अचलगढ़ दुर्ग

  • प्राचीन शिलालेखों और साहित्यिक ग्रंथों में आबू पर्वत को अर्बुद गिरि अथवा अर्बुदाचल कहा गया है। अर्बुदाचल स्थित अचलगढ़ एक प्राचीन दुर्ग हे। आबु का पुराना किला परमार शासकों द्वारा बनवाया गया था।
  • सन् 1452 के लगभग मेवाड़ के पराक्रमी महाराणा कुम्भा ने इसी प्राचीन दुर्ग के भग्नावशेषों पर एक नये दुर्ग का निर्माण करवाया, जो अभी अचलगढ़ के नाम से प्रख्यात है।
  • आबू पर्वतांचल में स्थित अनेक देव-मंदिरों के कारण कर्नल टॉड ने आबू पर्वत को हिन्दू ओलम्पस (देव पर्वत) कहा है।
  • अलेक्जेण्डर किनलॉक फार्ब्स द्वारा लिखित ‘रासमाला‘ में आबू दुर्ग के बारे में विवरण मिलता है।
  • कविराजा श्यामलदास ने वीर विनोद में अचलगढ़ के बारे में लिखा है- ‘अचलेश्वर मंदिर के पीछे एक पहाड़ी पर परमारों का प्राचीन गढ़ ‘अचलगढ़‘ है जो विक्रमी संवत् 1507 (1452 ई.) के करीब महाराणा कुम्भा द्वारा बनवाया हुआ कहा जाता है। इस गढ़ के भीतर दो जैन मंदिर हैं- ऋषभदेव का और दूसरा पार्श्वनाथ का।
  • आबू के परमारों की राजधानी थी-चन्द्रावती, जिसके खण्डहर आज भी आबू पर्वत की तलहटी में बनास नदी के किनारे वन्य प्रदेश में विद्यमान है। उस संदर्भ में एक दोहा-

पृथ्वी पंवारा तणी अनै पृथ्वी तणे पंवार।

एका आबू गढ़ बेसणो, दूजी उज्जेनी धार।।

  • इस प्राचीन दुर्ग के साथ परमार शासकों की वीरता और पराक्रम का रोमांचक इतिहास जुड़ा है। आबू के परमार राजवंश के धरणीवराह एक प्रतापी शासक हुआ जनश्रुति है कि उसने अपने नौ भाईयों में राज्य बांट दिया था और उनकी नौ राजधानियाँ नवकोटि मारवाड़ कहलायी।
  • मध्ययुग में गुजरात की तरफ से होने वाले संभावित आक्रमणों से सुरक्षा की दृष्टि से आबू दुर्ग विशेष सामरिक महत्व का था।
  • जनश्रुति है कि महमूद बेगड़ा जब अचलेश्वर के नन्दी सहित अन्य देव प्रतिमाओं को खण्डित कर विशाल पर्वतीय घाटी में उतर रहा था तब देवी प्रकोप हुआ। मधुमक्खियों का एक बड़ा दल आक्रमणकारियों पर टूट पड़ा। उस घटना की स्मृति में वह स्थान आज भी ‘भंवराथल‘ के नाम से प्रसिद्ध है।
  • आबू पर्वत के अधिष्ठाता देव अचलेश्वर महादेव ही है। इस मंदिर में शिवलिंग न होकर केवल एक गड्ढ़ा है, जिसे ब्रह्मखड्ड कहा जाता है। इस स्थान पर शिव के पैर का अंगूठा प्रतीकात्मक रूप में विद्यमान है।
  • अचलेश्वर महादेव के पास ही एक विशाल कुण्ड है जो लगभग 900 फीट लम्बा और 240 फीट चौड़ा है। यह कुण्ड मन्दाकिनी कुण्ड कहलाता है। इस कुण्ड से पूर्व की तरफ परमार राज्य के संस्थापक आदि परमार की पाषाण प्रतिमा स्थापित है जिसमें वह अपने तीर से भैंस का रूप धारण किये राक्षसों का वध कर रहा है। जो रात्रि के समय अग्निकुण्ड का पवित्र जल पी जाया करते थे।
  • आदि परमार की मूर्ति के बारे में कर्नल टॉड के शब्द- ‘सफेद संगमरमर की बनी यह मूर्ति लगभग 5 फीट ऊंची है और मूर्तिकला में बाडोली के स्तम्भों पर बनी हुई मूर्तियों के अतिरिक्त भारत में मेरे द्वारा देखी हुई सभी मूर्तियों से बढ़कर है।‘
  • मंदाकिनी कुण्ड के पास सिरोही के महाराव मानसिंह की छतरी है, जिसे कल्ला परमार ने कटार से वार करके मारा था।
  • इस दुर्ग के अन्दर कुम्भा के राजप्रसाद, उनकी रानी का महल, अनाज के कोठे, सावन-भादो झील, परमारों द्वारा निर्मित खतरे की सूचना देने वाली बुर्ज (Alarm tower) आदि के भग्नावशेष विद्यमान है।
READ MORE about  लोहागढ़ भरतपुर || Lohagarh Bharatpur

About the author

thenotesadda.in

Leave a Comment

Follow Me

Copyright © 2025. Created by Meks. Powered by WordPress.

You cannot copy content of this page