भारत का नियंत्रक व महालेखा परीक्षक

–     डॉ. अम्बेडकर के अनुसार नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक भारतीय संविधान के अंतर्गत महत्वपूर्ण पद है।

–     भारत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक सार्वजनिक धन का संरक्षक होता है।

–     इस पद को वर्ष 1935 के भारत शासन अधिनियम द्वारा ग्रहण किया गया है जहाँ इसको “महालेखा परीक्षक” कहा जाता था|

–     नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक एक निष्पक्ष एवं स्वायत्त संस्था है, जिसके द्वारा कार्यपालिका का विधायिका के प्रति उतरदायित्व और ज्यादा प्रभावी एवं महत्वपूर्ण हो जाता है। यह भारतीय संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता का प्रमाण है, कि उन्होंने ऐसी प्रशासनिक संस्थाओं का भी निर्माण किया, जिससे लोकतंत्र को सबल प्राप्त हो सके।

संविधान में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का उल्लेख

–     भारतीय संविधान के अनुच्छेद 148 में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक का ज़िक्र आता है।

–     इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

नियुक्ति

–     भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।

–     भारत का राष्ट्रपति निम्न योग्यता वाले व्यक्ति को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक नियुक्त कर सकता है-

      1. भारत का नागरिक हो।

      2. वित्तीय मामलों का जानकार हो।

      3. 10 वर्ष तक लोकसेवक के रूप में काम कर चुका हो।

कार्यकाल

–     इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु (दोनों में से जो भी पहले हो) तक होता है।

त्यागपत्र

–     यह अपना त्यागपत्र भारत के राष्ट्रपति को संबोधित करता है।

शपथ

–     नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को भारत का राष्ट्रपति शपथ दिलाता है।

पद से हटाया जाना

–     नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को दुर्व्यवहार या पद के दुरुपयोग का आरोप सिद्ध होने पर या अक्षमता के आधार पर संसद द्वारा अपनाए गए प्रस्ताव के माध्यम से ही पद से हटाया जा सकता है। इसको उच्चतम और उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को जिस प्रकार हटाया जाता है उसी प्रकार हटाया जाता है।

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वेतन एवं भत्ते

–     भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समकक्ष वेतन एवं भत्ते मिलते हैं।

–     इनकी सेवा-शर्तें भारत की संचित निधि पर भारित हैं।

नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की स्वतंत्र एवं स्वायत्त सेवाएँ

–     नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की नियुक्ति के बाद उसकी सेवा शर्तों में बदलाव नहीं किया जा सकता।

–     संसद के द्वारा उसके वेतन पर मतदान नहीं किया जा सकता।

–     अवकाश प्राप्ति के पश्चात् वह भारत सरकार के अंतर्गत कोई पद ग्रहण नहीं कर सकता।

कैग के कार्य

–     कैग के कार्य सामान्यतः संघ सरकार और राज्य सरकार के लेखाओं का परीक्षण करना है। उसके कार्यों को संसदीय अधिनियम 1971 के द्वारा व्यापक रूप में परिवर्तित किया गया है। यह बिन्दु अत्यधिक ध्यान देने योग्य है कि कैग भारत में लेखाओं का संकलन नहीं करता है अपितु वह केवल लेखाओं का परीक्षण करता है। अतः कैग के कार्य निम्नलिखित हैं

1.   भारत की संचित निधि तथा प्रत्येक राज्यों की संचित निधि और संघ शासित क्षेत्रों के द्वारा किए गए खर्च का परीक्षण करना तथा खर्च की रिपोर्ट तैयार करना।

2.   लोक लेखा और आकस्मिक निधि से भी संघ एवं राज्य द्वारा किए गए खर्चों की जाँच करना।

3.   व्यापार, विनिर्माण या लाभ और घाटे चाहे वह राज्य या संघ के किसी विभाग द्वारा किए गए हों, का परीक्षण करना।

4.   ऐसी सभी संस्थाओं के लेखाओं की जाँच करना, जिन्हें सरकार के द्वारा वित्त प्राप्त होता है या सरकार के राजस्व से संचालित हैं तथा ऐसी कंपनियों का भी लेखा परीक्षण किया जाएगा, जिन्हें सरकार के द्वारा वित्त प्राप्त होता हो।

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नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट या प्रतिवेदन-

–     नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक केंद्र के लेखाओं के परीक्षण का प्रतिवेदन राष्ट्रपति को व राज्य के लेखाओं के परीक्षण का प्रतिवेदन राज्य के राज्यपाल को सौंपता है।

–     नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदनों को राष्ट्रपति और राज्यपाल अपने समक्ष सदन के सम्मुख रखवाता है।

–     नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट का परीक्षण लोक लेखा समिति द्वारा किया जाता है, अंत नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक को इस समिति का मित्र या मार्गदर्शक कहा जाता है।

आलोचना

1.   नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की भूमिका धन खर्च के बाद शुरू होती है जो खर्चे के शव परीक्षण के समान है अर्थात् नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) रुपये के खर्च पूर्व रोक नहीं लगाता है।

2.   नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) का भारत की संचित निधि के धन निष्कासन पर कोई नियंत्रण नहीं है।

3.   नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) राजनीतिक दबाव का सामना करता है जो कि उसकी कार्य क्षमता को कम करता है।

4.   इसकी सिफारिश पर कठोर कारवाई नहीं हो पाती है।

5.   नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति के संदर्भ में योग्यता का संविधान में उल्लेख नहीं किया गया है।

भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की ब्रिटेन के (CAG) से तुलना

–     भारत का (CAG) केवल महालेखा परीक्षक की भूमिका निभाता है, नियंत्रक महालेखाकार की नहीं, जबकि ब्रिटेन में महालेखापरीक्षक के साथ-साथ इसमें नियंत्रक महालेखाकार की शक्ति भी निहित होती है।

–     भारत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) पैसा खर्च होने के बाद खातों का लेखा-जोखा करता है यानी पोस्ट-फैक्टो, जबकि UK में (CAG) की मंज़ूरी के बिना सरकारी खजाने से कोई पैसा निकाला ही नहीं जा सकता है।

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–     भारत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) संसद का सदस्य नहीं होता, जबकि ब्रिटेन में कैग हाउस ऑफ कॉमंस का सदस्य होता है।

निष्कर्ष

–     नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की सजगता के कारण भारत में अनेक घोटालों का पर्दाफाश हुआ तथा कैग की रिपोर्ट पर संसद की आकलन समिति के द्वारा एक रिपोर्ट तैयार की जाती है, जिसे संसद में प्रस्तुत किया जाता है, जिसके माध्यम से कार्यपालिका के खर्च पर एक प्रभावी नियंत्रण स्थापित हो जाता है।

अभी तक के नियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षक

क्रमांकनियन्त्रक एवं महालेखापरीक्षककार्यकाल कब सेकार्यकाल  कब तक
1.वी. नरहरि राव19481954
2.ए. के. चन्द19541960
3.ए. के. राय19601966
4.एस. रंगनाथन19661972
5.ए. बक्षी19721978
6.ज्ञान प्रकाश19781984
7.त्रिलोकी नाथ चतुर्वेदी19841990
8.सी. एस. सोमैया19901996
9.वी. के. शुंगलू19962002
10.वी. एन. कौल20022008
11.विनोद राय20082013
12.शशिकान्त शर्मा़20132017
13.राजीव महर्षि20172020
14.गिरीशचंद्र मुर्मू2020अब तक

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