केन्द्रीय सूचना आयोग
पृष्ठभूमि-
– केंद्रीय सूचना आयोग शासन की प्रणाली में पारदर्शिता बनाए रखने में अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जो लोकतंत्र के लिए जरूरी है।
– केन्द्रीय सूचना आयोग एक उच्च प्राधिकारयुक्त स्वतंत्र निकाय है, जो इसमें दर्ज शिकायतों की जाँच करता है एवं उनका निराकरण करता है।
– यह केन्द्र सरकार एवं केन्द्र शासित प्रदेशों के अधीन कार्यरत कार्यालयों, वित्तीय संस्थानों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों आदि के बारे में शिकायतों एवं अपीलों की सुनवाई करता है।
स्थापना-
– सूचना का अधिकार (Right to Information-RTI) अधिनियम, 2005 भारत सरकार का एक अधिनियम है, जिसे नागरिकों को सूचना का अधिकार उपलब्ध कराने के लिये लागू किया गया है।
– इस अधिनियम के माध्यम से केन्द्रीय सूचना आयोग की स्थापना वर्ष 2005 में केन्द्र सरकार द्वारा की गयी थी।
– इसकी स्थापना सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत “शासकीय राजपत्र” अधिसूचना के माध्यम से की गयी थी। इस प्रकार यह एक संवैधानिक निकाय नहीं है।
Note-
– एस.पी.गुप्ता & भारत संघ वाद में न्यायपालिका ने सूचना के अधिकार को मूल अधिकार माना है।
– सर्वप्रथम वर्ष 1776 में स्वीडन में इस अधिकार को लागू किया गया था।
– भारत में गोवा में वर्ष 1997 में सूचना के अधिकार को लेकर कानून बनाया गया था।
– भारत में इस अधिकार को लागू करवाने के लिए अरुणा रॉय, अरविन्द केजरीवाल आदि प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ताओं का योगदान रहा है।
– प्रतिवर्ष 12 अक्टूबर को “सूचना के अधिकार दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
संरचना-
– इस आयोग में एक मुख्य आयुक्त एवं 10 अन्य सूचना आयुक्त होते हैं।
कार्यकाल-
– मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्त केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित अवधी या 65 वर्ष आयु तक अपने पद पर बने रहते है।
नियुक्ति-
– मुख्य आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है।
– समिति के सदस्य-
1. प्रधानमंत्री
2. लोकसभा में विपक्ष का नेता
3. प्रधानमंत्री द्वारा नामित एक कैबिनेट मंत्री
– इस आयोग का अध्यक्ष एवं सदस्य बनने वाले सदस्यों में सार्वजनिक जीवन का पर्याप्त का अनुभव होना चाहिए तथा उन्हें विधि, विज्ञान एवं तकनीकी, सामाजिक सेवा, प्रबंधन, पत्रकारिता, जनसंचार या प्रशासन आदि का विशिष्ट अनुभव होना चाहिए।
त्यागपत्र-
– इस आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्य भारत के राष्ट्रपति के नाम त्यागपत्र सम्बोधित करते हैं।
पद से हटाया जाना-
– राष्ट्रपति आयोग के अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को सिद्ध कदाचार या अक्षमता के आधार पर पद से हटा सकते हैं।
– इन मामलों में राष्ट्रपति मामले को जाँच के लिये उच्चतम न्यायालय के पास भेजते हैं तथा यदि उच्चतम न्यायालय जाँच के उपरांत मामले को सही पाता है तो वह राष्ट्रपति को इस बारे में सलाह देता है, उसके उपरांत राष्ट्रपति अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को पद से हटा देते हैं।
वेतन, भत्ते एवं सेवा शर्तें-
– आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त व अन्य सूचना आयुक्त के वेतन, भत्ते एवं अन्य सेवा शर्तें केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किये जायेंगे।
आयोग का नोडल विभाग-
– कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (Department of personnel & training-DoPT) सूचना का अधिकार और केंद्रीय सूचना आयोग का नोडल विभाग है।
सूचना का अधिकार संशोधन विधेयक-2019:-
– लोकसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन), 2019 पारित किया। इस विधेयक में सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को संशोधित करने का प्रस्ताव किया गया है।
– सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अनुसार मुख्य सूचना आयुक्त (CIC) और अन्य सूचना आयुक्तों का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, परन्तु संशोधन के तहत इसे परिवर्तित करने का प्रावधान गया है। इस संशोधन के अनुसार, मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का कार्यकाल केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जाएगा।
– नए संशोधन के तहत केंद्र और राज्य स्तर पर मुख्य सूचना आयुक्त एवं अन्य सूचना आयुक्तों के वेतन-भत्ते तथा अन्य रोजगार की शर्तें केंद्र सरकार द्वारा ही निर्धारित की जाएगी।
– सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 यह प्रावधान करता है कि यदि मुख्य सूचना आयुक्त और अन्य सूचना आयुक्त पद पर नियुक्त होते समय उम्मीदवार किसी अन्य सरकारी नौकरी की पेंशन या अन्य सेवानिवृत्ति लाभ प्राप्त करता है तो उस लाभ के बराबर राशि को उसके वेतन से घटा दिया जाएगा, लेकिन इस नए संशोधन में इस प्रावधान को समाप्त कर दिया गया है।
शक्तियाँ एवं कार्य –
– केन्द्रीय सूचना आयोग के कार्य एवं शक्तियाँ इस प्रकार हैं
1. आयोग का यह दायित्व है कि वे किसी व्यक्ति से प्राप्त निम्न जानकारी एवं शिकायतों का निराकरण करें :
(क) जन सूचना अधिकारी की नियुक्ति न होने के कारण किसी सूचना को प्रस्तुत करने में असमर्थ रहा हो।
(ख) उसे चाही गयी जानकारी देने से मना कर दिया गया हो।
(ग) उसे चाही गयी जानकारी निर्धारित समय में प्राप्त न हो पायी हो।
(घ) ततयदि उसे लगता हो कि सूचना के एवज में मांगी फीस सही नहीं है।
(ड़) यदि उसे लगता है कि उसके द्वारा मांगी गयी सूचना अपर्याप्त, झूठी या भ्रामक है, तथा
(च) सूचना प्राप्ति से संबंधित कोई अन्य मामला।
2. यदि किसी ठोस आधार पर कोई मामला प्राप्त होता है तो आयोग ऐसे मामले की जाँच का आदेश दे सकता है।
3. जाँच करते समय, निम्न मामलों के संबंध में आयोग को दीवानी न्यायालय की शक्तियाँ प्राप्त होती हैं।
(क) वह किसी व्यक्ति को प्रस्तुत होने एवं उस पर दबाव डालने के लिये सम्मन जारी कर सकता है तथा मौखिक या लिखित रूप से शपथ के रूप में साक्ष्य प्रस्तुत करने का आदेश दे सकता है।
(ख) किसी दस्तावेज को मंगाना एवं उसकी जाँच करना।
(ग) शपथ-पत्र के रूप में साक्ष्य प्राप्त करना।
(घ) किसी न्यायालय या कार्यालय से सार्वजनिक दस्तावेज को मांगना।
(ड़) किसी गवाह या दस्तावेज की जाँच करने के लिये सम्मन जारी करना तथा
(च) कोई अन्य मामला जो निर्दिष्ट किया जाए।
4. शिकायत की जाँच करते समय, आयोग लोक प्राधिकारी के नियंत्रणाधीन किसी दस्तावेज या रिकॉर्ड की जाँच कर सकता है तथा इस रिकॉर्ड को किसी भी आधार पर प्रस्तुत करने से इंकार नहीं किया जा सकता है।
5. आयोग को यह शक्ति प्राप्त है कि वह लोक प्राधिकारी से अपने निर्णयों का अनुपालन सुनिश्चित करें, इसमें सम्मिलित
(क) किसी विशेष रूप में सूचना तक पहुँच।।
(ख) जहाँ कोई भी जन सूचना अधिकारी नहीं है वहाँ ऐसे अधिकारी को नियुक्त करने का आदेश देना।
(ग) सूचनाओं के प्रकार या किसी सूचना का प्रकाशन
(घ) रिकॉर्ड के प्रबंधन, रख-रखाव एवं विनिष्टीकरण की रीतियों में किसी प्राकार का आवश्यक परिवर्तन।
(ड़) सूचना के अधिकार के बारे में प्रशिक्षण की व्यवस्था।
(च) इस अधिनियम के अनुपालन के संदर्भ में लोक प्राधिकारी से वार्षिक प्रतिवेदन प्राप्त करना।
(ज) इस अधिनियम (आयोग लोक सूचना अधिकारी पर 250 रु. प्रतिदिन के हिसाब से जुर्माना लगा सकता है, जो अधिकतम 25000 रु. हो सकता है। यह दोषी अधिकारी के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही की सिफारिश कर सकता है।) के अंतर्गत अर्थदण्ड लगाना।
(झ) किसी याचिका को अस्वीकार करना।
6. इस अधिनियम के क्रियान्वयन के संदर्भ में आयोग अपना वार्षिक प्रतिवेदन केन्द्र सरकार को प्रस्तुत करता है। केन्द्र सरकार इस प्रतिवेदन को प्रस्तुत करती है। केन्द्र सरकार इस प्रतिवेदन को दोनों सदनों को पटल पर रखती है।
7. जब कोई लोक प्राधिकारी इस अधिनियम का पालन नहीं करता तो आयोग इस संबंध में आवश्यक कार्यवाही कर सकता है। ऐसे कदम उठा सकता है जो इस अधिनियम का अनुपालन सुनिश्चित करें।
8. भारत का कोई भी नागरिक किसी भी सरकारी प्राधिकरण से सूचना प्राप्त करने हेतु अनुरोध कर सकता है, यह सूचना 30 दिनों के अंदर उपलब्ध कराई जाने की व्यवस्था की गई है। यदि सूचना 30 दिन की अवधि में उपलब्ध नहीं करवाई गयी या गलत सूचना दी गयी है तो अपीलीय अधिकारी के पास अपील की जा सकती है और इस अपील का 90 दिन में निपटारा किया जाना जरूरी होगा।
9. यदि सूचना जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से संबंधित है तो ऐसी सूचना को 48 घंटे के भीतर ही उपलब्ध कराने का प्रावधान है।
10. सभी सार्वजनिक प्राधिकरण अपने दस्तावेज़ों का संरक्षण करते हुए उन्हें कंप्यूटर में सुरक्षित रखेंगे।
11. प्राप्त सूचना की विषयवस्तु के संदर्भ में असंतुष्टि, निर्धारित अवधि में सूचना प्राप्त न होने आदि जैसी स्थिति में स्थानीय से लेकर राज्य एवं केंद्रीय सूचना आयोग में अपील की जा सकती है।