जालौर दुर्ग
- जालौर का किला पश्चिमी राजस्थान के सबसे प्राचीन और सुदृढ़ दुर्ग़ों में से गिना जाता है। जो सूकड़ी नदी के दाहिने किनारे स्थित है।
- प्राचीन साहित्य शिलालेखों में इस दुर्ग को जाबालिपुर, जालहुर आदि नामों से अभिहित किया गया है।
- जिस विशाल पर्वत शिखर पर यह किला बना है उसे सोन गिरी (स्वर्णगिरी) व कनकाचल तथा किले को सोनगढ़ या सोनलगढ़ कहा गया है। यहीं से प्रादुर्भूत होने के कारण ही चौहानों की एक शाखा ‘सोनगरा‘ उपनाम से प्रसिद्ध हुई।
- प्रतिहार नरेश वत्सराज के शासनकाल में 778 ई. में जैन आचार्य उद्योतन सूरी ने जालौर में अपने प्रसिद्ध ग्रन्थ कुवलयमाला की रचना की।
- नाड़ौल के चौहानवंशीय युवराज कीर्तिपाल ने जालौर पर अधिकार कर परमारों का वर्चस्व सदा के लिए समाप्त कर दिया। इस प्रकार कीर्तिपाल चौहानों की जालौर शाखा का संस्थापक था।
- सूंधा पर्वत अभिलेख (वि.सं. 1319) में कीर्तिपाल के लिए ‘राजेश्वर‘ शब्द का प्रयोग हुआ है।
- जालौर के किले की दुर्जेय स्थिति को देखकर ‘ताज उल मासिर‘ के लेखक हसन निजामी उस पर मुग्ध हो गया। उसने लिखा है- ‘जालौर बहुत ही शक्तिशाली और अजेय दुर्ग है, जिसके द्वार कभी भी किसी विजेता के द्वारा नहीं खोले गये चाहे वह कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो।‘
- समरसिंह का उत्तराधिकारी उदयसिंह जालौर की सोनगरा चौहान शाखा का सबसे प्रतापी और यशस्वी शासक हुआ।
- दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1307-08 में जालौर पर आक्रमण कर दिया उस समय यहां के राजा कान्हड़देव सोनगरा थे जिन्होंने आक्रमण का सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। इस युद्ध में इनका पुत्र वीरमदेव सोनगरा भी लड़ता हुआ मारा गया जिसका वर्णन कवि पद्मनाभ ने अपनी कृति ‘कान्हड़दे प्रबन्ध‘ तथा ‘वीरमदेव सोनगरा री बात‘ में किया है।
- अलाउद्दीन ने जालौर को जीतकर उसका नाम ‘जलालाबाद‘ रखा।
- जोधपुर के महाराजा मानसिंह और उनके भाई भीमसिंह के मध्य उत्तराधिकार का संघर्ष चला तब अपने संकटकाल में महाराजा मानसिंह इसी दुर्ग में ठहरे थे। जब भीमसिंह ने उन्हें वापस जोधपुर बुलाया तब उन्होंने वीरोचित उत्तर दिया-
आभ फटै, घर ऊलटै, कटै बगतराँ कोर।
सीस पड़ै, धड़ तड़फड़े, जद छूटै जालौर।।
- इस दुर्ग में प्रवेश हेतु प्रथम द्वार सूरजपोल है। इस दुर्ग में प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में महाराजा मानसिंह का महल, रानी महल, चामुण्डा माता और जोगमाया के मंदिर, दहियों की पोल, संत मल्लिकशाह की दरगाह प्रमुख और उल्लेखनीय हैं
- जालौर के किले का तोपखाना बहुत सुन्दर है जो पहले परमार राजा भोज द्वारा निर्मित संस्कृत पाठशाला थी।