उच्चतम न्यायालय 

उच्चतम न्यायालय मूल अधिकारों एवं संविधान का संरक्षक है। ऑस्टिन के अनुसार, ″यह सामाजिक क्रांति का संरक्षक है।″ अल्लादि कृष्णा स्वामी अय्यर के अनुसार, ″यह एक महान अधिकरण (Tribunal) है, जिसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं सामाजिक नियंत्रण बीच एक रेखा खींचनी होती है। यह देश में कानून का अंतिम और सर्वोच्च व्याख्याकार है। यह देश में सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है″ (जबकि स्वतंत्रता से पूर्व ब्रिटिश प्रीवी कांउसिंल सर्वोच्च अपीलीय अदालत थी)।

पृष्ठभूमि

–     भारत में उच्चतम न्यायालय का शुभारम्भ 28 जनवरी, 1950 को हुआ था जो भारत शासन अधिनियम, 1935 के तहत लागू संघीय न्यायालय का प्रतिरूप था।

संविधान में प्रावधान

    भारतीय संविधान के भाग – 5 में अनु. 124 से 147 तक उच्चतम न्यायालय की शक्तियाँ, न्यायक्षेत्र, कार्यक्षेत्र, गठन प्रक्रिया का उल्लेख किया गया है।

गठन

–     उच्चतम न्यायालय के गठन के बारे में प्रावधान अनुच्छेद-124 में किया गया है। अनुच्छेद-124(1) के तहत मूल संविधान में उच्चतम न्यायालय के लिए 1 मुख्य न्यायाधीश तथा 7 अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई थी।

–     उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या, क्षेत्राधिकार, सेवा शर्तें निर्धारित करने का अधिकार संसद को दिया गया था। वर्तमान भारत में 33 न्यायाधीश एवं 1 मुख्य न्यायाधीश है। उच्चतम न्यायालय संशोधन अधिनियम, 2019 के द्वारा केन्द्र सरकार ने अगस्त, 2019 में न्यायाधीशों की संख्या 31 से बढ़ाकर 34 कर दी है।

नियुक्ति

–     उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है तथा अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद करता है। न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को कॉलेजियम व्यवस्था कहा जाता है कॉलेजियम व्यवस्था से तात्पर्य यह है कि इसमें 4 वरिष्ठ न्यायाधीशों का एक पैनल होता है जो न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं स्थानांतरण की प्रक्रिया को संपन्न करता है।

      नोट : कॉलेजियम का गठन 1993 में किया गया। इसमें  एक अध्यक्ष एवं 4 सदस्य होते है अध्यक्ष उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश होता है जबकि सदस्य सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठ न्यायाधीश होते है।

योग्यताएँ

–     संविधान के अनुच्छेद-124(3) के अनुसार –       

      सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के लिए निम्न योग्यताओं का होना अनिवार्य है –

      (i) वह भारत का नागरिक होना चाहिए।

      (ii) उच्च न्यायालय में कम से कम 5 वर्ष तक न्यायाधीश रहा हो तथा किसी उच्च न्यायालय में कम से कम 10 वर्ष अधिवक्ता के रूप में रहा हो।

      (iii) राष्ट्रपति के मत में वह सम्मानित न्यायविद् हो।

कार्यकाल

–     भारतीय संविधान में न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए कोई न्यूनतम आयु सीमा निर्धारित नहीं है। संविधान के अनुच्छेद- 124(2) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश अधिकतम 65 वर्ष तक अपने पद पर बने रह सकते हैं।

न्यायाधीशों की आयु से संबंधित विवाद

–     15वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1963 के द्वारा यह प्रावधान किया गया है कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की आयु से संबंधित किसी भी प्रश्न का निर्णय संसद द्वारा किया जायेगा।

पद से हटाना

–     अनुच्छेद- 124(4) के अनुसार सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने का आधार दुर्व्यवहार, सिद्ध कदाचार है जिसके लिए महाभियोग प्रक्रिया से संसद के दोनों सदनों में सदन की कुल सदस्यता का बहुमत एवं उपस्थित तथा मत देने वाले 2/3 सदस्यों के बहुमत से हटाया जा सकता है। अनुच्छेद-124(5) के अनुसार ऐसे किसी भी प्रस्ताव को संसद में रखने तथा न्यायाधीशों के कदाचार या असमर्थता की जाँच करने के लिए संसद में न्यायाधीश जाँच अधिनियम, 1968 बनाया गया जिसके अनुसार किसी न्यायाधीश को हटाने के लिए एक प्रस्ताव राष्ट्रपति को संबोधित करके लाया जाएगा। अभी तक किसी भी न्यायाधीश पर महाभियोग का प्रस्ताव सिद्ध नहीं हुआ है।

–     भारत में पहली बार महाभियोग उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश वी. रामा स्वामी (1991-93) के विरुद्ध लाया गया था परन्तु यह लोकसभा में पारित नहीं हो सका था।

शपथ

–     अनुच्छेद-124(6) के अनुसार मुख्य न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों को शपथ राष्ट्रपति द्वारा या उनके द्वारा नियुक्त अन्य व्यक्ति द्वारा दिलवाई जाती है।

वेतन तथा भत्ते

–     अनुच्छेद-125 के अनुसार उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को वेतन संसद द्वारा निर्धारित विधि के आधार पर दिए जाएंगे। संसद द्वारा पारित संशोधन अधिनियम, 2017 के अनुसार उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को वेतन 2,80,000 रुपये तथा अन्य न्यायाधीशों को वेतन 2,50,000 रुपये प्रति माह दिया जाता है।

कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश

–     अनुच्छेद-126 के तहत उच्चतम न्यायालय में अगर मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थित हो या कर्तव्य पालन में असमर्थ हो तो राष्ट्रपति कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति कर सकता है।

तदर्थ न्यायाधीश

–     अनुच्छेद-127(1) के अनुसार तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति मुख्य न्यायाधीश की सहमति तथा राष्ट्रपति की पूर्ण मंजूरी के बाद न्यायालय के कोरम पूर्ति करने के लिए की जाती है।

सेवानिवृत्त न्यायाधीश

–     संविधान के अनुच्छेद-128 के अनुसार मुख्य न्यायाधीश को यह अधिकार दिया गया है कि आवश्यकता पड़ने पर वह राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति लेकर उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश से भी उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में बैठने और कार्य करने का अनुरोध कर सकता है।

न्यायालय का कार्यस्थान

–     अनुच्छेद-130 के अनुसार उच्चतम न्यायालय का कार्यस्थान दिल्ली रहेगा। वैकल्पिक रूप में चाहे तो मुख्य न्यायाधीश राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति के बाद अन्यत्र जगह स्थापित कर सकते हैं।

      नोट : अब तक दो बार उच्चतम न्यायालय की बैठकों के स्थान में परिवर्तन हुआ है – 1. हैदराबाद 2. श्रीनगर

उच्चतम न्यायालय का क्षेत्राधिकार एवं शक्तियाँ

आरम्भिक अधिकारिता (Original Jurisdiction) अनुच्छेद 131 : इस अधिकारिता के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय निम्नलिखित विवादों का समाधान करता है :

READ MORE about  राष्ट्रपति

      (a) भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच

      (b) एक ओर भारत सरकार व कुछ राज्य तथा दूसरी ओर अन्य राज्यों की सरकारों के बीच

      (c) दो या दो से अधिक राज्यों के बीच   

      किंतु विवाद विधि या तथ्य के विषय से संबंधित होना चाहिए जिस पर किसी विधिक अधिकार का अस्तित्व या विस्तार निर्भर है यह उच्चतम न्यायालय का अनन्य (Exclusive) अधिकार है, अर्थात् अन्य न्यायालय इसे उपयोग नहीं करेंगे। कोई व्यक्ति ऐसे वार दायर नहीं कर सकता।

अपवादः निम्नलिखित मामलों में उत्पन्न विवादों में उच्चतम न्यायालय इस अधिकारिता का प्रयोग नहीं करेगा:

      (i) सविधान के पहले की गई या लाग की गई संधि (Trealvi, करार (Agreement), प्रसंविदा (Covenant), वचनबंध (Engage (Sanad) या अन्य लिखत (Instrument) से उत्पन्न विवाद या जो ऐसे अधिकार का प्रयोग करने से उसे रोकती हो (अनुच्छेद 131 का परंतुक)।

      (ii) अंतर्राज्यीय नदी जल बंटवारे से संबंधित विवाद

      (iii) अनुच्छेद 280 के अंतर्गत गठित वित्त आयोग की सिफारिशों से उत्पन्न विवाद in केंद्र एवं राज्य के बीच कुछ खचों एवं पेंशन के समायोजन से संबंधित विवाद केंद्र व राज्यों के मध्य वाणिज्यिक विवाद

      (vi) केंद्र के विरुद्ध राज्यों द्वारा क्षतिपूर्ति की रिकवरी

अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction) : उच्चतम न्यायालय देश का सर्वोच्च अपीलीय न्यायालय है। इसे उच्च न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील की सुनवाई करने का अधिकार है। इसकी अपीलीय क्षेत्राधिकारिता को निम्नलिखित भागा में वर्गीकृत किया जा सकता है:

(i) संवैधानिक मामलों में अपील

(ii) सिविल मामलों में अपील

(iii) दाण्डिक मामलों में अपील

(iv) विशेष अनुमति से अपील

      (i) संवैधानिक मामलों में अपील (Appeal in Constitutional Matters) अनुच्छेद 132: किसी उच्च न्यायालय की सिविल, दांडिक या अन्य कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी जब वह उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134(A) के अधीन प्रमाणित कर देता है कि इस मामले में संविधान के निर्वचन (Interpretation) के बारे में विधि का कोई सारवान प्रश्न (Substantial question of law) शामिल है।

      (ii) सिविल मामलों में अपील (Appeal in Civil matters) अनुच्छेद 133: सिविल मामलों में उच्च न्यायालय के निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश की अपील उच्चतम न्यायालय में तब होगी जब उच्च न्यायालय अनुच्देद 134(A) के अंतर्गत यह प्रमाणित करे कि:

      (a) मामले में विधि का व्यापक महत्व का कोई सारवान प्रश्न शामिल हैं (b) उच्च न्यायालय की राय में, उच्चतम न्यायालय द्वारा उस प्रश्न का विनिश्चिय करना आवश्यक है।

READ MORE about  मूल कर्तव्य

      उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के निर्णय के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील तब तक नहीं होगी, जब तक संसद विधि द्वारा ऐसा प्रावधान न करे।

      (iii) दांडिक मामलों में अपील (Appeal in Criminal Matters) अनुच्छेद 134: किसी उच्च न्यायालय द्वारा दांडिक कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, अंतिम आदेश या दंडादेश की अपील उच्चतम न्यायालय में होगी जबः

      (a) उच्च न्यायालय ने अपील में अभियुक्त व्यक्ति के दोषमुक्ति (Acquittal) के आदेश को उलट दिया है और उसे मृत्युदंड की सजा दी है, या

      (b) उच्च न्यायालय ने अधीनस्थ न्यायालय से मामले को अपने पास विचारण के लिए मंगा लिया है और अभियुक्त व्यक्ति

को दोषी (Convicted) ठहराते हुए उसे मृत्युदंड दिया है, या

      (c) उच्च न्यायालय अनुच्छेद 134(A) के अधीन प्रमाणित करता है कि मामला उच्चतम न्यायालय में अपील किए जाने योग्य है।

अनुच्छेद 134(A): उच्चतम न्यायालय में अपील के लिए प्रमाण पत्र (Certificate for Appeal to the Supreme Court):

उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय में अपील करने के लिए तब प्रमाण-पत्र जारी करता है, जबः

(a) वह उचित समझे तो स्व-प्रेरणा से (Its own motion)

(b) व्याथित पक्षकार द्वारा या उसकी ओर से मौखिक आवेदन किया जाए (यह अनुच्छेद 44वें संविधान संशोधन 1978 द्वारा जोड़ा गया)।

(iv) विशेष अनुमति से अपील (Special Leave to Appeal) अनुच्छेद 136: उच्चतम न्यायालय अपने किसी न्यायालय या अधिकरण के द्वारा दिए गए निर्णय, डिक्री, अवधारणा (Determination), दंडादेश – आदेश की अपील के लिए विशेष इजाजत दे सकेगा।

–     यह प्रावधान अत्यंत व्यापक है और किसी भी प्रकार के मामले में लागू होता है चाहे उस पर अंतिम निर्णय दिया गया किंतु यह प्रावधान सशस्त्र बलों के न्यायालय या अधिकरण द्वारा पारित आदेश, निर्णय आदि पर लागू नहीं होता।

      निर्णयों या आदेशों का पुनर्विलोकन (Review of Judgements or Orders) अनुच्छेद 137: उच्चतम न्यायालय स्वयं के द्वारा सुनाए गए निर्णय, आदेश का पुनर्विलोकन कर सकेगा (यह संसद द्वारा बनाई गई विधि या अनुच्छेद 145 गए नियम के अधीन होगा)। किंतु यह न्यायिक पुनर्विलोकन नहीं है।

      न्यायिक पुनर्विलोकन (Judicial Reivew) अनच्छेद 13(2): न्यायालय द्वारा विधियों की संवैधानिकता की जांच न्यायिक पुनर्विलोकन कहलाता है (देखें मूल अधिकार का भाग)।

      कुछ मामलों का अंतरण करने की शक्ति (Power to transfer of certain cases) अनुच्छेद 139(A):

(i) उच्चतम न्यायालय किसी उच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों से उनके समक्ष लंबित मामलों को अपने पास मंगा सकेगा और के अंतर्गत बनाए सभी को स्वयं निपटा सकेगा जबः

READ MORE about  संविधान की प्रस्तावना (उद्देशिका) 

(a) ऐसे मामले में विधि के समान या सारतः समान प्रश्न शामिल हैं, और (b) मामले उच्चतम न्यायालय और एक या अधिक उच्च न्यायालयों के समक्ष लंबित हैं

(c) उच्चतम न्यायालय को स्व-प्रेरणा से या भारत के महान्यायवादी के आवेदन पर या किसी पक्षकार के आवेदन पर यह समाधान हो जाता है कि ऐसे प्रश्न व्यापक महत्व के सारवान प्रश्न हैं।

–     सन्यायालय ऐसे निर्णय की प्रतिलिपि (Copy) उस उच्च न्यायालय को भेजेगा, जिससे मामला मंगाया था, और वह उच्च न्यायालय ऐसे निर्देश व निर्णय के अनुरूप मामले को निपटाने के लिए आगे कार्यवाही करेगा।

(ii) उच्चतम न्यायालय किसी उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित किसी मामले, अपील या अन्य कार्यवाही का अंतरण (Transfer) किसी अन्य उच्च न्यायालय को कर सकेगा।

8. परामर्शी क्षेत्राधिकार (Advisory Jurisdiction):अनुच्छेद 143: राष्ट्रपति निम्नलिखित मामलों में उच्चतम न्यायालय की राय मांग सकता है:

(i)     जब विधि या तथ्य का कोई प्रश्न उत्पन्न हुआ है या उत्पन्न होने की संभावना है और ऐसी प्रकृति या व्यापक महत्व का है कि उस पर उच्चतम न्यायालय की राय प्राप्त करना व्यावहारिक रूप से उचित (Expedient) है। न्यायालय सुनवाई के बाद राष्ट्रपति को राय देगा। राष्ट्रपति की ओर से महान्यायवादी उच्चतम न्यायालय के समक्ष उपस्थित होगा। न तो उच्चतम न्यायालय राष्ट्रपति को राय देने के लिए बाध्य है और न ही राष्ट्रपति उसकी राय मानने के लिए बाध्य है।

(ii)    अनुच्छेद 131 के परंतुक में वर्णित विवाद पर अर्थात् संविधान के पूर्व लागू संधियों, करार, प्रसंविदा, वचनबंध सनद या ऐसी अन्य लिखतों से उत्पन्न विवाद पर। उच्चतम न्यायालय सुनवाई के बाद राष्ट्रपति को राय देगा। इस दशा में वह राय देने को बाध्य है। किंत राष्टपति सेवा के लिए बाध्य नहीं है।

उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता में वृद्धि (Enlargement of the Jurisdiction of Supreme Court: अनछेट 138

1. संसद कानून बनाकर संघ सूची के विषय के संबंध में उच्चतम न्यायालय को अतिरिक्त शक्तियाँ सौंपी सकती है। 

2. यदि संसद विधि द्वारा ऐसा प्रावधान करे तो उच्चतम न्यायालय ऐसी शक्तियों का प्रयोग करेगा जो भारत । विशेष करार द्वारा उसे प्रदान करे। 

मूल अधिकारों का संरक्षक

–     संविधान में उच्चतम न्यायालय को नागरिकों के मूल अधिकारों के रक्षक के रूप में भी स्थापित किया गया है। रिट जारी करने की शक्ति सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद-32 के अन्तर्गत जबकि उच्च न्यायालय को अनुच्छेद-226 के अन्तर्गत प्राप्त है। प्रमुख रिट या प्रलेख निम्न हैं-

बन्दी प्रत्यक्षीकरण

–     इसका शाब्दिक अर्थ है ‘को प्रस्तुत किया जाए’ यह रिट ऐसे व्यक्ति या प्राधिकारी के विरुद्ध जारी की जाती है, जिसमें किसी व्यक्ति को अवैध रूप से निरुद्ध किया गया है। इसके अनुसार न्यायालय निरुद्ध या कारावासित व्यक्ति को अपने समक्ष उपस्थित कराता है।

परमादेश

–     इसका शाब्दिक अर्थ है- ‘हम आदेश देते हैं।’ इस रिट का प्रयोग ऐसे अधिकारी को आदेश देने के लिए किया जाता है जो सार्वजनिक कर्तव्यों को करने से इंकार या उपेक्षा करता है। यह रिट राष्ट्रपति एवं राज्यपाल के विरुद्ध जारी नहीं की जा सकती है।

प्रतिषेध

–     इसका अर्थ है- ‘मना करना या रोकना।’ इसके अनुसार ऐसी अधिकारिता का प्रयोग करने से निषिद्ध किया जाता है, जो उसमें निहित नहीं है। यह रिट सिर्फ न्यायिक या अर्द्धन्यायिक कृत्यों के विरुद्ध जारी की जाती है। जिस तरह परमादेश सीधे सक्रिय रहता, प्रतिषेध सीधे सक्रिय नहीं रहता है।

उत्प्रेषण

–     इसका शाब्दिक अर्थ है- ‘सूचना देना या प्रमाणित होना।’ उत्प्रेषण प्रलेख प्रतिषेध प्रलेख के समान ही है, क्योंकि दोनों अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी की जाती हैं किन्तु दोनों प्रलेखों में मुख्य अन्तर यह है कि प्रतिषेध रिट कार्यवाही के दौरान, कार्यवाही को रोकने के लिए जारी की जाती है, जबकि उत्प्रेषण रिट कार्यवाही की समाप्ति पर निर्णय को रद्द करने हेतु जारी की जाती है।

अधिकार पृच्छा

–     इसका शाब्दिक अर्थ ‘किसी प्राधिकृत या वारंट के द्वारा है।’ यदि किसी व्यक्ति के द्वारा गैर वैधानिक तरीके से किसी भी पद को धारण किया गया हो तो न्यायालय इस रिट के माध्यम से उसके पद का आधार पूछती है। अन्य चार रिटों से हटकर इसे किसी भी इच्छुक व्यक्ति द्वारा जारी किया जा सकता है, न कि पीड़ित द्वारा। इसे मंत्रित्व और निजी कार्यालय के लिए जारी नहीं किया जा सकता।

अभिलेख न्यायालय

–     अनु.129 के तहत उच्चतम न्यायालय एक अभिलेख न्यायालय है क्योंकि इनकी कार्यवाही एवं फैसले अभिलेख व साक्ष्य के रूप में रखे जाते हैं। अन्य न्यायालय इसे विधिक संदर्भों की तरह स्वीकार करेंगे।

भारत के मुख्य न्यायाधीश

क्र.सं.नामकार्यकाल
1.हीरालाल जे. कानिया29 जनवरी, 1950 से 6 नवंबर, 1951 तक
2.एम. पतंजलि शास्त्री1951 से 1954 तक
3.मेहर चंद महाजन4 जनवरी, 1954 से 22 दिसम्बर, 1954 तक
4.बी.के. मुखर्जी1954 से 1956 तक
5.एस.आर. दास1956 से 1959 तक
6.भुवनेश्वर प्रसाद सिन्हा1959 से 1964 तक
7.पी.बी. गजेन्द्रगड़कर1964 से 1966 तक
8.ए.के. सरकार16 मार्च, 1966 से 29 जून, 1966 तक
9.के. सुब्बाराव1966 से 1967 तक
10.के.एन. वांचू1967 से 1968 तक
11.एम. हिदायतुल्लाह1968 से 1970 तक
12.आई.सी. शाह1970 से 1971 तक
13.एम.एम. सीकरी1971 से 1973 तक
14.ए.एन. रे1973 से 1977 तक
15.एम.एच. बेग1977 से 1978 तक
16.वाई. वी. चन्द्रचूड़1978 से 1985 तक
17.पी.एन. भगवती1985 से 1986 तक
18.आर.एस. पाठक1986 से 1989 तक
19.ई.एस. वेंकटरमैया19 जून,1989 से 17 दिसंबर, 1989 तक
20.एस. मुखर्जी1989 से 1990 तक
21.रंगनाथ मिश्र1990 से 1991 तक
22.के.एन. सिंह25 नवंबर, 1991 से 12 दिसंबर, 1991 तक
23.एम.एच. कानिया1991 से 1992 तक
24.आई.एम. शर्मा1992 से 1993 तक
25.एम.एन. वेंकटचलैया1993 से 1994 तक
26.ए.एम. अहमदी1994 से 1997 तक
27.जे.एस. वर्मा1997 से 1998 तक
28.एम.एम. पंछी18 जनवरी, 1998 से 9 अक्टूबर, 1998 तक
29.ए.एस. आनंद1998 से 2001 तक
30.एस.पी. भरुचा2001 से 2002 तक
31.बी.एन. कृपाल6 मई, 2002 से 7 नवंबर, 2002 तक
32.जी.बी. पटनायक8 नवंबर, 2002 से 18 दिसंबर, 2002 तक
33.वी.एन. खरे2002 से 2004 तक
34.एस. राजेन्द्र बाबू2 मई, 2004 से 31 मई, 2004 तक
35.आर.सी. लाहोटी2004 से 2005
36.वाई. के. सब्बरवाल2005 से 2007 तक
37.के.जी. बालकृष्णन2007 से 2010 तक
38.एस.एच. कपाड़िया2010 से 2012 तक
39.अल्तमस कबीर2012 से 2013 तक
40.पी. सदाशिवम̖2013 से 2014 तक
41.राजेन्द्र मल लोढ़ा27 अप्रैल, 2014 से 27 सितंबर, 2014 तक
42.एच.एल. दत्तू2014 से 2015 तक
43.टी.एस. ठाकुर2015 से 2017 तक
44.जे.एस. खेहर4 जनवरी, 2017 से 27 मई, 2017
45.दीपक मिश्रा2017 से 2018 तक
46.रंजन गोगोई2018 से 2019 तक
47.शरद अरविन्द बोबडे18 नवम्बर, 2019 से 23 अप्रेल 2021
48.एन. वी. रमणा24 अप्रेल 2021 से अब तक

About the author

thenotesadda.in

Leave a Comment

Follow Me

Copyright © 2025. Created by Meks. Powered by WordPress.

You cannot copy content of this page