आम्बेर दुर्ग
- कच्छवाहों की पुरानी राजधानी आम्बेर का दुर्ग जयपुर से लगभग 11 किमी. उत्तर में एक पर्वतीय ढलान पर अवस्थित है।
- साहित्यिक ग्रंथों एवं शिलालेखों में इसे आम्बेर, अम्बिकापुर, अम्बर, अम्बरीश, अम्बावती इत्यादि नामों से अभिहित किया गया है।
- आम्बेर के राजाओं के महत्वपूर्ण योगदान को लक्ष्य कर कही गयी महाकवि भूषण की यह उक्ति कितनी सटीक है-
केते राव राजा मान पावें पातसाहन सो।
पावे पातसाह मान-मान के घटाने सो।।
- सात सौ वर्ष़ों से भी अधिक समय तक कच्छवाहों की राजधानी रहे आम्बेर का दुर्ग एक विशाल पर्वतीय घाटी में स्थित होने के साथ ही सुदृढ़ परकोटे से रक्षित भी था।
- इस दुर्ग की विशेषता अन्य दुर्ग़ों से भिन्न है, अन्य सभी दुर्ग़ों में जहां राजप्रासाद प्राचीर के भीतर समतल भू-भाग पर बने हैं वही आम्बेर दुर्ग में राजमहल ऊंचाई पर पर्वतीय ढलान पर इस तरह बने है कि इन महलों को ही दुर्ग का स्वरूप दे दिया गया है।
- आम्बेर दुर्ग के नीचे मावठा तालाब और दिलाराम का बाग उसके सौन्दर्य को द्विगुणित करते हैं।
- किले के ऊपर जाने के लिए प्रथम प्रवेश द्वार जयपोल है। जिसके भीतर बना विशाल प्रांगण जलेब चौक कहलाता है। इसके पास ही शिलामाता का प्रसिद्ध मंदिर है, जिसमें महिषासुरमर्दिनी की कलात्मक प्रतिमा प्रतिष्ठापित है जिसे राजा मानसिंह बंगाल (पूर्वी बंगाल) से जीत कर लाये थे।
- आम्बेर के दुर्ग में स्थित प्रमुख महल- दीवान ए आम – यहां राजा का दरबार होता था। संगमरमर के इस महल का निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने कराया था। गणेश पोल- इसका निर्माण महाराजा सवाई जयसिंह ने करवाया था। दीवान-ए-खास- इसे जय मंदिर भी कहते हैं। इसमें खुदाई एवं कांच का सुन्दर काम हुआ है। इसका निर्माण मिर्जा राजा जयसिंह ने करवाया था। शीश महल- यह आम्बेर के राज महलों में सबसे भव्य और चर्चित महल है। इसमें छत और दीवारों पर कांच की जड़ाई का सुन्दर और बारीक काम हुआ है।
- दीवान ए खास तथा गणेश पोल की छतों पर बने भव्य भवनों को क्रमशः यश मंदिर तथा सुहाग मंदिर कहते हैं।
- यश मंदिर- इस महल में संगमरमर की सुन्दर अलंकृत जालियाँ लगी हैं जहां से रानियां दीवान-ए-खास का दृश्य देखा करती थी।
- सौभाग्य मंदिर (सुहाग मंदिर)– यह आयताकार महल जो रानियों के मनोविनोद तथा हास परिहास का स्थान था। इस मंदिर के किंवाड़ चन्दन के बने हैं तथा हाथी दांत का सुन्दर काम हुआ है।
- सुख मंदिर- यह महल राजाओं का ग्रीष्मकालीन निवास था।
- आम्बेर के अन्य राजभवनों में महाराजा मानसिंह के महल, रनिवास तथा परिचारिकाओं के भवन, दालान सुरंग, बुर्जे इत्यादि हैं। आम्बेर के प्रतापी राजा पृथ्वीराज की रानी बातांबाई की साल महलों के पीछे की तरफ पुराने भवनों के पास अवस्थित है।
- बिशप हैबर आम्बेर के महलों की सुन्दरता को देखकर मुग्ध हो गया। उसने लिखा है कि- ‘मैंने क्रेमलिन में जो कुछ देखा है और अलब्रह्मा के बारे में जो कुछ सुना है, उससे भी बढ़कर ये महल हैं।‘
- आम्बेर के जगतशिरोमणी मंदिर में प्रतिष्ठापित भगवान कृष्ण की काले पत्थर की मूर्ति लगी हुई है, यह आमेर के राजा मानसिंह द्वारा चित्तौड़ से लाई गई थी जिसकी पूजा मीराबाई किया करती थी। इस मंदिर का निर्माण महाराजा मानसिंह की रानी कनकावती जी द्वारा अपने दिवंगत पुत्र जगतसिंह की याद में करवाया गया था।