुर्ग की तलहटी में बने दो सुन्दर तालाब। राणीसर जलाशय का निर्माण राव जोधा की रानी जसमा हाड़ी ने किले की स्थापना के समय ही करवाया था। पदमसर जलाशय का निर्माण राव गांगा की रानी पद्मावती ने करवाया था।
  • जोधपुर नगर के चारों ओर शहरपनाह (परकोटा) व 6 दरवाजे (नगर के प्रवेश द्वार) नागौरी दरवाजा, मेड़तिया दरवाजा, सोजती दरवाजा, सिवांची (सिवाणा) दरवाजा, जालोरी दरवाजा तथा चाँदपोल का निर्माण राव मालदेव ने करवाया।
  • दुर्ग में स्थित संग्रहालय में अकबर की तलवार रखी है।
  • राजस्थान का प्रथम  दुर्ग जिसमें ‘ऑडियो गाइड टूर‘ की सुविधा है।
  • यह दुर्ग जोधपुरी छीतर पत्थर (भूरा पत्थर) से निर्मित है।
  • हाल ही में टाइम्स पत्रिका ने इसे एशिया का सर्वश्रेष्ठ दुर्ग घोषित किया है।
  • ब्रिटिश पत्रकार रूडयार्ड किपलिंग ने मेहरानगढ़ दुर्ग के विषय में लिखा है- ‘इसका निर्माण फरिश्ते, परियों और देवताओं की करामात है।‘
  • दुर्ग की ऊँचाई और दुर्जेयता देखकर कर्नल जेम्स टॉड ने ठीक ही लिखा है- ‘जोधा के बेटे इस महल की खिड़कियों से ही अपनी सल्तनत पर आधिपत्य रख सकते थे, उनकी हुकूमत की हद तक इस किले से उनकी निगाह पहुंचती थी।‘
  • जोधपुर दुर्ग पहले मसूरिया पहाड़ी पर बनना तय हुआ था किन्तु पानी की कमी के चलते चिड़ियाटूँक की पहाड़ी पर दुर्ग बनाना तय किया गया।
  • चिड़ियानाथ के आश्रम को दुर्ग की सीमा के भीतर लेने के कारण चिड़ियानाथ जी क्रोधित होकर ‘धुणी‘ से गर्म खीरे (जलते हुए कोयले) अपनी जोली में डालकर पालासनी चले गये तथा मारवाड़ को अकाल का शाप दे दिया।
  • मारवाड़ के राठौड़ों को रणबंका (युद्धवीर) कहा गया है-
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बलहठ बंका देवड़ा, करतब बंका गौड़।

हाड़ा बांका गाढ़ में, रण बंका राठौड़।।

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