तवनगढ़ (त्रिभुवनगढ़), करौली

  • समुद्रतल से लगभग 1309 फीट की ऊंचाई पर स्थित इस दुर्ग का निर्माण बयाना के राजवंशीय तहणपाल (तवनपाल) अथवा त्रिभुवनपाल (महाराजा विजयपाल का पुत्र) ने 11वीं शताब्दी ईस्वी के उत्तरार्द्ध में करवाया था।
  • निर्माता के नाम पर ही इस दुर्ग का नाम तवनगढ़ तथा किले वाली पहाड़ी त्रिभुवन गिरि कहलाती है।
  • इस दुर्ग के बारे में ऐसा उल्लेख भी मिलता है कि मुस्लिम आधिपत्य के बाद इसका नाम इस्लामाबाद कर दिया गया था।
  • कविराजा श्यामलदास कृत वीरविनोद में यह उल्लेख है कि- ‘मुसलमानों ने यादवों से बयाना का किला छीन लिया। विजयपाल के 18 बेटे थे। उसका सबसे बड़ा बेटा तवनपाल बारह वर्ष तक पोशीदह रहकर अपनी धाय के मकान पर आया, उसने तवनगढ़ का किला बयाना से लगभग पन्द्रह मील दूर बनाया।‘
  • तवनपाल के दो पुत्र थे- धर्मपाल और हरपाल परन्तु उनका उत्तराधिकारी धर्मपाल बना, गृहकलह के कारण महाराजा धर्मपाल ने तवनगढ़ छोड़कर एक नया किला ‘धौलदेहरा‘ (धौलपुर) बनवाया। उसके पुत्र कुंवरपाल (कुमारपाल) ने गोलारी में एक किला बनवाया जिसका नाम कुंवरगढ़ रखा। कुंवरपाल ने ही हरपाल को मारकर तवनगढ़ पर अधिकार किया।
  • हसन निजामी द्वारा लिखित ‘ताज-उल-मासिर‘ तथा मिनहाज सिराज कृत ‘तबकाते नासिरी‘ में तवनगढ़ के ऊपर गौरी के अधिकार का उल्लेख हुआ है।
  • 14वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में यादववंशीय अर्जुनपाल ने अपने पैतृक राज्य तवनगढ़ पर फिर से अधिकार कर लिया। उसने विक्रम संवत् 1405 (1348 ई.) में कल्याण जी का मंदिर बनवाकर कल्याणपुरी नगर बसाया, जो वर्तमान में करौली कहलाया।
  • यह गिरि दुर्ग की श्रेणी में आता है। उन्नत एवं विशाल प्रवेश द्वार तथा ऊंचा परकोटा इसके स्थापत्य की प्रमुख विशेषता है।
  • जगनपोल एवं सूर्यपोल दोनों इस दुर्ग के प्रमुख प्रवेश द्वार हैं। समूचा नगर इस किले के भीतर बसा हुआ था।
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