दौसा का किला

  • जिस विशाल पहाड़ी के पर्वतांचल में दौसा नगर बसा हुआ है, वह देवगिरि की पहाड़ियां कहलाती है। इसी पर्वत शिखर पर दौसा का प्राचीन और सुदृढ़ दुर्ग अवस्थित है।
  • दौसा को ढूंढाड़ के कच्छवाहा राजवंश की प्रथम राजधानी होने का गौरव तब प्राप्त हुआ जब 11वीं शताब्दी के लगभग कच्छवाहा राज्य के संस्थापक दुलहराय नरवर (मध्यप्रदेश) से इधर आए।
  • दुलहराय ने देवती तथा भाँडारेज के बड़गूजरों को तथा मांच, खोह, गेटोर आदि स्थानों के मीणा शासकों को जीतकर ढूंढाड़ में कच्छवाहा राज्य की स्थापना की।
  • जनवरी, 1562 ई. में जब बादशाह अकबर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह की जियारत करने अजमेर गया तब इस दुर्ग में ठहरा था। यहां पर अकबर की भेंट भारमल के भाई रूपसी से हुई थी।
  • महान दादूपंथी महात्मा संत सुन्दरदास का जन्म भी दौसा में ही हुआ था।
  • 1857 ई. के स्वतंत्रता संग्राम के समय प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी तात्या टोपे दौसा आये थे। यहां पर ब्रिग्रेडियर राबर्ट्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना से वे 14 जनवरी, 1859 को परास्त हो गये तथा उसके 11 हाथी अंग्रेजों ने छीन लिये।
  • अनियमित आकार का यह दुर्ग प्राचीन और जीर्णशीर्ण प्राचीर से ढका है तथा सूप  (छाजले) की आकृति लिए हुए हैं। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण समझे जाने वाले दौसा के इस किले को संभवतः बड़गूजरों ने बनवाया था।
  • इस दुर्ग में प्रवेश हेतु दो मुख्य दरवाजे हैं- 1. हाथी पोल 2. मोरी दरवाजा, इसमें मोरी दरवाजा बहुत छोटा और संकरा है। यहां स्थित जलाशय ‘सागर‘ के नाम से प्रसिद्ध है।
  • किले के परकोटे के भीतर दो प्राचीन विशाल कुएं हैं जिनमें से मोरी दरवाजे के निकट वाला कुआं ‘राजाजी का कुआं‘ कहलाता है।
  • इस दुर्ग में बावड़ी के निकट बैजनाथ महादेव का भव्य एवं प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर प्रांगण में गणेशजी की एक प्राचीन प्रतिमा प्रतिष्ठापित है।
  • किले के सबसे ऊंची पहाड़ी की चोटी पर एक गढ़ी के भीतर नीलकंठ महादेव का मंदिर अवस्थित है।
READ MORE about  मेहरानगढ़ दुर्ग || Mehrangarh Fort

About the author

thenotesadda.in

Leave a Comment

Follow Me

Copyright © 2025. Created by Meks. Powered by WordPress.

You cannot copy content of this page