देवनारायण जी

  • जन्म – 1243 ई., वास्तविक नाम-उदयसिंह।
  • बगड़ावत परिवार में जन्म।
  • इनके अनुयायी गुर्जर जाति के लोग इन्हें विष्णु का अवतार मानते हैं।
  • पिता-सवाईभोज, माता-सेढू देवी, पत्नी-पीपलदे।
  • घोड़ा – लीलागर।
  • देवनारायणजी के जन्म से पूर्व ही इनके पिता सवाईभोज भिनाय के शासक से संघर्ष करते हुए अपने 23 भाईयों सहित शहीद हो गये। बाद में देवनारायणजी ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लिया व लम्बी लड़ाईयाँ लड़ी, जिसकी गाथा बगड़ावत महाभारत के रूप में प्रसिद्ध है।
  • देवजी की फड़गुर्जर जाति के कुँआरे भोपे जंतर वाद्य यंत्र के साथ बाँचते हैं। इनके मन्दिर में मूर्ति की बजाय ईंटों की पूजा नीम की पत्तियों के साथ होती है।
  • 1 मंतर = 1 जंतर, जंतर वाद्य यंत्र को 100 मंतर (मंत्र) के समान माना गया है।
  • सबसे प्राचीन फड़, सबसे लम्बी फड़ तथा सर्वाधिक प्रसंगों वाली फड़ देवनारायण जी की फड़ है।
  • भारत सरकार ने राजस्थान की जिस फड़ पर सर्वप्रथम डाक टिकट जारी किया वह देवनारायण जी की फड़ (2 सितम्बर, 1992 को 5 रु. का डाक टिकट) है।
  • गुर्जरों का तीर्थ स्थल-सवाईभोज का मंदिर, आसीन्द (भीलवाड़ा)।
  • जोधपुरिया (टोंक) में देवजी का प्रमुख पूजा स्थल है। देवबाबा के ग्वालों के पालनहार, कष्ट निवारक देवता आदि नामों से प्रसिद्ध है।

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