● सामान्यत: कोई व्यक्ति कैसा दिखाई देता है और उसका व्यवहार कैसा है इसके आधार पर हमारे मस्तिष्क पर जो प्रभाव आते हैं, उसकी सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव की मात्रा को ही व्यक्तित्व कहते हैं।
● ‘व्यक्तित्व’ के लिए अंग्रेजी भाषा में Personality शब्द उपयोग में लिया जाता है।
● ‘व्यक्तित्व’ शब्द की उत्पत्ति लैटिन भाषा के ‘परसोना’ (Persona) से हुई है जिसका अर्थ है- मुखौटा/नकाब/मास्क।
● इसका उपयोग व्यक्ति उस समय करता है जब उसे किसी रंगमंच पर पात्र की भूमिका को और अधिक प्रभावशाली बनाना होता है।
● सामान्य बोलचाल की भाषा में व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग- शारीरिक बनावट और सौन्दर्य के लिए किया जाता है अर्थात् व्यक्ति के रूप, रंग, कद, व्यवहार आदि गुण व्यक्ति के समस्त व्यवहार का दर्पण है।
● अत: व्यक्तित्व में एक मनुष्य के न केवल शारीरिक और मानसिक गुणों का, वरन् उसके सामाजिक गुणों का भी समावेश होता है। यह मानव के गुणों, लक्षणों, क्षमताओं, विशेषताओं आदि की संगठित इकाई है।
● अगर किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को समझना है तो उसे संपूर्णता (जैविक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक रूप से) में समझना होगा।
परिभाषाएँ :-
1. आलपोर्ट (1937) :- “व्यक्तित्व व्यक्ति के उन सब मनोदैहिक गुणों का गत्यात्मक संगठन है, जो वातावरण में उसके अपूर्व समायोजन को निर्धारित करते हैँ।”
2. बिग व हण्ट :- “व्यक्तित्व एक व्यक्ति के सम्पूर्ण व्यवहार- प्रतिमान और उसकी विशेषताओं के योग का उल्लेख करता है।”
3. वुडवर्थ :- “व्यक्ति के व्यवहार का समग्र रूप ही उसका व्यक्तित्व है।”
4. रैक्स रॉक :- “व्यक्तित्व, समाज द्वारा मान्य तथा अमान्य गुणों का संतुलन है।”
5. गिलफोर्ड :- “व्यक्तित्व, व्यक्ति के गुणों का समन्वित रूप है।”
6. वॉरेन :- “व्यक्तित्व, व्यक्ति का सम्पूर्ण मानसिक संगठन होता है, जो उसके विकास की किसी अवस्था में पाया जाता है।”
7. बोरिंग :- “वातावरण के साथ सामान्य व स्थायी समायोजन ही व्यक्तित्व है।”
8. वेलेन्टाइन :- “व्यक्तित्व जन्मजात व अर्जित प्रवृत्तियों का योग है।”
9. आइजेन्क :- “व्यक्तित्व, व्यक्ति के चरित्र, ज्ञानशक्ति, शरीर गठन व चित्त प्रकृति का स्थायी व टिकाऊ संगठन है जो वातावरण में उसके अपूर्व समायोजन का निर्धारण करता है।”
10. ड्रेवर :- “व्यक्तित्व शब्द का प्रयोग व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, नैतिक और सामाजिक गुणों के सुसंगठित और गत्यात्मक संगठन के लिए किया जाता है जिससे वह अन्य व्यक्तियों के साथ अपने सामाजिक जीवन से आदान-प्रदान व्यक्त करता है।”
11. डेशिल :- “व्यक्तित्व व्यक्ति के संगठित व्यवहार का सम्पूर्ण चित्र होता है।”
12. मन :- “व्यक्तित्व, एक व्यक्ति के व्यवहार के तरीकों, रुचियों, दृष्टिकोण, क्षमताओं, योग्यताओं तथा अभिरुचियों का सबसे विशिष्ट संगठन है।”
13. वाल्टर मिस्केल – “प्राय: व्यक्तित्व से तात्पर्य व्यवहार के उस विशिष्ट पैटर्न से होता है जो प्रत्येक व्यक्ति की जिंदगी की परिस्थितियों के साथ होने वाले समायोजन का निर्धारण करता है।”
● अत: निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि किसी व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक गुणों का समन्वित रूप व्यक्तित्व समझा जा सकता है।
Note :- व्यक्तित्व निर्माण की शुरुआत परिवार से होती है तथा समाज में जाकर पूर्ण होती है।
व्यक्तित्व की विशेषताएँ (Characteristics of Personality)
1. आत्मचेतना (Self Consciousness) :- व्यक्तित्व की पहली और मुख्य विशेषता है- आत्मचेतना।
आत्मचेतना वह शक्ति है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने संबंध में जानता है। जब व्यक्ति जान जाता है कि वह क्या है, समाज में उसकी क्या स्थिति है, दूसरे उसके बारे में क्या सोचते हैं, यही आत्मचेतना है।
2. गत्यात्मकता (Dynamic) :- अच्छे व्यक्तित्व के व्यक्ति के व्यवहार में स्थिरता नहीं होती, वे एक ही सिद्धांत या आदर्श पर अंधे होकर सदैव के लिए नहीं चलते हैं। वह स्वयं विश्लेषण कर आवश्यकतानुसार अपने मूल्यों, विचारों, धारणाओं तथा आदर्शों में परिवर्तन करते रहते हैं। यह प्रक्रिया जन्म से मृत्युपर्यन्त सतत रूप से चलती रहती है।
3. समाजशीलता (Sociability) :- व्यक्तित्व की दूसरी महत्त्वपूर्ण विशेषता है- सामाजिकता। समाज से पृथक् मानव और उसके व्यक्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती है। मानव में आत्मचेतना व समाजीकरण का विकास तभी होता है जब वह समाज के अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क में आकर क्रिया और अन्त:क्रिया करता है। अत: व्यक्तित्व में सामाजिकता की विशेषता अनिवार्य है।
4. समायोजन/अनुकूलन (Adjustability) :- एक अच्छे व्यक्तित्व की महत्त्वपूर्ण विशेषता है- समायोजन शक्ति। व्यक्ति को न केवल बाह्य वातावरण से बल्कि स्वयं के आंतरिक जीवन से भी सामंजस्य करना पड़ता है। परिस्थितियों के अनुरूप समायोजन स्थापित कर पाने से उसके व्यवहार में विभिन्नता दृष्टिगोचर होती है।
अत: मानव को अपने व्यक्तित्व को अपनी दशाओं, वातावरण, परिस्थितियों आदि के अनुकूल बनाना पड़ता है।
5. दृढ़ इच्छा–शक्ति (Strong Will Power) :- यह शक्ति व्यक्ति को जीवन की कठिनाइयों से संघर्ष करते हुए अपने-अपने व्यक्तित्व को उत्कृष्ट बनाने की क्षमता प्रदान करती है। इससे व्यक्ति लगन के साथ कार्य करता है और संघर्षों का धैर्य के साथ मुकाबला करता है।
6. उत्तम शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health) :- उत्तम व्यक्तित्व की एक अन्य विशेषता है- उत्तम शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य पर ही संवेगों का नियंत्रण, संतुलित व्यवहार, तर्क, चिंतन आदि क्रियाएँ निर्भर करती हैं।
शारीरिक संरचना व स्वास्थ्य जब तक सम्पूर्णता में नहीं होता है तब तक व्यक्ति का व्यवहार सामान्य नहीं हो सकता है।
7. लक्ष्य निर्देशित व्यवहार (Goal Directed Behavior) :- मानव के व्यवहार का सदैव एक निश्चित उद्देश्य होता है और वह सदैव किसी न किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए संचालित होता है। अत: उत्तम व्यक्तित्व के लिए मानव का व्यवहार लक्ष्य-निर्देशित होना चाहिए।
8. संवेगीय स्थिरता (Emotional Stability) :- उत्तम व्यक्तित्व की एक अन्य प्रमुख विशेषता है- संवेगात्मक स्थिरता।
मानव में संवेगों के उचित प्रकटीकरण संचालन, दमन, प्रदर्शन आदि की योग्यता होनी चाहिए।
9. विकास की निरन्तरता (Development Continuity) :- उत्तम व्यक्तित्व के मानव के विकास में कभी स्थिरता नहीं होती है। जैसे-जैसे व्यक्ति के कार्यों, विचारों, अनुभवों, स्थितियों आदि में परिवर्तन होता है, वैसे-वैसे उसके व्यक्तित्व के स्वरूप में भी परिवर्तन होता चला जाता है।
10. संतोष, उच्च आकांक्षा तथा उद्देश्यपूर्णता (Satisfactioin, Ambitious and Purposiveness) :- अच्छे व्यक्तित्व में आत्मसंतोष, हर पल आगे बढ़ने की आकांक्षा तथा अपने प्रत्येक कार्य को किसी-न-किसी उद्देश्य के साथ करने की योग्यता होती है।
11. अनुपम (Unique)।
12. महत्त्वाकांक्षी।
13. प्रसन्नचित्त, मिलनसार।
14. यथार्थवादी।
15. आत्मगौरवशील
16. उत्तरदायी, परिश्रमी।
17. साहसी, चिन्तारहित।
18. शिष्ट-सौन्दर्यप्रेमी।
19. विश्वसनीय, बुद्धिमान।
व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाले कारक :-
1. वंशानुक्रम :- जीन्स द्वारा व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक संरचना का निर्धारण होता है।
2. वातावरण :- परिवार का वातावरण
– समाज का वातावरण
– विद्यालय का वातावरण (अनुशासन, विधि, शिक्षक)
– भौतिक वातावरण (जलवायु का प्रभाव)
– सांस्कृतिक वातावरण (रीति-रिवाज, परम्परा, वेशभूषा, रहन-सहन आदि)
3. जन्म क्रम :- प्रथम जन्म क्रम का बालक अधिक निर्भर, एकान्तप्रिय व अन्तर्मुखी होता है।
4. अन्त:स्त्रावी ग्रन्थियाँ :- थायरॉइड ग्रन्थि से व्यक्ति में तनाव, चिन्ता, उत्तेजना, बेचैनी अनुभव होती है।
● यौन ग्रन्थियाँ लैंगिक विकास को प्रभावित करती हैं।
● पीयूष ग्रन्थि लम्बाई को प्रभावित करती है।
Note :- पीनियल ग्रन्थि व्यक्तित्व को प्रभावित नहीं करती।
5. लिंग :- बालक-बालिका का स्वभाव, व्यवहार, कार्यशैली व व्यक्तित्व में भिन्नता होती है।
6. मूल प्रवृत्तियाँ व प्रेरक :- इनका दमन व्यक्ति में हीनता मनोग्रन्थि को जन्म देती है।
7. शारीरिक रचना व स्वास्थ्य।
8. मनोवैज्ञानिक कारक :- रुचि, आदत, अभिवृत्ति, अभिरुचि, बुद्धि, इच्छाशक्ति, आकांक्षा स्तर, स्मृति, तर्क, चिंतन, अधिगम, महत्त्वाकांक्षा आदि व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।
9. निर्धनता, सामाजिक स्थिति।
10. एकल व संयुक्त परिवार
11. खण्डित परिवार
12. माता-पिता की उपेक्षा या अत्यधिक प्यार
13. मित्र, सौतेले माता–पिता आदि कारक बालक के व्यक्तित्व को प्रभावित करते हैं।
Note :- एडलर ने मध्यम जन्म क्रम के बालक का व्यक्तित्व उत्तम बताया है।
व्यक्तित्व के प्रकार (Types of Personality) :-
1. सबसे पहला व्यक्तित्व प्रकार थियोफ्रेस्ट्स (Theophrastus) का था जो अरस्तू के शिष्य थे। यह व्यक्तित्व प्रकार क्रमबद्ध व विस्तृत नहीं है।
2. व्यक्तित्व का पहला वैज्ञानिक वर्गीकरण ‘हिप्पोक्रेट्स’ द्वारा 400 ई.पू. में दिया गया, जो कि फ्लूइड (Fluid) अथवा ह्मूमर (Humour) पर आधारित है।
हिप्पोक्रेट्स ने शरीर द्रव्यों के आधार पर व्यक्तित्व के चार प्रकार बताए:-
(i) कफ/श्लेष्मा (Phelgm) :- निष्क्रिय, शांत स्वभाव, भाव शून्यता, विरक्त।
(ii) काला पित्त (Black Bile) :- उदास, मंद, निराशावादी, विषादी।
(iii) पीला पित्त (Yellow Bile) :- चिड़चिड़ा, बेचैन, गुस्सैल, तुनकमिजाजी।
(iv) रक्त (Blood) :- प्रसन्न, खुशमिजाज, उत्साही, आशावादी।
प्रत्येक व्यक्ति में इन चारों द्रवों में से कोई एक द्रव अधिक प्रधान होता है और व्यक्ति का स्वभाव या चित्त प्रकृति इसी की प्रधानता से निर्धारित होती है।
3. भारतीय दर्शन के अनुसार :-
यह व्यक्तित्व का वर्गीकरण सांख्य दर्शन के प्रणेता कपिल मुनि के द्वारा दिया गया है और सांख्य दर्शन मूल रूप से गीता के ज्ञान पर आधारित है-
(i) सतोगुणी :- सद्गुण मुख्य रूप से अग्रलिखित व्यक्तित्वों में पाए जाते हैं:- सदाचार, धार्मिक, मिलनसारी, सहयोगी, नैतिक।
(ii) रजोगुणी :- रज गुण मुख्य रूप से अग्रलिखित व्यक्तित्वों में पाया जाता है:- वीर, साहसी, बलिदानी, रक्षक आदि।
(iii) तमोगुणी :- तम गुण मुख्य रूप से अग्रलिखित व्यक्तित्वों में पाए जाते हैं :- आलसी, लड़ाकू, अंधकार प्रिय, प्रमादी, राक्षसी प्रवृत्ति।
4. चरक संहिता के अनुसार :-
(i) वात
(ii) पित्त
(iii) कफ
5. शारीरिक दृष्टिकोण के अनुसार
(A) क्रेशमर का वर्गीकरण :-
क्रेशमर (जर्मन) ने अपनी पुस्तक “Physique and Character” में शरीर रचना के आधार पर व्यक्तित्व के 4 प्रकार बताए:- (1926 में)
(i) स्थूलकाय/साइक्लोआड (Pyknic Type) :- छोटा कद, शरीर भारी, गोलाकार, खुशमिजाजी, सामाजिक, आरामप्रिय, बहिर्मुखी, मिलनसार आदि गुण पाए जाते हैं।
(ii) कृशकाय/सिजोआड (Asthenic Type) :- लम्बा कद, दुबले-पतले, मनोविदालिती, चिड़चिड़ा स्वभाव, सामाजिक उत्तरदायित्व से इनमें दूर रहने की प्रवृत्ति, निराशावादी, दिवास्वप्न आदि गुण पाए जाते हैं।
(iii) सुडौलकाय/पुष्टकाय/खिलाड़ी (Athletic Type) :- शारीरिक कद न लम्बा और न छोटा, संतुलित शरीर, सामाजिक प्रतिष्ठा, आशावादी, दृढ़ निश्चयी, सुखी आदि गुण होते हैं।
(iv) विशालकाय/मिश्रितकाय (Dysplastic Type) :- इसमें ऊपर के तीनों श्रेणियों के गुणों का मिला-जुला रूप होता है।
B. शेल्डन का वर्गीकरण :-
शरीर गठन के आधार पर शेल्डन ने अपने वर्गीकरण में 3 प्रकार के व्यक्तित्व का उल्लेख किया, जिसे ‘सोमैटोटाइप सिद्धांत’ कहा गया। (1940 में)
(i) एण्डोमार्फी/विसरोटोनिया/गोलाकार :- गोलाकार शरीर, नाटे, मोटे, आरामप्रिय, खुशमिजाज, खाने-पीने के शौकीन, सामाजिक आदि गुण पाए जाते हैं।
शेल्डन का यह प्रकार क्रेशमर के ‘स्थूलकाय’ प्रकार से मिलता-जुलता है।
(ii) मेसोमार्फी/सोमैटोटोनिया/आयताकार :- सुडौल शरीर, आक्रामक, दृढ़ कथन, जोखिम व बहादुरी के कार्य करने की प्रवृत्ति, अन्यों को आदेश देने में आनंद आदि।
यह क्रेशमेर के पुष्टकाय प्रकार से मिलता-जुलता है।
(iii) एक्टोमार्फी/सेरीब्रोटोनिया/लम्बाकार :- कद लम्बा, दुबले-पतले, एकांतप्रिय, संकोचशील, लज्जाशील, कमजोर, शक्तिहीन, निराशावादी, असामाजिक, चिड़चिड़ा स्वभाव, नींद संबंधी शिकायत आदि।
यह क्रेशमर के ‘कृशकाय प्रकार’ से मिलता-जुलता रूप है।
● शेल्डन ने प्रत्येक शारीरिक गठन को 1 से 7 तक की श्रेणियों में विभक्त किया है-
(i) प्रबल एण्डोमार्फी :– 7-1-1 श्रेणी
(ii) प्रबल एक्टोमार्फी :- 1-1-7 श्रेणी
(iii) प्रबल मैसोमार्फी :- 1-7-1 श्रेणी
Note :- शेल्डन के अनुसार संतुलित व्यक्तित्व वह है जिसका श्रेणीकरण 4-4-4 है।
C. रोस्टन का वर्गीकरण :- रोस्टन ने 1824 में शारीरिक संरचना के आधार पर 4 प्रकार बताए-
1. प्रमस्तिष्कीय प्रकार – दुबले, पतले तथा लंबे।
2. पेशीय प्रकार – पुष्टकाय व गठिली मांसपेशियाँ
3. पाचक प्रकार – गोलमटोल शारीरिक संरचना
4. श्वसन प्रकार – इन सबका मिलता-जुलता रूप
D. भायोला का वर्गीकरण :- भायोला ने 1909 में व्यक्तित्व के 3 प्रकार बताए:-
1. माइक्रोस्पलानकिक :- दुबले-पतले व लम्बे।
2. नोरमाइक्रोस्पलानकिक :- मजबूत शारीरिक गठन।
3. मैक्रोस्पलानकिक :- नाटे-मोटे व गोल-मटोल।
6. आधुनिक दृष्टिकोण के अनुसार व्यक्तित्व वर्गीकरण :-
(i) भावुक व्यक्तित्व :- भावशील, सदा दुखी।
(ii) कर्मशील व्यक्तित्व :- कर्मठ व्यक्ति, कर्म पर विश्वास करने वाले, अन्तिम रूप से सुखी, रचनात्मक।
(iii) विचारशील व्यक्तित्व :- वैचारिक व्यक्ति, सदा सुखी, चिंतन आधारित।
7. थॉर्नडाइक का वर्गीकरण – थॉर्नडाइक ने विचार/चिंतन के आधार पर व्यक्तित्व के तीन प्रकार बताए-
(i) गहन विचारक
(ii) प्रत्यय विचारक
(iii) स्थूल विचारक
8. युंग का वर्गीकरण (मनोवैज्ञानिक प्रकार) :-
● युंग ने मनोवैज्ञानिक गुणों या विशेषताओं के आधार पर व्यक्तित्व के मूल रूप से 2 प्रकार बताए:-
सन् 1923 में (पुस्तक Psychological Type)
(i) अन्तर्मुखी व्यक्तित्व (Introvert Personality)
(ii) बहिर्मुखी व्यक्तित्व (Extrovert Personality)
(i) अन्तर्मुखी व्यक्तित्व (Introvert Personality) :- इस व्यक्तित्व के लक्षण, स्वभाव, आदतें, अभिवृत्तियाँ बाह्य रूप से प्रकट नहीं होते हैं। अन्तर्मुखी मनुष्य अपने आप में अधिक रुचि रखते हैं।
प्रमुख लक्षण :- आत्मकेन्द्रिता, सरल स्वभाव, संकोची, लज्जाशील, मितभाषी, सामाजिकता का अभाव, दोस्तों का अभाव, मनोविनोद का अभाव, आदर्शवादी, उत्तम लेखन, निराशावादी, मानसिक शक्तियों का विशेष विकास, कमजोर समायोजन, निर्णय क्षमता कमजोर, नेतृत्व का अभाव, एकांतवासी, तत्काल परिणाम चाहते हैं।
जैसे- लेखक, दार्शनिक, वैज्ञानिक, विचारक।
(ii) बहिर्मुखी व्यक्तित्व (Extrovert Personality) :- इस व्यक्तित्व के लक्षण, स्वभाव, आदतें, अभिवृत्तियाँ बाह्य रूप से प्रकट होती हैं। अपने भावनाओं व विचारों को स्पष्ट करते हैं। बाह्य पक्ष की ओर अधिक आकर्षित।
प्रमुख लक्षण :- सामाजिक, आशावादी, मिलनसार, समाज के कार्यों की ओर झुकाव, वाचाल, खुशमिजाजी, हँसमुख, सामूहिकता का भाव, यथार्थवादी, उत्तम भाषण, नेतृत्व क्षमता, उत्तम समायोजन, लोककेन्द्रित आदि गुण।
जैसे- शिक्षक, राजनेता, समाजसेवी, सामाजिक कार्यकर्ता।
(iii) उभयमुखी व्यक्तित्व/विकासोन्मुखी (Ambivert Personality) :- नेयमान व याकोर्जकी (1942) ने एक तीसरा प्रकार उभयमुखी व्यक्तित्व बताया, जो अन्तर्मुखी व बहिर्मुखी व्यक्तित्व का मिश्रण होता है। सबसे सफल व्यक्तित्व उभयमुखी होता है।
Note :– युंग का वर्गीकरण सूचना-संसाधन मॉडल कहलाता है।
9. स्प्रेंगर का वर्गीकरण (समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण) :-
स्प्रेंगर ने अपनी पुस्तक ‘टाइप्स ऑफ मेन’ (Types of men) में सन् 1928 में सामाजिक कार्यों और स्थिति के आधार पर व्यक्तित्व के छह प्रकार बताए:-
(i) सैद्धान्तिक प्रकार (Theoretical Type) :- जो संसार को तर्कसंगत क्रम में समझने की कोशिश करते हैं। सच्चाई को महत्त्व देते हैं। सिद्धांत पर बल। जैसे- दार्शनिक।
(ii) आर्थिक व्यक्तित्व (Economic Type) :- इस प्रकार का व्यक्ति जीवन की सब बातों का आर्थिक दृष्टि से मूल्यांकन करता है। उन चीजों को महत्त्व देते हैं जो लाभप्रद होती हैं तथा मुद्रा उन्मुखी होते हैं। जैसे- व्यापारी।
(iii) सामाजिक प्रकार (Social Type) :- दया और सहानुभूति में विश्वास तथा सत्य और मानवता में श्रद्धा होती है। प्रेम देने वाले तथा मदद करने वाले व्यक्ति इसी श्रेणी में आते हैं। जैसे- शिक्षक।
(iv) राजनीतिक प्रकार (Political Type) :- इस प्रकार का व्यक्ति सत्ता, प्रभुत्व और नियंत्रण स्थापित करने में विश्वास रखने वाला तथा शक्ति को महत्त्व। जैसे- राजनेता।
(v) धार्मिक व्यक्तित्व (Religious Type) :- आध्यात्मिक, ईश्वर व एकता में विश्वास रखने वाला। जैसे- संत, महात्मा।
(vi) सौंदर्यपरक/कलात्मक प्रकार (Esthetic Type) :- प्रत्येक वस्तु को कला की दृष्टि से देखता है। कला व सौन्दर्य में संबंध स्थापित करना, आकर्षण को महत्त्व। जैसे- चित्रकार, मूर्तिकार, कलाकार।
10. टाइप A व टाइप B वर्गीकरण :-
प्रतिपादक :– फ्रीडमैन तथा रोजनमैन।
● फ्रैडमैन व रोजनमैन ने व्यक्तित्व संबंधी गुणों के आधार पर व्यक्तित्व को 2 प्रकार के समूहों A तथा B में वर्गीकृत किया है।
(i) टाइप ‘A’ व्यक्तित्व :- संवेगात्मक रूप से अस्थिर, तनावयुक्त, चिंतित, चिड़चिड़ा स्वभाव, धैर्य की कमी व उतावलापन, प्रतिस्पर्द्धी, उच्च उपलब्धि अभिप्रेरणा, शंकालु, एकांतप्रिय, ईर्ष्यालु, आक्रामक, समय के अनुसार अपने आपको बदलने में असमर्थ, अति रक्तदाब, हृदय रोग के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं।
(ii) टाइप ‘B’ व्यक्तित्व :- संवेगात्मक रूप से स्थिर, तनाव मुक्त, चिंता मुक्त, सामान्य उपलब्धि अभिप्रेरणा, असंवेदनशील, अपने आप से तथा अपने वातावरण से समायोजित, शांत स्वभाव, यथार्थवादी, भाग्यवादी आदि गुण।
11. आइजेन्क का वर्गीकरण :-
आइजेन्क ने मनोवैज्ञानिक गुणों के आधार पर सन् 1947 में व्यक्तित्व के 3 प्रकार बताए, जो द्विध्रुवीय हैं।
(i) अन्तर्मुखता-बहिर्मुखता (Introversion-Extroversion) :- इस श्रेणी में एक छोर पर अन्तर्मुखी शीलगुणों से युक्त व्यक्ति तथा दूसरे छोर पर बहिर्मुखी शीलगुणों से युक्त व्यक्तियों को रखा है। अन्तर्मुखी बहुत आसानी से प्रभावित होने वाला, निराशावादी, कम महत्त्वाकांक्षी होता है जबकि बहिर्मुखी व्यक्ति क्रियाशील, सामाजिक, परिवर्तनशील होता है।
(ii) स्नायुविकृति-स्थिरता (उत्तेजनशीलता उन्माद–भावात्मक स्थिरता) (Neuroticism-Stability) :- उत्तेजनशील व्यक्ति में सांवेगिक नियंत्रण कम होता है तथा इच्छाशक्ति कमजोर होती है। विचारों एवं क्रियाओं में मदद होती है जबकि भावात्मक स्थिरता में व्यक्ति शांत व संवेगात्मक रूप से स्थिर होता है।
(iii) मनोविकृति या मनस्तापिता–पराहं की क्रियाएँ (Psychoticism-Superego function) :- मनोविकृति वाले व्यक्ति में क्षीण एकाग्रता, क्षीण स्मृति, क्रूरता का गुण अधिक, असंवेदनशीलता, सौहार्दपूर्ण संबंध की कमी, पठन कमजोर आदि गुण होते हैं जबकि पराह में आदर्शत्व तथा नैतिकता की मात्रा अधिक होती है।
व्यक्तित्व के सिद्धांत
1. मनोविश्लेषणात्मक सिद्धांत
प्रतिपादक :- सिगमण्ड फ्रॉयड
फ्रॉयड ने दो संरचनात्मक संप्रत्ययों का उल्लेख किया तथा व्यक्तित्व की व्याख्या अचेतन के गत्यात्मक बलों के रूप में की है। मानव व्यक्तित्व उन्हीं अचेतन बलों से प्रभावित होता है।
(A) आकारात्मक मॉडल (स्थलाकृतिक) :- यह चेतन के स्तर से संबंधित है जिसमें चेतन के 3 (तीन) स्तरों का उल्लेख है- चेतन, अर्द्धचेतन तथा अचेतन।
(i) चेतन स्तर (Conscious) :- इसका संबंध वर्तमान समय की अनुभूतियों, विचारों एवं संवेदनाओं से होता है। यह वास्तविकता तथा तात्कालिक अनुभवों से संबंधित है।
यह मानव के संपूर्ण मन का 1/10 भाग होता है।
बर्फ के तैरते हुए टुकड़े के ऊपरी हिस्से से इसकी तुलना की गई है।
(ii) अर्द्धचेतन मन (Subconscious) :- अर्द्धचेतन मन में वैसे विचार एवं अनुभूति संचित होते हैं जिनसे व्यक्ति वर्तमान समय में अवगत तो नहीं होते हैं परंतु कोशिश करने से वे अवगत हो जाते हैं। अर्थात् न तो पूर्णत: अचेतन होता है और न ही पूर्णत: चेतन। इसे अवचेतन मन/सुलभ स्मृति व प्राप्य स्मृति भी कहा जाता है।
जैसे- अलमारी से हम किसी एक किताब को नहीं पाते हैं और थोड़ी देर के लिए परेशान हो जाते हैं फिर कुछ सोचने पर याद आता है कि उस किताब को तो हमने अपने मित्र को दे दिया था।
(iii) अचेतन मन (Unconscious) :- यह सबसे व्यापक मन होता है अर्थात् संपूर्ण मानव मन का 9/10 भाग होता है। अचेतन से तात्पर्य है – चेतना से परे।
● दमित इच्छाओं का भण्डार।
● अचेतन की तुलना ‘एण्टे’ कक्ष से की।
● सर्वाधिक प्रभावित करने वाला मन।
● टंग स्लिप व्यवहार, ड्रीम स्लीप, सोमनाबुलिज्म
● डरावना स्वप्न, नींद में समाधान, अनियंत्रित विचार
● इसमें वैसी अनुभूतियाँ या विचार सम्मिलित होते हैं जिनसे व्यक्ति अवगत नहीं होता है। ऐसी इच्छाएँ या कामुकता जिन्हें पूर्ण करना संभव नहीं होता है, इसलिए व्यक्ति उन्हें चेतन से हटाकर अचेतन में दमित कर देता है, जहाँ वे समाप्त नहीं होती परंतु व्यक्ति के व्यवहार को परोक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।
● फ्रायड के अनुसार अचेतन अनुभूतियों एवं विचारों का प्रभाव हमारे व्यवहार पर चेतन एवं अर्द्धचेतन की अनुभूतियों एवं विचारों से अधिक होता है। फ्रायड ने अपने सिद्धांत में अचेतन को अधिक महत्त्वपूर्ण व बड़ा बताया है।
Note :- फ्रॉयड ने मानव मन की तुलना तैरते हुए बर्फ के टुकड़े (हिमखण्ड/बर्फशैल) से की है जिसमें पानी के ऊपर का हिस्सा चेतन स्तर तथा पानी के अंदर का हिस्सा अचेतन होता है।
Note :- अर्द्धचेतन मन, चेतन व अचेतन के मध्य सेतू/पुल का कार्य करता है।
B. संरचनात्मक/गत्यात्मक मॉडल :- यह व्यक्ति के कार्यों की अभिव्यक्ति है जो मूलत: उपाहं (Id), अहं (Ego) तथा पराहं (Super Ego) से संबंधित होते हैं।
(i) इदम्/उपाहं (Id) :– बाल्यावस्था में सर्वाधिक प्रभावी।
● जैविक तत्त्व
● पशु प्रवृत्ति (पशुत्व)
● आनंद सिद्धांत से प्रभावित
● मूल प्रवृत्ति का केन्द्र, नैतिकता से परे
● वास्तविक के साथ प्रत्यक्ष संबंध नहीं क्योंकि यह पूर्णत: अचेतन होता है।
● यह अचेतन मन का स्वामी होता है। इसका संबंध दमित इच्छाओं से होता है जो कामुक, आक्रामक व असामाजिक होती है।
● शारीरिक इच्छाओं पर मानसिक इच्छाओं का नियंत्रण नहीं।
● मानव संरचना में निश्चित होता है।
● सभी मानसिक शक्तियों का स्रोत होता है।
● जन्मजात स्तर
(ii) अहम् (Ego) :- मानव प्रकृति।
● मनोवैज्ञानिक भाग।
● वास्तविकता में जीना।
● चेतन मन का स्वामी है। वर्तमान से संबंधित होता है।
● व्यक्तित्व की कार्यपालक शाखा/निर्णय लेने वाला।
● बुद्धि से कार्य करना तथा सिपाही के रूप में कार्य।
● इदम् तथा परम अहम् में विरोधी इच्छाओं में समन्वय का कार्य अहम् करता है।
● शारीरिक व मानसिक इच्छाओं में नियंत्रण बनाए रखता है।
● चेतन, अचेतन, अर्द्धचेतन तीनों स्तर पर होता है।
(iii) परा अहम् (पराहं) (Super Ego) :- देवत्व भाव (आदर्शवादी)।
● नैतिक कमांडर
● त्याग, समर्पण, बलिदान का भाव।
● अवास्तविकता से संबंध।
● सम्पूर्णता की प्राप्ति हेतु प्रयास करना।
● आदर्शों, नैतिक मूल्यों से संबंधित।
● सामाजिक संघटक।
● एक पूर्णत: विकसित पराहं व्यक्ति के कामुक एवं आक्रामक प्रवृत्तियों पर नियंत्रण दमन के माध्यम से करता है।
● फ्रॉयड के अनुसार वह सबसे अधिक सफल व्यक्तित्व है जिसमें अहम् (Ego) का भाव अधिकतम समय और मात्रा में पाया जाता है अर्थात् Ego (अहम्) मजबूत होता है।
Note :-
● Id तथा Super Ego दोनों पूर्वकाल को प्रस्तुत करते हैं जबकि Ego वर्तमान की ओर प्रतिक्रियाशील होता है।
● हाल के अनुसार :- Ego का निर्माण Id से होता है। Super Ego का Ego से, यह व्यक्ति के जीवन भर आपस में अंत:क्रिया करते हैं।
C. फ्रॉयड का मनोलैंगिक विकास सिद्धांत :- सिगमण्ड फ्रॉयड।
● 5 अवस्थाओं का वर्णन
● विकास की व्याख्या लैंगिक ऊर्जा के रूप में (जीवन शक्ति)।
● लिबेडो शक्ति का विचार।
● फ्रॉयड ने लैंगिक शक्ति के आधार पर एक बालक के जन्म से लेकर परिपक्व होने तक की अवस्थाओं को निम्नलिखित प्रकार से वर्णित किया है-
(1) मुखीय अवस्था (Oral Stage) :- जन्म से 1-112 वर्ष तक।
● इस अवस्था में सम्पूर्ण लैंगिक शक्ति का केंद्र मुँह होता है। इसलिए बालक मुख से संबंधित क्रियाएँ करके यौन आनंद की अनुभूति करता है।
जैसे- चूसना, दाँतों से काटना, चाटना, निगलना।
फ्रायड के अनुसार इस अवस्था पर अधिक या कम मात्रा में मुखवर्ती उत्तेजन होने से वयस्कावस्था में दो तरह के व्यक्तित्व विकसित होते हैं।
(i) मुखवर्ती-निष्क्रिय व्यक्तित्व – यह आशावादी होते हैं तथा दूसरे व्यक्तियों पर अधिक विश्वास करते हैं। इनमें निष्क्रियता तथा दूसरों पर अधिक निर्भरता का शील गुण पाया जाता है।
(ii) मुखवर्ती-आक्रामक व्यक्तित्व – ऐसे व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं के लिए दूसरों पर अधिक प्रभुत्व दिखलाते हैं तथा उनका शोषण भी करते हैं।
(2) गुदीय अवस्था (Anal Stage) :- 112 वर्ष से 3 वर्ष तक।
● इस अवस्था में मनोलैंगिक शक्ति गुदा पर केंद्रित रहती है।
● बालक मलमूत्र त्याग जैसी क्रियाओं में विशेष आनंद/यौन आनंद की अनूभूति करता है।
● इस अवस्था पर अधिक या कम उत्तेजना होने पर वयस्कावस्था में दो तरह के व्यक्तित्व विकसित होते हैं-
(i) गुदा-आक्रामक व्यक्तित्व – क्रूरता, विद्वेष, विनाशिता आदि की प्रधानता।
(ii) गुदा-धारणात्मक व्यक्तित्व – हठ, कंजूसी, क्रमबद्धता तथा समयनिष्ठता की प्रधानता।
(3) लिंग प्रधान अवस्था (Phallic Stage) :- 3 वर्ष से 6 वर्ष तक।
● इस अवस्था में मनोलैंगिक शक्ति लैंगिक अंगों पर केंद्रित होती है।
● इस अवस्था में बालक में दो प्रकार की ग्रंथियाँ पैदा होती हैं-
(i) ऑडिपस ग्रंथि :- मातृ मनोग्रंथि।
– बालक में
– माँ के प्रति प्रेम/आकर्षण।
(ii) इलेक्ट्रा ग्रंथि :- पितृ मनोग्रंथि।
– बालिका में
– पिता के प्रति प्रेम/आकर्षण।
Note :- इस अवस्था में लड़कों में बधियाकरण चिंता तथा लड़कियों में लिंग ईर्ष्या जैसे सम्प्रत्यय विकसित होते हैं।
(4) सुप्त अवस्था/अव्यक्तावस्था (Latency Stage) :- 6-12 वर्ष।
● इस अवस्था में बालक में लैंगिक शक्ति सुषुप्त हो जाती है।
● बालक में लैंगिक इच्छाओं का उदात्तीकरण होने लगता है।
● विद्यालयी कार्यों, खेलकूद, चित्रकारी पर ध्यान केंद्रित होने लगता है।
● यही वह अवस्था होती है जिसमें बालक-बालिकाएँ सम-लैंगिक समूह बनाने में विश्वास करते हैं।
(5) जननेन्द्रिय/जनन अवस्था (Genetal Stage) :- 13 वर्ष से लगातार।
● मनोलैंगिक विकास की यह अंतिम अवस्था होती है। इस अवस्था में किशोरावस्था व प्रौढ़ावस्था दोनों सम्मिलित हैं।
● पूर्ण परिपक्वता की अवस्था।
● लैंगिक अंगों का पूर्ण विकास।
● विशेष यौन शक्ति का प्रभाव।
● मनोलैंगिक शक्ति अत्यधिक सक्रिय।
● समलिंगी व विषमलिंगी कामुकता जिसकी संतुष्टि व्यक्ति विपरीत लिंग के व्यक्तियों के साथ लैंगिक व्यवहार करके करता है।
Note :- फ्रॉयड के अनुसार 5/6 वर्ष की आयु तक बालक की मानसिक और नैतिक शक्तियाँ प्रबलता को होती हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस समय तक आते-आते बालक के भविष्य का निर्धारण हो जाता है।
फ्रॉयड के सिद्धांत का महत्त्व :-
1. अचेतन अभिप्रेरणा पर सर्वाधिक बल।
2. बाल्यावस्था के अनुभवों को महत्त्व प्रदान करना।
3. सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर बल।
फ्रॉयड ने चिंता के 3 प्रकार बताए हैं :-
1. वास्तविक चिंता (Realistic Anxiety)
2. तंत्रिकातापी चिंता (Neurotic Anxiety)
3. नैतिक चिंता (Moral Anxiety)
फ्रायड ने मूल प्रवृत्ति को मूलत: दो भागों में बाँटा है-
(i) जीवन मूल प्रवृत्ति (इरोस) – जीवन मूल प्रवृत्ति द्वारा व्यक्ति के सभी तरह के रचनात्मक कार्यों जिनमें मानव वर्ग या जाति का प्रजनन भी शामिल है, नियंत्रित होता है। इससे निर्माणात्मक कार्य निर्देशित होते हैं।
(ii) मृत्यु मूल प्रवृत्ति (थैनाटोस) – मृत्यु मूल प्रवृत्ति द्वारा व्यक्ति के सभी तरह के विध्वंसात्मक कार्यों तथा आक्रामककारी व्यवहार का निर्धारण होता है।
2. माँग का सिद्धांत
प्रतिपादक :- हेनरी मुर्रे।
● मुर्रे के अनुसार संसार का कोई भी व्यक्ति बुरा नहीं बनना चाहता है लेकिन उसकी व्यक्तिगत, पारिवारिक एवं सामाजिक आवश्यकताओं का उस पर दबाव आता है, जिस दबाव के कारण व्यक्ति अपनी माँग की पूर्ति करने के लिए किसी भी कार्य व्यवहार को अपनाता है और वैसा ही बन जाता है।
● मुर्रे के अनुसार वातावरण से उत्पन्न लगभग 40 प्रकार की माँगों से मनुष्य का व्यवहार प्रेरित होता है।
3. शीलगुण उपागम/विशेषक उपागम (Trait Approach)
प्रतिपादक :- G.W. आलपोर्ट, (1961 में)
● शीलगुण परिस्थिति के साथ परिवर्तित होते हैं। वे एक परिस्थिति में उत्पन्न होते हैं, दूसरी परिस्थिति में उत्पन्न नहीं होते हैं।
● शीलगुण एक-दूसरे के परस्परव्यापी होते हैं।
● आलपोर्ट के अनुसार शीलगुण/विशेषक गुण हमारे व्यक्तित्व की वे आधारभूत इकाइयाँ हैं जिनसे हमारे व्यक्तित्व का निर्माण होता है।
● आलपोर्ट ने शीलगुण को मुख्यत: दो भागों में बाँटा है-
(i) सामान्य शीलगुण (Common Trait) – सामान्य शीलगुण से तात्पर्य वैसे शीलगुणों से होता है जो किसी समाज या संस्कृति के अधिकतर लोगों में पाया जाता है। इसके आधार पर समाज या संस्क़ृति के अधिकतर लोगों की आपस में तुलना की जाती है। जैसे- प्रभुत्व एक सामान्य शीलगुण है।
(ii) विशिष्ट या व्यक्तिगत शीलगुण (Personal Trait) – विशिष्ट शीलगुण से तात्पर्य ऐसे शीलगुणों से होता है जो किसी समाज या संस्कृति के व्यक्ति विशेष तक ही सीमित होते हैं। अर्थात् समाज या संस्कृति के सभी व्यक्तियों में नहीं पाया जाता है। इस तरह के शीलगुणों के आधार पर व्यक्तियों की आपस में तुलना नहीं की जा सकती बल्कि एक ही व्यक्ति के भिन्न-भिन्न शीलगुणों का आपस में तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।
● आलपोर्ट ने विशिष्ट या व्यक्तिगत शीलगुणों को तीन भागों में बाँटा है- (i) प्रधान शीलगुण (Cardinal Traits) :- प्रधान/कार्डिनल शीलगुण ही व्यक्ति के व्यक्तित्व में सबसे प्रमुख रूप से क्रियाशील होते हैं। ये इतना प्रबल होता है कि उसे छिपाया नहीं जा सकता है और व्यक्ति के व्यवहार की व्याख्या इन शीलगुणों के रूप में आसानी से की जा सकती है। जिस व्यक्ति में यह गुण होता है, वह पूर्ण रूप से उस गुण से चर्चित होता है।
जैसे- महात्मा गाँधी में शांति व अहिंसा का गुण।
– मदर टेरेसा में सेवा का गुण।
– स्वामी विवेकानंद में सम्प्रेषण का गुण।
– हिटलर में तानाशाह गुण।
(ii) केन्द्रीय शीलगुण (Central Traits) :- ये गुण लगभग सभी व्यक्तियों में पाए जाते हैं जो प्राय: एक व्यक्ति में व्यक्तित्व का वर्णन करने तथा उसकी पहचान बनाने के काम में लाए जाते हैं। इनकी संख्या लगभग 8-10 होती है।
जैसे- ईमानदारी, दयालुता, सज्जनता, परोपकारिता, प्रेम, सहयोग, सहानुभूति, आत्मविश्वास, उदासी, खुशी, सामाजिकता।
(iii) गौण शीलगुण (Secondary Trait) :- ऐसे शीलगुण जो व्यक्तित्व के लिए कम महत्त्वपूर्ण, कम संगत, कम अर्थपूर्ण होते हैं। इनका कोई विशेष प्रभाव उसके व्यक्तित्व की पहचान या छाप पर नहीं पड़ता है। इसके आधार पर व्यक्तित्व को समझने में कोई खास मदद नहीं मिलती है।
जैसे- खाने-पीने की आदत, पहनावा, हेयर स्टाइल।
Note :- आलपोर्ट ने व्यक्तित्व को जानने के लिए 17,953 शीलगुणों का वर्णन किया।
- आलपोर्ट के व्यक्तित्व सिद्धांत में कार्यात्मक स्वायत्तता एक महत्त्वपूर्ण सम्प्रत्यय है।
- आलपोर्ट के व्यक्तित्व सिद्धांत में ‘प्रोपियम’ एक महत्त्वपूर्ण संरचना है।
- आलपोर्ट के अनुसार व्यक्तित्व निर्माण इकाई शीलगुण है।
4. कारक विश्लेषण /विशेषक सिद्धांत
प्रतिपादक :- R.B. कैटल, (1965 में)
● कैटल ने आलपोर्ट के 17,953 शीलगुणों को 4500 शीलगुणों में विभक्त किया तथा बाद में इनकी संख्या 200 कर दी।
● कैटल ने इस सिद्धांत में विशेषकों का विश्लेषण करते हुए व्यक्तित्व निर्माण में 2 प्रकार के विशेषकों का वर्णन किया है जो निम्नलिखित हैं-
(1) सतही विशेषक (Surface Trait) :- सतही विशेषक व्यक्तित्व के ऐसे विशेषक होते हैं जो बहुत महत्त्वपूर्ण नहीं होते हैं तथा दिन-प्रतिदिन की अंत:क्रिया में आसानी से अभिव्यक्त होते दिखाई पड़ते हैं। इनका स्वरूप स्थायी कम होता है। इन्हें शीलगुण सूचक भी कहते हैं।
जैसे- प्रसन्नता, सामुदायिकता, प्रफुल्लता, रंग-रूप, सत्यनिष्ठता, परोपकारिता।
(2) स्रोत/मूल विशेषक (Source Trait) :- इनका स्वरूप अधिक स्थायी होता है इसलिए इनके आधार पर व्यक्तित्व के स्वरूप को ठीक से समझा जा सकता है। ये सतही विशेषकों से सहसंबंधित होते हैं जिनसे मिलकर स्रोत विशेषकों का निर्माण होता है। इनकी अभिव्यक्ति आसानी से नहीं होती है तथा सीधे प्रेक्षण नहीं किया जा सकता।
जैसे- मित्रता, बुद्धिमत्ता।
● कैटल ने संबंधित व्यवहार के आधार पर भी शीलगुणों के तीन प्रकार बताए-
(i) गत्यात्मक शीलगुण (Dynamic Trait) – वह शीलगुण जिससे व्यक्ति का व्यवहार एक खास लक्ष्य की ओर अग्रसित होता है। जैसे- मनोवृत्ति, मनोभाव आदि।
(ii) क्षमता शीलगुण (Ability Trait) – वैसे शीलगुण जो व्यक्ति को किसी खास लक्ष्य तक पहुँचाने में काफी प्रभावकारी सिद्ध होते हैं। जैसे- बुद्धि।
(iii) चित्तप्रकृति शीलगुण (Temperament Trait) – वैसे शीलगुण जो किसी खास लक्ष्य तक पहुँचने के प्रयास से उत्पन्न होते हैं। जैसे- सांवेगिक स्थिरता, मस्तमौलापन आदि।
● कैटल ने अपने अध्ययन में 16 स्रोत शीलगुणों को महत्त्वपूर्ण बताया है, जिसको मापने के लिए उन्होंने एक कारक प्रश्नावली (व्यक्तित्व परिसूची) का निर्माण किया, जिसे कैटल 16 व्यक्तित्व कारक प्रभावशाली (16 P.F.) कहा गया।
कैटल के 16 व्यक्तित्व कारकों में विद्यमान विभिन्न व्यक्तित्व गुण/विशेषक
कारक का नाम | व्यक्तित्व गुण (Traits) | परस्पर विरोधी व्यक्तित्व गुण (Opposite Traits) |
A | भावुक/संवेगात्मक अस्थिर | शांत/संवेगात्मक स्थिर |
B | विवेकशील | अविवेकपूर्ण |
C | स्वयं में सीमित/मित्रता रहित | मेलजोल/मित्रतापूर्ण |
E | दबंग/अधिकार जमाने वाला | नम्र/दृढ़ता का अभाव |
F | सादा एवं संयमी/गंभीर | मस्त-मौला |
G1 | अंतरात्मा से प्रेरित | स्वहित से प्रेरित |
H | शर्मिला/डरपोक | साहसी |
G | नाजुक | सख्त |
L | शंकालु | विश्वास करने वाला |
M | व्यवहारशील | कल्पनाशील |
N | चालाक/हेराफेरी वाला | सीधा/बिना हेराफेरी वाला |
O | आत्मविश्वास/संतोषी | शंकित |
Q1 | रूढ़िवादी | प्रगतिशील |
Q2 | दूसरों पर निर्भर | आत्म-निर्भर |
Q3 | अनुशासनहीन | स्वानुशासित |
Q4 | चिंतामुक्त | चिंतित/बेचैन |
5. व्यक्तित्व का पंचकारक मॉडल
प्रतिपादक :- कोस्टा व मैकक्रे, (1985 में)
अन्य नाम :– बड़ा पंच (Big Five)
इसमें 5 शीलगुण आयाम बताए हैं-
(i) स्नायु विकृति (Neuroticism) :- इसके अन्तर्गत समायोजन बनाम सांवेगिक अस्थिरता के गुण का मूल्यांकन होता है। इसके द्वारा व्यक्तियों की पहचान होती है जिसमें अवास्तविक विचारों, अत्यधिक चाहत, कुसमायोजी अनुक्रियाओं तथा मनोवैज्ञानिक रोगों के प्रति उन्मुखता रखने वाले होते हैं।
(ii) बहिर्मुखता (Extroversion) :- इस आयाम से अन्तर्वैयक्तिक अन्त:क्रिया की मात्रा तथा तीव्रता का अंदाजा होता है। साथ ही साथ इसमें व्यक्ति के क्रिया स्तर, उत्तेजना की आवश्यकता तथा खुश रहने की क्षमता आदि की भी अभिव्यक्ति होती है।
जैसे- बातूनी, साहसी, मेल-जोल वाला।
(iii) अनुभूतियों का खुलापन (Openness) :- इस आयाम से तात्पर्य नई अनुभूतियों की प्रशंसा करने तथा चीजों के बारे में जानने तथा उनकी गहन समीक्षा आदि करने की क्षमता से होता है।
(iv) सहमतिजन्यता/समझौतावादी (Consensuality) :- इस आयाम से चिंतन, भाव एवं क्रियाओं में दया से लेकर प्रतिरोध के सातत्यता पर व्यक्ति द्वारा दिखलाए गए अन्तर्वैयक्तिक उन्मुखता की गुणवत्ता से होता है।
जैसे- भलापन, सहयोगी और दूसरों के द्वारा पसंद।
(v) कर्तव्यनिष्ठता (Conscientiousness) :- इस आयाम से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा लक्ष्य निर्देशित व्यवहार में दिखलाए गए अभिप्रेरणा, संगठन, दृढ़ता की मात्रा से होता है। इस आयाम पर निर्भर योग्य एवं सुकुमार व्यक्तियों की तुलना भावुक व्यक्तियों से आसानी से की जा सकती है।
6. व्यक्तित्व का सावृत्तिक सिद्धांत
प्रतिपादक :– कार्ल रोजर्स
● यह घटना विज्ञान या संवृत्तिशास्त्र के नियमों पर आधारित है।
● आत्मन् (Self) रोजर्स के सिद्धांत का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है।
● पूर्णत: प्रकार्यशील व्यक्ति का सम्प्रत्यय दिया।
● क्लाइंट (रोगी) केन्द्रित मनोचिकित्सा का सम्प्रत्यय दिया।
7. नवफ्रॉयडवाद/नवविश्लेषणवाद का सिद्धांत
मनोविश्लेषणवाद की विचारधारा पर चलते-चलते फ्रॉयड के शिष्यों- एडलर, युंग, इरिक फ्रोम आदि का फ्रॉयड की विचारधारा से मतभेद उत्पन्न हो गया और उन्होंने अपने विचार को व्यक्त करने के लिए नवफ्रॉयडवाद/नवमनोविश्लेषणवाद का प्रतिपादन किया।
● उन्होंने जैविक कारकों की बजाय सामाजिक, सांस्कृतिक कारकों को महत्त्वपूर्ण माना।
● यौन/काम को ही मानव व्यवहार/व्यक्तित्व का केंद्र बिंदु मानने पर मतभेद उत्पन्न।
● प्रमुख नवफ्रॉयडवादी– कार्ल युंग, अल्फ्रेड एडलर, इरिक फ्रोम, इरिक इरिक्सन, कैरोन हार्नी, एच.एस. सुल्लीभान, अन्नाफ्रॉयड आदि।
(i) कार्ल युंग :– युंग फ्रॉयड के प्रमुख सहयोगी थे और उन्होंने फ्रॉयड से अलग होकर एक स्वतंत्र सिद्धांत दिया है- विश्लेषणात्मक सिद्धांत।
● युंग ने अचेतन को 2 भागों में बाँटा है-
1. व्यक्तिगत अचेतन :- दमित इच्छाएँ, भूली-बिसरी यादें।
2. सामूहिक अचेतन :- पूरे मानव जाति की अनुभूतियाँ। युंग ने सामूहिक अचेतन पर अधिक बल डाला और उसे महत्त्वपूर्ण बताया है।
Note :- युंग के अनुसार 5 प्रमुख आदिरूप :-
1. परसोना (Persona) :- व्यक्ति का वास्तविक रूप से भिन्न रूप।
2. एनीमा (Anima) :- पुरुषों में स्त्रैण गुण।
3. एनीमस (Animus) :- महिलाओं में पौरुष गुण।
4. छाया (Shadow) :- इसमें ऐसी इच्छाएँ होती हैं जिसे समाज आपत्तिजनक, अनैतिक, बुरा समझता है (पार्श्विक प्रवृत्तियाँ)।
5. आत्मन (Self) :- इसका तात्पर्य संपूर्ण व्यक्तित्व की एकात्मकता संपूर्णता तथा समन्वय से है।
● युंग ने व्यक्तित्व निर्माण की 4 अवस्थाएँ बताई हैं :-
1. बाल्यावस्था 2. आरंभिक यौवनावस्था
3. मध्यावस्था 4. प्रौढ़ावस्था
(ii) अल्फ्रेड एडलर :- वैयक्तिक मनोविज्ञान के प्रतिपादक
● एडलर ने व्यक्तित्व के अध्ययन में वैयक्तिक दृष्टिकोण को महत्त्वपूर्ण माना।
● व्यक्तित्व के निर्धारण में सामाजिक कारकों पर बल।
● एडलर का मत है कि प्रत्येक व्यक्ति मुख्य रूप से एक सामाजिक प्राणी है न कि जैविक।
● एडलर ने 6 सम्प्रत्ययों के आधार पर व्यक्तित्व की व्याख्या की है-
1. व्यक्तित्व की एकता
2. प्रत्यक्षण की आत्मनिष्ठता
3. सफलता या पूर्णता का प्रयास
4. सामाजिक अभिरुचि
5. जीवनशैली
6. सृजनात्मक शक्ति
● जीवनशैली का तात्पर्य शीलगुणों, व्यवहारों, आदतों के एक ऐसे अपूर्व पैटर्न से होता है, जिसका उपयोग करके व्यक्ति अपने जीवन लक्ष्य तक पहुँचने की कोशिश करता है। एडलर ने जीवनशैली को एक प्रमुख नियंत्रक बल माना है।
● जीवनशैली का निर्माण 4/5 साल की आयु तक हो जाता है।
● एडलर ने हीनता मनोग्रंथि, कल्पित लक्षण तथा जन्म क्रम जैसे सम्प्रत्ययों का प्रतिपादन किया।
(iii) इरिक फ्रोम :-
इरिक फ्रोम ने व्यक्तित्व के निर्धारण में जैविक कारकों की बजाय सामाजिक, सांस्कृतिक कारकों को महत्त्वपूर्ण माना है-
● मानव एक सामाजिक प्राणी है।
● इरिक फ्रोम ने शीलगुणों को दो मुख्य भागों में बाँटा है:-
1. उत्पादक शीलगुण
2. अनुत्पादक शीलगुण
(iv) कैरोन हार्नी
यह एक महिला मनोवैज्ञानिक थीं। हार्नी का सबसे महत्त्वपूर्ण सम्प्रत्यय ‘मौलिक चिंता’ है।
मौलिक चिंता से तात्पर्य एक ऐसी अनुभूति से होता है जिससे बच्चा यह अनुभूति करता है कि इस खतरनाक संसार में वह लाचार व अकेला है।
● माता-पिता अपने व्यवहार से बच्चों में मूल दुश्चिन्ता उत्पन्न करते हैं।
व्यक्तित्व का मापन :-
एक व्यक्ति का व्यक्तित्व किस प्रकार का है और वह किसी कार्य या सामाजिक व्यवस्था में किस प्रकार से महत्त्वपूर्ण हो सकता है। इसे समझने के लिए 19वीं सदी में व्यक्तित्व मापन की दिशा में कार्य होने लगे और कई प्रकार की व्यक्तित्व मापन विधियाँ प्रकाश में आईं जो निम्नलिखित प्रकार से है-
(A) अप्रक्षेपी विधियाँ
(1) आत्मनिष्ठ विधियाँ (Subjective Method)/अप्रक्षेपी विधियाँ
(i) आत्मकथा लेखन विधि :- स्वयं का स्वयं के द्वारा निरीक्षण।
प्रवर्तक – विलियम वुण्ट व टिचनर।
जब व्यक्ति स्वयं अपनी जीवन कथा लिखता है इसमें वह अपनी जीवन संबंधी विशेष घटनाओं तथा व्यक्तित्व संबंधी अन्य बातों को प्रकाश में लाने का प्रयत्न करता है।
(ii) प्रश्नावली विधि
आदि जनक :- सुकरात
मनोविज्ञान में शुरुआत :- वुडवर्थ
● यह कागज पर छपे प्रश्नों या कथनों की सूची होती है जिनके उत्तर हाँ/नहीं में या लिखित रूप में देने होते हैं। इसलिए इस विधि को ‘कागज-पेंसिल विधि’ भी कहते हैं। इसमें प्राप्त उत्तरों की सहायता से व्यक्तित्व का मापन किया जाता है।
● प्रश्नावली मुख्यत: चार प्रकार की होती है:-
1. बंद प्रश्नावली – इसमें हाँ या नहीं में उत्तर देना होता है।
2. खुली प्रश्नावली – इसमें स्वतंत्र रूप से प्रत्येक प्रश्न का उत्तर पूरा व विस्तृत लिखना होता है।
3. सचित्र प्रश्नावली – इसमें विभिन्न चित्रों का प्रयोग होता है।
4. मिश्रित प्रश्नावली – यह उपर्युक्त तीनों का मिश्रण है।
(iii) जीवन-इतिहास विधि (Case Study Method) :-
प्रतिपादक :- टाइडमैन
यह निदानात्मक अध्ययन की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
इसमें असामान्य व्यक्तियों का अध्ययन किया जाता है।
जैसे- अपराधी बालक, समस्यात्मक बालक।
(iv) साक्षात्कार विधि (Interview Method) :- इस विधि द्वारा किसी व्यक्ति से आमने-सामने बैठ कर उसके व्यक्तित्व से संबंधित आवश्यक जानकारी एकत्रित की जाती है।
● गैरेट ने इस विधि के दो स्वरूप बताए हैं :-
1. औपचारिक (Formal)2. अनौपचारिक (Informal)
वुडवर्थ :- “साक्षात्कार, संक्षिप्त वार्तालाप द्वारा व्यक्ति को समझने की विधि है।”
(2) वस्तुनिष्ठ विधियाँ
(i) समाजमिति विधि
प्रतिपादक :- जे.एल. मोरेनो, (वर्ष 1934 में)
● इस विधि का प्रयोग, व्यक्ति के सामाजिक गुणों का मापन करने के लिए किया जाता है।
● समूह की संरचना का अध्ययन किया जाता है।
(ii) निरीक्षण/अवलोकन विधि :- जे.बी. वॉटसन द्वारा विकसित
● इस विधि में परीक्षणकर्ता विभिन्न परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का अवलोकन करके व्यवहार का अध्ययन करता है।
(iii) रेटिंग स्केल (Rating Scale) :-
प्रवर्तक – थर्स्टन।
इस विधि में किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व संबंधी गुणों को दूसरे व्यक्ति की सहायता से जानते हैं जो प्रभाव वह व्यक्ति मूल्य आँकने वाले के ऊपर छोड़ता है उन्हीं के आधार पर उन्हें रेटिंग दी जाती है।
(iv) शारीरिक हाव-भाव विधि
(B) प्रक्षेपी/प्रक्षेपण विधियाँ (Projective Method) :-
प्रोजेक्ट का अर्थ है- प्रक्षेपण करना या फेंकना।
● इन विधियों का प्रयोग व्यक्ति के अवचेतन और अचेतन मन में दमित, अतृप्त इच्छाओं, कुंठाओं का अध्ययन करने के लिए किया जाता है।
● ये तकनीक/विधियाँ आरोपण अथवा प्रक्षेपण प्रक्रिया पर आधारित हैं। इनमें किसी चित्र या परिस्थिति प्रदान करके उस पर अपने विचार, संवेगों तथा गुणों की अभिव्यक्ति कराई जाती है।
● फ्रॉयड ने इन्हें रक्षातंत्र/रक्षाकवच कहा है।
प्रमुख प्रक्षेपी विधियाँ :-
(1) रोर्शा का स्याही–धब्बा परीक्षण (IBT) (The Roschach Ink-Blat Test)
प्रतिपादक :- हरमन रोर्शा, (1921 में)
कुल कार्ड :– 10 कार्ड (5 कार्ड काले व सफेद, 2 कार्ड काले व लाल तथा 3 कार्ड बहुरंगी)
● इस परीक्षण में स्याही के धब्बों के 10 कार्डों का प्रयोग किया गया। व्यक्ति को निश्चित समय अन्तराल में कार्ड दिखाए जाते थे तथा फिर उससे पूछा जाता था कि क्या दिखाई दे रहा है।
● उत्तरों की व्याख्या निम्नलिखित 5 बिंदुओं के आधार पर की जाती है:-
1. स्थान 2. निर्धारक गुण 3. विषय (Content) 4. फार्म गुणवत्ता 5. लोकप्रिय मौलिक
Note :- एक दूसरा महत्त्वपूर्ण स्याही धब्बा परीक्षण हौल्जमेन, (1961) ने विकसित किया। इसमें 2 फॉर्म हैं- A तथा B। दोनों फॉर्मों में कार्डों की संख्या 45-45 है।
(2) प्रासंगिक/विषय अन्तर्बोध परीक्षण (TAT) (Thematic Apperception Test) :-
● प्रयोग :- 14 वर्ष से अधिक उम्र के व्यक्तियों के लिए।
● एक बार में प्रयोज्य पर 19 चित्रित कार्ड तथा 1 सादे कार्ड (कुल 20) का प्रयोग किया जाता है।
● परीक्षण करते समय लिंग के अनुसार कार्ड दिए जाते हैं और उन कार्डों पर बने चित्रों के आधार पर प्रयोज्य से उन पर कहानी लिखवाई जाती थी तथा बाद में कॉमन कार्ड दिए जाते हैं और कहानी लिखवाते हैं।
अन्त में सादा कार्ड दिया जाता है जिस पर चित्र व कहानी लिखवाई जाती है। इस प्रकार व्यक्ति द्वारा लिखी गई कहानियों के आधार पर उनके व्यक्तित्व का मापन किया जाता था।
● विषय अन्तर्बोध परीक्षण में कहानियों का विश्लेषण निम्नलिखित बिन्दुओं के रूप में किया जाता है:-
(i) नायक (Hero) (ii) आवश्यकता (Need)
(iii) प्रेस (Press) (iv) परिणाम (Outcome)
(v) थीमा (Thema)
(3) बाल अन्तर्बोध परीक्षण (CAT)
(Children Apperception Test)
प्रतिपादक :- लियोपोल्ड बैलक, (1948 में)
कुल कार्ड :– 10 कार्ड (जानवरों, पशु-पक्षियों के)
प्रयोग :– 3 से 10 वर्ष के बच्चों के लिए उपयोगी।
● इस परीक्षण में बच्चों को जानवरों के चित्रों के कार्ड दिखाते हुए कहानी पूछी जाती थी और कहानी के आधार पर व्यक्तित्व की पहचान की जाती थी।
(4) वाक्य पूर्ति परीक्षण (SCT)
(Sentence Complete Test)
प्रतिपादक :- पाईन व टेण्डलर, (1930 में)
● इस परीक्षण में जिस व्यक्ति के व्यक्तित्व का परीक्षण करना होता है उस व्यक्ति को कोई अधूरा वाक्य दे दिया जाता है और उन्हें पूरा करने के लिए कहा जाता है। इनमें अधूरे वाक्यों की एक लम्बी सूची होती है तथा सूची को देखकर रिक्त स्थानों को, शीघ्रता से बिना दुबारा सोचे-समझे पूरा करना होता है।
जैसे-
1. मैं अपनी पत्नी से ……………………।
2. मेरा इच्छा है कि ………………………..।
3. मेरे जीवन का लक्ष्य …………………।
4. जब तक में स्टेशन पहुँचा ……………..।
5. मैं गौरव का अनुभव करता हुँ जब …………..।
6. मुझे दु:ख अनुभव होता है जब …………….।
(5) रोजनविंग तस्वीर – कुंठा अध्ययन
प्रतिपादक :- रोजनविंग, 1949 में
● यह चित्रीय प्रक्षेपीय परीक्षण है।
● यह परीक्षण तीन प्रारूप में है:-
(i) बच्चों के लिए (4-13 वर्ष तक)
(ii) किशोरों के लिए (2-18 वर्ष तक)
(iii) वयस्कों के लिए (14 वर्ष से ऊपर)
(6) ड्रा-ए–परसन टेस्ट (क्रियात्मक परीक्षण)
प्रतिपादक :- मेकहोवर (Machover)
● इस परीक्षण में व्यक्ति को एक पन्ने पर एक व्यक्ति बनाना होता है तथा फिर उस चित्र से विपरीत यौन के चित्र को बनाना होता है। इन चित्रों का विश्लेषण करके व्यक्ति के व्यक्तित्व का अंदाजा लगाया जाता है।
Note:- गुड एनएफ ड्रा-ए-मैन परीक्षण, बुद्धि का एक परीक्षण है न कि व्यक्तित्व का।
(C) मनोविश्लेषण विधियाँ
प्रतिपादक :- फ्रॉयड (युंग ने विकसित किया)
(i) स्वप्न विश्लेषण विधि
प्रतिपादक :- सिगमण्ड फ्रॉयड (1900 ई.)
● फ्रॉयड के अनुसार जिस किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व को देखना होता है उसके द्वारा देखे गए स्वप्न का विश्लेषण किया जाता है। इसके लिए उसके स्वप्न में देखे गए को लिखवाकर या मौखिक रूप से पूछकर विश्लेषण करते हुए व्यक्तित्व की पहचान की जाती है।
(ii) शब्द साहचर्य परीक्षण/मुक्त शब्द साहचर्य परीक्षण (Free Word Association Test)
● प्रथम बार क्रमबद्ध रूप से गाल्टन (फ्रांसीस गाल्टन) द्वारा 1879 ई. में प्रतिपादित किया गया।
● इस परीक्षण में प्रयोज्य के समक्ष शब्दों की एक सूची तैयार करके प्रस्तुत की जाती थी और उन शब्दों पर उसके मन में जो पहला शब्द आता है उस पर विचार लिए जाते हैं और उसके द्वारा दिए गए विचारों के आधार पर उसके व्यक्तित्व का परीक्षण किया जाता है।
● बाद में युंग ने भी एक ऐसा परीक्षण बनाया।
(iii) साहचर्य व्यवहार विधि (स्वतंत्र साहचर्य विधि)
प्रतिपादक :- सिगमण्ड फ्रॉयड
● सिगमण्ड फ्रॉयड ने इस विधि का प्रतिपादन करते हुए इसे मनोचिकित्सा के क्षेत्र में उपयोगी बताया तथा कहा कि एक मनोरोगी को मानसिक रूप से ठीक करने के लिए उसके सामने स्वतंत्र वातावरण पैदा किया जाता है तथा उस व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से बोलने के अवसर देते हैं। जब वह व्यक्ति स्वतंत्र रूप से अपनी बातें बोलता है तो वह अपनी बातें की वे सारी बातें दोहराता है जिनकी वजह से वह मानसिक रोगी हुआ।
एक व्यक्ति उसकी दोहराई गई बातों को लिखता है और फिर उन्हीं के आधार पर उसकी मनोचिकित्सा की जाती है।
(iv) सम्मोहन विधि
प्रतिपादक :- सिगमण्ड फ्रॉयड
● मानसिक रोगियों के लिए उपयोग में लाई जाने वाली इस विधि में व्यक्ति को मनोचिकित्सक लोग सम्मोहित करने का प्रयास करते हैं जिससे रोगी अपने मन की हर बात बता देता है। उसके आधार पर उसकी चिकित्सा करना आसान हो जाता है। विश्व में अब तक इस विधि का सर्वोत्तम उपयोग सिगमण्ड फ्रॉयड द्वारा ही किया गया।
Note :-
1. अप्रक्षेपी विधियाँ चेतन मन का अध्ययन करती हैं तथा प्रक्षेपी विधियाँ मानव के अचेतन मन का अध्ययन करती हैं।
2. आत्मनिष्ठ विधियाँ, वस्तुनिष्ठ विधियाँ अप्रक्षेपी हैं।
प्रमुख व्यक्तित्व आविष्कारिका
(1) मिनोसोटो बहुपक्षीय व्यक्तित्व आविष्कारिका (MMPI)
(Minnesata Multiple Personality Inventory)
प्रतिपादक :- एस.आर. हाथवे तथा जे.सी. मैककिलनी (सन् 1940 में)
● मौलिक MMPI में कुल 550 एकांश तथा 10 नैदानिक मापनी हैं।
(2) 16 P.F. प्रश्नावली
प्रतिपादक :- R.B. कैटल
● कैटल ने कारक विश्लेषण प्रविधि के आधार पर व्यक्तित्व मापन के लिए एक प्रश्नावली का विकास किया, जिसमें 16 व्यक्तित्व शीलगुण मौजूद हैं।
(3) हेमान्स एवं वायरस्सा व्यक्तित्व आविष्कारिका :-
● हेमान्स व वायरस्सा ने वर्ष 1906 में पहली बार व्यक्तित्व आविष्कारिका का निर्माण किया।
(4) वुडवर्थ पर्सनल डेटा शीट
प्रतिपादक :- R.S. वुडवर्थ, (1908 में)
(5) थर्स्टन व्यक्तित्व आविष्कारिका :–
● सन् 1929 में थर्स्टन ने कारक विश्लेषण के आधार पर एक व्यक्तित्व आविष्कारिका का निर्माण किया।
● इसमें कुल प्राप्तांकों के आधार पर स्नायुविकृत प्रवृत्तियों की उपस्थिति या अनुपस्थिति का पता लगाया जाता है।
(6) NEO व्यक्तित्व आविष्कारिका :-
● कोस्टा व मैकक्रे, (1992 में)
● इसमें व्यक्तित्व की पाँच प्रमुख विमाओं अर्थात् स्नायुविकृतता, बहिर्मुखता, कर्तव्यनिष्ठता, सहमतिजन्यता, अनुभूतियों के लिए खुलापन का मापन होता है।
7. बेल समायोजन आविष्कारिका
प्रतिपादक – बेल, 1934 में
समायोजन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं एवं प्रेरणाओं तथा उन्हें संतुष्ट करने वाले कारकों के बीच एक संतुलन स्थापित करता है।