अलवर दुर्ग (बाला किला)

  • पूर्वी राजस्थान के पर्वतीय दुर्ग़ों में अलवर का बाला किला प्रमुख है। इसके निर्माताओं के बारे में प्रामाणिक जानकारी का अभाव है।
  • जनश्रुति के अनुसार विक्रम संवत् 1106 में आम्बेर नरेश कोकिल देव के कनिष्ठ पुत्र अलघुराय ने इस पर्वत शिखर पर एक छोटा दुर्ग बनवाकर उसके नीचे एक नगर बसाया जिसका नाम अलपुर रखा।
  • इतिहासकार जनरल कनिंघम के अनुसार साल्व जाति का यहां वास होने के कारण पहले इसका नाम साल्वपुर था जो कालान्तर में बिगड़ कर अलवर हो गया।
  • सन् 1527 में खानवा विजय के बाद बाबर ने अलवर दुर्ग पर अधिकार कर लिया। उसने यह दुर्ग अलवर का निकटवर्ती प्रदेश (मेवात का परगना) अपने पुत्र हिन्दाल को जागीर में दे दिया। बाबर स्वयं भी इस किले में कुछ दिनों तक रहा, यहीं रहते हुए उसने मेवात का खजाना हुमायूँ को सौंपा था।
  • शेरशाह ने हुमायूँ को पराजित करने के बाद अलवर दुर्ग पर अधिकार कर लिया था।
  • बादशाह औरंगजेब ने इस किले को आम्बेर के मिर्जा राजा जयसिंह को प्रदान कर दिया था।
  • औरंगजेब की मृत्यु के पश्चात् भरतपुर के यशस्वी शासक राजा सूरजमल ने अलवर दुर्ग पर अधिकार कर लिया था।
  • राजा सूरजमल ने अलवर दुर्ग पर अधिकार कर लिया था।
  • राजा सूरजमल ने इस दुर्ग में एक कुण्ड बनवाया जो उनके नाम पर सूरज कुण्ड‘ कहलाता है।
  • सन् 1775 ई. में अलवर के पृथक् राज्य के संस्थापक माचेड़ी के राव प्रतापसिंह ने भरतपुर की सेना को खदेड़कर इस दुर्ग पर अपना अधिकार कर लिया तब से लेकर भारत की स्वाधीनता तक अलवर दुर्ग पर कच्छवाहों की नरूका शाखा का अधिकार रहा।
  • इसमें प्रवेश हेतु मुख्य पांच दरवाजे हैं- चाँदपोल, सूरजपोल, लक्ष्मणपोल, जयपोल तथा अन्धेरी दरवाजा।
  • इस दुर्ग के भीतर प्रमुख जल स्रोत हैं- सलीमसागर तालाब, सूरजकुण्ड।
  • 1832 ई. में अलवर राज्य के संस्थापक महाराजा प्रतापसिंह द्वारा निर्मित सीतारामजी का मंदिर भी विद्यमान है।
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