जयगढ़ दुर्ग

  • ढूंढाड़ के कच्छवाहा राजवंश की पूर्व राजधानी आम्बेर के भव्य राजप्रासाद के दक्षिणवर्ती पर्वतशिखर पर एक विशाल दुर्ग स्थित है जिसका नाम है जयगढ़। 
  • इस दुर्ग की सर्वोपरि विशिष्टता यह है कि यह दुर्ग सदियों तक एक विचित्र रहस्यात्मकता से मण्डित रहा। इसमें स्वतंत्रता प्राप्ति तक सिवाय स्वयं महाराजा तथा उनके द्वारा नियुक्त दो किलेदारों के जो महाराजा के परम विश्वस्त सामन्तों में से हुआ करते थे, के अलावा कोई नहीं जा सकता था।
  • दुर्ग में जनसाधारण का प्रवेश निषिद्ध होने के सम्बन्ध में जनश्रुति है कि यहाँ कच्छवाहा राजाओं का दफीना रखा हुआ था जिसके सुरक्षा प्रहरी मीणे होते है। 
  • यह दुर्ग विशिष्ट राजनैतिक बंदियों के लिए कारागृह के काम में लिया जाता था जिसे लेकर प्रसिद्ध था कि जो व्यक्ति एक बार जयगढ़ दुर्ग में कैद कर डाल दिया जाता था, वह जीवित नहीं निकलता था।
  • श्रीमती इन्दिरा गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में इस दुर्ग के गुप्त खजाने की खोज में इस किले के भीतर व्यापक खुदाई की घटना ने जयगढ़ को देश-विदेश में चर्चित कर दिया।
  • यह भारत का एकमात्र दुर्ग है जहाँ तोप ढालने का संयत्र लगा हुआ है जो आज भी देखा जा सकता है। सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित ‘जयबाण’ नामक तोप इसी संयत्र से ढली हुई है, जो विश्व की सबसे बड़ी तोप के रूप में प्रसिद्ध है। 
  • कुछ इतिहासकारों की धारणा है कि इस रहस्यमय दुर्ग का निर्माण आम्बेर के यशस्वी शासक प्रख्यात सेनानायक महाराजा मानसिंह प्रथम ने करवाया था। 
  • सन् 1726 ई. में सवाई जयसिंह ने इस दुर्ग को वर्तमान स्वरूप प्रदान किया। 
  • यह दुर्ग ‘चिल्ह का टोला’ उपनाम से भी प्रसिद्ध हे। 
  • यह एक उत्कृष्ट गिरि दुर्ग है जो अपने अद्भुत शिल्प और अनूठे स्थापत्य के कारण प्रसिद्ध है। 
  • जयगढ़ दुर्ग का विस्तार 4 किमी. की परिधि में है। इसके तीन प्रमुख प्रवेश द्वार है- डूंगर दरवाजा, अवनि दरवाजा, भैरू दरवाजा ।
  • जयगढ़ के प्रमुख भवनों में जलेब चौक, सुभट निवास (दीवान ए आम), खिलबत निवास (दीवान ए खास), लक्ष्मी निवास ललित मंदिर, विलास मंदिर, सूर्य मंदिर, आराम मंदिर व राणावत जी का चौक है जो हिन्दू स्थापत्य कला के उत्कृष्ट उदाहरण है। 
  • इस दुर्ग में राम, हरिहर और काल भैरव के प्राचीन मंदिर भी बने है। 
  • सशस्त्र किलेबंदी से युक्त इस गढ़ी में महाराजा सवाई जयसिंह ने अपने प्रतिद्धन्दी छोटे भाई विजयसिंह को कैंद रखा था। वर्षों तक यहाँ कैद रहे विजयसिंह के नाम पर यह लघु गढ़ी विजयगढ़ी कहलाती है। 
  • इस दुर्ग में रखी ‘जयबाण’ तोप की नाल 20 फीट लम्बी है तथा इस तोप का वजन लगभग 50 टन है। जयबाण से 50 किलोग्राम के 11 इंच व्यास के गोले दागे जा सकते है। इसको चलाने के लिए एक बार में 100 किलो बारूद भरा जाता था। इसकी मारक क्षमता लगभग 22 मील है। यह एक बार केवल परीक्षण के समय चलाई गई थी तब उसका गोला ‘चाकसू’ में जाकर गिरा था। 
  • राजस्थान राज्य प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में सुरक्षित पोथीखाने के अनुसार जयगढ़ के निर्माता मिर्जा राजा जयसिंह (1627-1663) और सवाई जयसिंह (1699-1743) थे। 
  • जयगढ़ को संकटमोचक दुर्ग के नाम से पुकारा जाता है। 
  • सन् 1983 ई. में यह किला एक पर्यटक स्थल बन गया है, जहाँ सारे संसार के सैलानी घूमने आते है। 
READ MORE about  चित्तौड़गढ़ दुर्ग || Chittod garh Fort

About the author

thenotesadda.in

Leave a Comment

Follow Me

Copyright © 2025. Created by Meks. Powered by WordPress.

You cannot copy content of this page